भारत में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सभी सरकारें चाहे केंद्र की हो या प्रदेश की, सभी बेहद गंभीर है. लेकिन बावजूद इसके भी शिक्षा व्यवस्था में सुधार के नाम पर शिक्षक बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में लगे रहते हैं. इसका सबूत तब सामने आया जब कानपुर के कई प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों से आम सवाल जवाब किये गये. तब पाया गया कि उन्हें हफ्ते के साथ दिनों की सही स्पेलिंग तक नहीं पता.
शिक्षा देने वाले शिक्षकों को सामान्य सवालों के नहीं पता जवाब:
केंद्र की मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए प्रदेश की सरकार के साथ कंधे से कन्धा मिलाया और सर्व शिक्षा अभियान को उत्तर प्रदेश में बढ़ावा दिया।केंद्र और प्रदेश सरकारों ने सर्व शिक्षा अभियान तो चलाया लेकिन नतीजा निकला वही ढाक के तीन पात।
इस बात का सबूत तब मिला जब कानपुर के कई प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्कूलों में जाकर शिक्षको का रियल्टी चैक किया गया, तब पाया गया कि सरकारी स्कूलों में मोटे वेतन पर पढ़ाने वाले शिक्षको को दिन और महीनो के नामो की स्पेलिंग तक नहीं आती. हमारी जाँच में सर्व शिक्षा अभियान की धज्जियां उड़ाते शिक्षक सामने आये.
सरकारी स्कूल बना तबेला: क्लास रूम में बच्चों की जगह गाय-बछड़े और भूसा
सप्ताह के दिनों को अंग्रेजी में लिखने में छूटे पसीने:
इसी कड़ी में सबसे पहले जिले के कल्याणपुर ब्लॉक के कुरसौली के पूर्व माध्यमिक विद्यालय से जाँच शुरू की गयी. जहाँ हमारी टीम को देख कर स्कूल की शिक्षिका के पसीने छूटने लगे.
शिक्षिका ने कहा कि उन्हें आता तो सब कुछ है लेकिन हमे देखकर घबराहट में भूल जा रही हैं. प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका से जब हमने ब्लैक बोर्ड पर केवल पूरे हफ्ते के नामो को लिखने को कहा तो शिक्षिका बच्चों को क्या पढ़ाती होंगी ये उनके उत्तर से ही जाहिर हो गया. इसके बाद महीनो के नाम में नवम्बर और अक्टूबर की स्पेलिंग लिखने को कहा तो शिक्षिका महोदया का ब्लड प्रेशर हाई होने लगा।
गृह मंत्री का नाम तक नहीं पता:
वही इसी स्कूल की इंचार्ज टीचर मति अल्का से जब महीनो के नाम की स्पेलिंग लिखने को कहा गया तो उनकी स्पेलिंग और लिखावट देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था कि जब उनकी लिखावट हमारी समझ से परे थी तो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चो को क्या समझ आता होगा।
इंचार्ज मैडम को महीनो के नाम की स्पेलिंग तक नहीं आती और तो और देश का गृह मंत्री कौन है ये सवाल पूछने पर वो बगले झाँकने लगी.
जिसके बाद हमारी टीम विकास खंड चौबेपुर के प्रेमपुर प्राथमिक विद्यालय पहुंची जो कि शासन स्तर पर अब अंग्रेजी माध्यम का हो गया है. लेकिन वहां की हालत भी अन्य स्कूलों की तरह ही थी.
शिक्षा को हर बच्चे तक पहुँचाने का लक्ष्य तय करने मात्र से बच्चे शिक्षित नहीं होंगे. जब तक शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा में कामम नहीं किया जायेगा.
बच्चों के भविष्य का सवाल:
शिक्षा को शर्मसार करने वाले ऐसी शिक्षकों से सरकार को सवाल करना चाहिए और खुद से भी कि देश के भविष्य बनने वाले इन लाखों बच्चों के साथ शिक्षा के नाम पर खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है.
वहीं इस पूरे मामले में शिक्षको की चयन प्रक्रिया पर बड़ा सवालिया निशान लग रहा है कि सरकारी शिक्षक बनने के लिए ग्रेजुएशन के साथ बीएड और बीटीसी की अहर्ता होना आवश्यक है. बावजूद इसके शिक्षा के मंदिर में शिक्षा की धज्जियाँ उड़ाते ये शिक्षक पूरी चयन प्रक्रिया को बदनाम कर रहे है। ऐसे शिक्षको और उनके शिक्षा के स्तर को देखकर सरकार को शिक्षको की चयन प्रक्रिया में सुधार करने की सख्त जरूरत है ।