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क्रांति दिवस Exclusive: चर्बी लगे कारतूसों का विरोध करने पर फूटी थी क्रांति

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अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए क्रांति की पहली चिंगारी 10 मई 1857 में मेरठ की जमीन से फूटी थी। अंग्रेज सैनिकों, अफसरों पर लोगों ने हमला बोल दिया था। हालांकि, उस समय यह क्रांति कामयाब नहीं हो सकी थी।

वैश्ययों ने ताना मारकर भरा था सैनिकों में जोश

जब चर्बी लगे कारतूसों का विरोध करने वाले 85 देशी सैनिकों को जेल में बंद किया गया। तब विद्रोह की चिंगारी फूटने लगी। 10 मई की शाम 6 बजे तक पूरे शहर में विद्रोह का उबाल फूटने लगा था। इतिहास के पन्नों में यह भी जिक्र मिलता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी जब फूटी तो सदर बाजार की वैश्ययों ने ताने मारकर देशी सैनिकों में जोश भरा था। राजकीय संग्राहलय के अध्यक्ष डा. मनोज गौतम ने गजेटियर में इसका जिक्र होने की बात कही है। इतिहासकार विशेष कुमार की बुक ‘मेरठ के पांच हजार साल’ में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि वेश्याओं ने देशी सैनिकों को ताने मारकर उकसाया था। वैश्याएं ताना मारकर कहती थीं कि धर्म की रक्षा के लिए उनके भाई बेड़ियों में कैद हैं और वह कायरों की तरह घूम रहे हैं।

kranti diwas 2018: behind story of 10 May 1857 revolution in hindi

सदर बाजार से फूटी थी क्रांति की पहली चिंगारी

10 मई 1857 में सदर बाजार से स्वतंत्रता की पहली चिंगारी भड़की। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए प्लानिंग की गई और एक साथ पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाने की तारिख तय हुई, लेकिन मेरठ में तय तारीख से पहले ही लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। राजकीय स्वतंत्रता संग्राहलय के रिकार्ड के अनुसार 10 मई 1857 को शाम 5 बजे जब गिरिजाघर का घंटा बजाए तब लोग घरों से निकलकर सड़कों पर एकजुट हो गए। सदर बाजार से लोगों ने अंग्रेजी फौज पर हमला बोल दिया।

कोतवाल धनसिंह सिंह ने गांव वालों को दी थी क्रांति की खबर

जब मेरठ में अंग्रेजों पर हमला बोला गया, उस समय सदर कोतवाली के इंचार्ज धनसिंह थे। धनसिंह कोतवाल को जब पता चला कि अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हो गया है, तो उन्होंने भी क्रांतिकारियों का साथ दिया। उन्होंने मेरठ छावनी में विद्रोह की खबर गांव-गांव तक पहुंचाई। कोतवाल का संदेश पाकर आस-पास से गांव के लोग डंडे, फरसे, भाले लेकर शहर की ओर दौड़ पड़े। दिनभर मेरठ में मारकाट के बाद दिल्ली चलों का नारा लगाकर क्रांतिकारी सेना दिल्ली की ओर बढ़ गई। इसके बाद 14 मई को दिल्ली में अंग्रेजों पर हमला बोला गया।

ये थी 1857 की क्रांति की असल वजह

चर्बी लगे कारतूस चलाने से इनकार करने वाले 85 हिंदुस्तानी सैनिकों पर अंग्रेज अफसरों ने खूब जुल्म किए। राजकीय स्वत्रंता संग्राम संग्राहलय के अध्यक्ष डा. मनोज गौतम ने बताया कि विद्रोह करने वाले सैनिकों के खिलाफ कई दिन तक कोर्ट मार्शल की सुनवाई चली। इन सैनिकों ने 25 अप्रैल 1857 में पहली बार अंग्रेजों का विद्रोह किया था। इसके बाद 6 व 7 और 8 मई को उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल की सुनवाई हुई। 9 मई को विद्रोह करने वाले सभी 85 सैनिकों को सेंट जोंस चर्च के पीछे मैदान में एकजुट किया गया। यहां सभी की वर्दी उतारकर लोहे की भारी भरकम बेड़ियों में जकड़ दिया गया। गरम तपती सड़कों पर इन सिपाहियों को नंगे पैर विक्टोरिया पार्क स्थित जेल ले जाया गया। सैनिकों पर किए गए अमानवीय व्यवहार की जानकारी 9 मई को ही जनता तक पहुंचनी शुरू हो गई थी। जिसके बाद 10 मई को लोगों का गुस्सा भड़क गया और उन्होंने अंग्रेजों पर हमला बोल दिया।

पेड़ पर लटका कर दी थी विद्रोहियों को फांसी

अंग्रेज कलक्टर डनलप ने सीकरी खुर्द गांव में बगावत करने वाले ग्रामीणों को पेड़ से लटकाकर मौत के घाट उतार दिया था। यहां मौजूद करीब 132 ग्रामीणों को अंग्रेज सैनिकों ने कलक्टर के आदेश पर फांसी पर लटकाया था। सहारनपुर में भी विद्रोह की चिंगारी भड़कने पर अंग्रेजों ने खूब जुल्म ढहाए थे। यहां अंग्रेजी सेना ने ग्रामीणों से जबरन लगान वसूली की तो इसका प्रबल विरोध हुआ। यहां अंग्रेजों ने उस समय कोतवाली के ठीक सामने पीपल के पेड़ पर विरोध करने वालों को फांसी पर लटकाया।

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