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उत्तर प्रदेश की राजधानी भले ही हत्या, बलात्कार, डकैती और लूट के मामले में सबसे आगे हो लेकिन शौचालयों के निर्माण में प्रदेश के छोटे शहर आगे निकल गए हैं, जबकि लखनऊ इस मामले में फिसड्डी साबित हुआ है। खुलासा हुआ है कि प्रदेश के सभी 75 जिलों में से लखनऊ को 50वां स्थान मिला है। इससे यह ज्ञात होता है कि शहर को शौचमुक्त बनाने में जिम्मेदार कितनी रूचि ले रहे हैं।
अगले पेज पर पढ़िए पूरी खबर के साथ शहर की असलियत:
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शहर में 41 ग्राम पंचायतों का हुआ था चयन
- बता दें कि लखनऊ के आठ ब्लॉकों की 41 ग्राम पंचायतों को इस वर्ष खुले में शौच मुक्त के लिए चयन किया गया था।
- लेकिन इसमें से सिर्फ आधा दर्जन गांवों में ही बमुश्किल से टारगेट पूरा हो पाया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों की तरह ही राजधानी के शहरी क्षेत्रों का भी यही हाल है।
- जबकि लगभग तीन महीने पहले पब्लिक टॉयलेट बनाए जाने का काम शुरू किया गया था।
- कई ग्राम पंचायतों में अभी भी काम अधूरा है।
यह हैं यूपी के टॉप 10 जिले
- बिजनौर, कन्नौज, मीरजापुर, वाराणसी, प्रतापगढ़, शामली, संतकबीरनगर, कुशीनगर, ज्योतिबाफुलेनगर, कानपुरनगर, सोनभद्र और मुरादाबाद।
एनओसी मिली पर नहीं शुरू हुआ काम
- शहर में पहले चरण में 43 जगहों पर 344 सीट्स का सुलभ काम्प्लेक्स बनाया जाना है। इनमें से 12 जगहों की एनओसी विभाग को मिली है, फिर भी वहां काम शुरू नहीं हुआ है।
41 में आधा दर्जन ही बन पाए शौचमुक्त
- सीडीओ प्रशांत शर्मा ने बताया कि मोहनलालगंज विकास खंड का ग्राम लालपुर और बीकेटी का डिगोई अब खुले में शौचमुक्त गांव बन गए हैं।
- 41 ग्राम पंचायतों में से आधा दर्जन को शौचमुक्त बनाने का काम किया जा चुका है।
- बहुत जल्दी बाकी ग्राम पंचायतों में काम पूरा हो जायेगा।
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