राजधानी लखनऊ के पीजीआई थाना क्षेत्र स्थित संजय गाँधी आयुर्वेदिक संस्थान (एसजीपीजीआई) का एपेक्स ट्रॉमा सेंटर मंगलवार से शुरू हो गया। इसका लोकार्पण चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन, मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डॉ. रजनीश दुबे ने किया। यह पहला ऐसा सेंटर है जहां केवल ट्रॉमा के मरीजों को ही इलाज मिलेगा। ट्रामा सेंटर प्रभारी प्रो. अमित अग्रवाल ने बताया कि लावारिस मरीजों का इलाज पीजीआई प्रशासन की तरफ से निःशुल्क किया जाएगा। इमरजेंसी ओटी और न्यूरो ओटी तैयार कर ली गई है। नई तकनीक से गंभीर मरीजों की सर्जरी की जाएगी। यहां मरीजों के लिए रजिस्ट्रेशन फीस 250 रुपये होगी।
60 बेड से शुरू हुआ एपेक्स ट्रॉमा सेंटर
एपेक्स ट्रॉमा सेंटर की शुरुआत 60 बेड से की गई है। कैज्युल्टी में 16 बेड और छह बेड आइसीयू में हैं। शेष 38 बेड जनरल वार्ड और चार प्राइवेट वार्ड में हैं। प्रो. अग्रवाल ने बताया कि ट्रॉमा में एक्स-रे, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड मशीनें लग गई हैं। साथ ही ट्रॉमा में न्यूरो सर्जन, इएनटी सर्जन, डेंटल सर्जन, ऑर्थो सर्जन, ट्रॉमा सर्जन, गाइनकोलॉजिस्ट, एनेस्थेसिया समेत कई विशेषज्ञ 24 घंटे उपलब्ध रहेंगे।
छह साल बाद शुरू हुआ एपेक्स ट्रामा सेंटर
लगभग दौ सौ करोड़ की लागत से बना ट्रामा सेंटर छह साल तक सूना पड़ा रहा। कई बार कोशिशें हुईं लेकिन सरकारी अड़चनों के चलते यह शुरू नहीं हो पाया। वर्ष 2015 में मेडिकल विवि ने इसे चलाने का जिम्मा लिया। जिसके लिए 22 करोड़ विवि को दिए गए, लेकिन सही तरीके से नहीं चल पाया। फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोबारा पीजीआइ को जिम्मा सौंपा। निदेशक राकेश कपूर ने नए सिरे प्लानिंग की।
इनकी मेहनत से शुरू हुआ ट्रामा सेंटर
संस्थान का ट्रामा सेंटर शुरू करने के लिए प्रभारी प्रो. अमित अग्रवाल, प्रो. सुशील गुप्ता, प्रो. एसके अग्रवाल, प्रो. अंकुर भटनागर, प्रशासनिक अधिकारी भरत सिंह कई स्तर पर लगे रहे। इसके बाद भी आ रही रुकावटों को निदेशक के सहयोग से दूर किया गया। निदेशक प्रो. राकेश कपूर ने बताया कि ट्रामा सेंटर को रेड और यलो जोन में बांटा गया है जहां इंजरी के स्कोर के आधार पर इलाज दिया जाएगा। किसी भी सेंटर को मेच्योर होने में समय लगता है। यह समय एक साल से दो साल तक हो सकता है इसलिए पहले ही दिन से बहुत अधिक उम्मीद नहीं करना चाहिए। रीढ़ की हड्डी, ब्रेन , लिंब में चोट के बाद कई बार मरीज इलाज के बाद भी लंबे समय तक केयर की जरूरत होती है। इनको ट्रामा सेंटर में रखने के बेड भर जाएंगे ऐसे मरीजों के लिए रीहैबिलिटेशन सेंटर ले जाना चाहिए।