16 सदी के मध्य में बुंदेलखंड के महोबा जिले के जैतपुर कस्बे में राजा छत्रसाल का राज हुआ करता था। उनके बारे में कहा जाता था, कि छत्ता तेरे राज में धक्-धक् धरती होय, जित-जित घोडा मुख करे तित-तित फत्ते होय। मतलब महाराज का घोड़ा जिस दिशा ओर चल देता था, उस दिशा के राजा हार मान लेते थे या युद्ध में पराजित होते थे। इस प्रकार से राजा छत्रसाल अकूत संपत्ति और राज्य विस्तार किया।

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महाराज के राज्य के विस्तार के बारे में कहा जाता है कि इत चम्बल उत बेतवा और नर्मदा टौंस, छत्रसाल के राज में रही न काऊ हौंस। इतिहासकारों के अनुसार, मस्तानी राजा छत्रसाल की अंशज पुत्री थी। जो जहानत खां के दरबार की मुस्लिम नर्तकी और महाराज छत्रसाल से हुई संतान थी। महाराज छत्रसाल ने मस्तानी को पुत्रीवत पाला, पूरे जीवन कभी न हार न मानने वाले महाराज छत्रसाल को अपने अंत समय में मुगलो से सामना करने के लिए बाजी राव पेशवा की मदद लेनी पड़ी।

युद्ध में बाजीराव पेशवा और महाराज छत्रसाल की सेना एक होने की बात सुनकर ही मुगलो के हाथ पैर ठन्डे पड़ गए और उन्होंने अपनी सेनाएं वापस बुला ली। इस बात से प्रसन्न होकर महाराज छत्रसाल ने अपने राज्य के तीन हिस्से किये। जिसमे दो हिस्से अपने दोनों बेटो जगतराज और हिरदेशशाह को दिए तथा तीसरा हिस्सा मस्तानी को दिया। साथ ही महाराज छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा को उपहार के रूप में मस्तानी और उसके राज्य का तीसरा हिस्सा सौंपा था।

आज भी राजा की ड्योढ़ी के सामने मस्तानी महल है जिसे महाराज द्वारा रंडी महल का नाम दिया गया था। किवदंतिया तो ये भी है राजा ने अपनी ड्योढ़ी के चबूतरे में अकूत संपत्ति दफ़न कर दी थी। जिसकी रक्षा अलौकिक शक्तियां करती हैं। कई बार धन खोदने की लालच में दफ़ीनाबाज रात में आये और डरावनी आवाजों को सुनकर भाग गए या वही बेहोश मिले। दफीनाबाजो द्वारा किये गए गड्ढे भी जगह-जगह साफ़ देखे जा सकते हैं। लेकिन ड्योढ़ी से आज तक कोई भी धन लेकर नहीं जा पाया।

इतिहासकार डॉ. सतीश ने बताया कि महाराज छत्रसाल का इतिहास जैतपुर कसबे जिसे बेलाताल के नाम से भी जाना जाता है। उनसे और बाजीराव पेशवा साथ ही मस्तानी जुड़ा हुआ है। महाराज ने मस्तानी और अकूत संपत्ति को उपहार स्वरूप बाजीराव पेशवा को सौंप दिया था। आज भी उस संपत्ति का काफी हिस्सा महाराज की इसी गढ़ी अंदर कैद है। जिसे किवदंतियो के अनुसार मंत्रो से अलौकिक शक्तियों द्वारा सुरक्षित किया गया था।

स्थानीय नागरिक कैलाश सोनी ने बताया कि शाम ढलते ही लोग इस महल के आस-पास आने से डरते हैं। उनका कहना है कि अँधेरा होते ही महल से तरह-तरह की आवाजे आनी शुरू हो जाती है। जिससे शाम ढलते ही महल के आसपास सन्नाटा पसर जाता है। कई बार दफ़ीनाबाजो ने धन निकालने कोशिश की तो वहां सैकड़ो की तादात में सांपो ने उन्हें घेर लिया और अंत में धन का लालच छोड़ भाग खड़े हुए। आज भी चार सौ सालो से ये महल खंडहर पड़ा हुआ है। इतिहासकारो के अनुसार यही महल महाराज छत्रसाल द्वारा मस्तानी को बाजीराव पेशवा को सौंपने का गवाह बना था।

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