लखनऊ के रेडियस जॉइंट सर्जरी अस्पताल के जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. संजय कुमार श्रीवास्तव नी सर्जरी में कम चीरफाड़ और सटीक समाधान देंगे। रेडियस जॉइंट सर्जरी अस्पताल ने अमेरिका की जानी मानी मेडिकल तकनीक बनाने वाली कंपनी के साथ मिलकर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सी ओ ई) लांच करने की घोषणा की थी जिस पर अमल किया जा रहा है। नी रिप्लेसमेेंट सर्जरी के दौरान रोगी के इंट्रा मेडयूलेरी बोन (आमतौर पर आई एम कनैल कहा जाता है) को ड्रिल नहीं किया जाएंगा।ऐसे में काफी कम चीड़फाड़ के ही इलाज संभव हो जाता है।
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तेजी से होती है मरीज की रिकवरी
- डॉ. संजय ने कहा आई एम कनैल जांघ के अंदर की लंबी हड्डी है जिसमें बोन मेरो का भंडार होता है।
- नी सर्जरी में आई एम कनैल में 4०-5० मिमी गहरा और 9.5 मिमी चौड़ा सुराख करने के लिए ड्रिल होता है।
- पर अब नई एडवांस तकनीकों की मदद से सर्जिकल प्रक्रिया में ड्रिल करने की जरूरत ही नहीं होती।
- जिससे सर्जरी बेहद सुरक्षित हो गई है और मरीज की रिकवरी तेजी से होती है।
- नी सर्जरी में सुराख करने के लिए जो ड्रिल किया जाता है, उसमें खून का बहुत नुकसान होता है।
- जिसके कारन मरीज को कई तरह की परेशानियां या जटिलताएं हो सकती है।
- सर्जरी प्लॉन करते वक्त ध्यान रखा जाता है कि सर्जरी के बाद मरीज सामान्य जिंद्गी बिता सके।
- नी अलाइंमेंट को कार के टायर के उदाहरण से समझा जा सकता है।
- कार को बेहतर तरीके से चलाने के लिए उसके टायरों की अलाइंमेंट ऐसी होनी चाहिए ताकि वह जल्दी न घिसे।
- ठीक उसी तरह आर्टिफिशियल घुटनों की अलाइंमेंट मरीज के शरीर के अनुसार सही होनी चाहिए।
- ताकि नए घुटने सामान्य तरीके से काम करे और ज्यादा समय तक चले।
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क्या हैं इस नई तकनीक के फायदे
- जॉइंट का सही तरीके से काम करना और लंबे समय तक चलना कई बातों पर निर्भर है।
- इसमें सबसे जरुरी है की जोड़ मरीज के शरीर के ऐक्सस से कितने अच्छे तरीके से अलाइन है।
- कई दाकों से दुनियाभर में अलाइंमेंट मापने के लिए मरीज के आई एम कनैल या फिमोरेल कनैल को ड्रिल करके सुराख किया जाता था और फिर उपकरणों की मदद से ऐक्सस को मापा जाता था।