सरकारें योजनायें लाती हैं, ताकि आम जनता, किसान, दलित और हर वर्ग को इन योजनाओं का लाभ मिले. लेकिन जमीनी हकीकत इन सरकार कि इन योजनाओं की मंशा को ही शर्मसार कर देती हैं. इसी कड़ी में मायावती सरकार के दौरान ‘अपना बाजार’ योजना भले ही अखिलेश सरकार में आते आते ‘किसान बाजार’ योजना मे तब्दील हो गयी हो. लेकिन कार्यप्रणाली के नाम पर बाजार योजना तब भी निष्क्रिय थी और अब किसान हितैषी भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद भी निष्क्रिय ही है.
राजनीतिक फायदे के लिए सरकारें करती हैं राजनैतिक दोहन:
राजनीतिक फायदे के लिए सरकारें कुछ भी करती हैं, ऐसा हम नहीं कहते. खुद राजधानी की तस्वीरें बयां करती हैं। हम आपको ऐसी कई तस्वीरों से रूबरू कराएंगे, जिनसे साफ होता है कि वाकई विकास और पुनर्निर्माण के नाम पर सिर्फ जनता के पैसों की बर्बादी होती है. विकास और योजना के नाम पर पैसा तो खर्च किया जाता है लेकिन उनके क्रियान्वन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
दशकों पहले बना किसान बाजार अभी भी नहीं कर पाया तरक्की:
हम हाल सुनाएंगे आपको राजधानी लखनऊ स्थित किसान बाजार का, जिसकी स्थिति इतनी दयनीय है कि अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी तरक्की के नाम पर शून्य है। खेत-जमीन बेचकर लाखों की लागत लगाने वाले किसान और मध्यमवर्गीय आज मरने की कगार पर हैं।
बता दें कि मायावती के शासनकाल में करीब 10 एकड़ में करोड़ों रुपये खर्च कर अनोखा ‘अपना बाजार’ बनाया गया था। इसमें दुकानें, गेस्ट हाउस, बैंक्वेट हॉल, दो-दो अंडरग्राउंड पार्किंग बनायीं गयी हैं।
योजना थी कि छोटे किसान और व्यापारी सीधे इस बाजार में कारोबार कर सकेंगे। वहीं अभी भी पचासों दुकाने किसानों को आवंटित नहीं की गयीं तो सैकड़ों दुकाने खुद मंडी समिति के रसूखदारों ने ले रखी हैं जो व्यापर करते ही नहीं और दुकाने बंद रखते हैं।
गौतलब है की मायावती सरकार में इसका उद्घाटन हुआ था, तब इसका नाम था ‘अपना बाजार’। लेकिन सपा सरकार ने पुनर्निर्माण करने के साथ इसका नाम बदलकर ‘किसान बाजार’ कर दिया।
लेकिन आज इस बाजार की हालत ऐसी है की दुकान की लागत तो दूर बिजली खर्च का बिल निकलना भी दूभर है।
ग्राहकों का आवागमन शून्य, दुकानदार हुए तबाह:
बाजार का विकसित न होना किसान बाज़ार के तबाही का एक बड़ा कारण है। क्योंकि बाजार में 80 फीसदी दुकाने बंद पड़ी हुयी हैं। जिससे ग्राहकों को उनकी जरुरत का सामान नहीं मिल पाता है।
ऐसे में ग्राहकों का आवागमन लगभग शून्य हो गया है। जिससे दुकान के आवंटन में लाखों की लागत लगाने वाले किसान भी बर्बादी के कगार पर हैं।
बिजली पानी और शौचालय के लिए तरस रहा किसान बाजार:
किसान बाजार की हालात ऐसी है, कि वहां न बिजली पानी की ख़ास व्यवस्था है और न ही शौचालय की। मंडी स्थल में जो शौचालय बनाया गया था, उसकी ऐसी बदहाल स्थिति है कि मजबूरन दुकानदारों के साथ-साथ इक्का-दुक्का ग्राहकों को भी शुलभ शौचालय का रास्ता देखना पड़ता है।
मंडी परिषद् भी नहीं दे रहा ध्यान:
किसान बाजार के दुकानदारों की लाख शिकायतों के बावजूद मंडी परिषद् के अधिकारी उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं। वहां की अव्यवस्थाओं को अनदेखा कर रहे हैं। इतना ही नहीं, किसान बाजार के दुकानदारों के मुताबिक मंडी परिषद् के अधिकारी वहां झाँकने भी नहीं आते।
ऐसे माहौल से लगता है कि, पूरा किसान बाजार भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा है, और सरकारों ने इसका निर्माण राजनीतिक फायदे के लिए ही किया है।