बहुजन समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा की केंद्र और विभिन्न प्रदेशों में राज्य सरकारें किसान, दलितों व दलितों का शोषण, उत्पीड़न और लगातार उनके साथ अन्याय कर रही है. उसके बाद इन वर्गों के हित और कल्याण के बारे में बात करने का भाजपा को कोई हक नहीं हैं.
भाजपा दलितों, पिछड़ों के प्रति उदासीन:
बसपा सुप्रीमो ने कहा कि बीजेपी की केंद्र व राज्य सरकारें, खासकर उत्तर प्रदेश की सरकार पिछली सरकारों से दो क़दम आगे बढ़कर ग़रीबों, मजदूरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों का शोषण व उत्पीडन कर रहीं है और इन वर्गों को इनके जीने के मौलिक अधिकार व आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित रख रही हैं।
ख़ासकर दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों के आरक्षण के मामले में तो इनका रवैया काफी ज़्यादा द्वेषपूर्ण व जातिवादी बना हुआ है और यही कारण है कि आरक्षण के आधिकार को पूरी तरह से निष्क्रिय व निष्प्रभावी बना दिया गया है तो दूसरी तरफ सरकार की बड़ी बड़ी परियोजनायें ज़्यादातर बड़े बड़े पूंजीपतियो की निजी क्षेत्र की कम्पनियों को सौपी जा रही हैं, जहाँ आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है.
न्यायपालिका के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों सहित प्राइवेट सेक्टर आदि में भी आरक्षण की सुविधा की माँग करते हुए उन्होंने कहा कि आरक्षण को नकारात्मक सोच के साथ देखने के बजाए इसे देश में सामाजिक परिवर्तन के व्यापक हित के तहत एक सकारात्मक समतामूलक मानवतावादी प्रयास के रूप में देखना चाहिये।
बसपा अल्पसंख्यको के आरक्षण के पक्ष में:
यही कारण है कि बी.एस.पी. अपरकास्ट समाज व धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के ग़रीबों का भी आरक्षण की सुविधा देने की पक्षधर है और इसके लिये संविधान में उचित संशोधन करने की माँग को लेकर संसद के भीतर व संसद के बाहर लगातार संघर्ष करती रही है।
देश के करोड़ों ग़रीबों को उनको सम्मानपूर्वक जीने का संवैधानिक हक देने में सरकारों को ना तो दकियानूसी करनी चाहिये और ना ही कंजूसी क्योंकि इनके सही हित व कल्याण के बिना भारत का भला कभी भी नहीं हो सकता है।
जातिवादी घृणा व द्वेष के जहर से मुक्त इन वर्गों का हित साधना ही सच्ची देशभक्ति है. जिसमें ख़ासकर बीजेपी की सरकारें बुरी तरह से विफल साबित हो रही हैं.
भाजपा जनता का ध्यान भटकाती है:
मायावती ने कहा कि बीजेपी सरकारें देश की आमजनता के प्रति अपनी कानूनी व संवैधानिक जि़म्मेदारियों से भागने के लिये ही हर दिन नये-नये शिगूफे छोडती रहती हैं व लोगों की धार्मिक भावनायों को बड़काने का प्रयास करती रहती हैं ताकि इनकी सरकार की घोर विफलताओं पर से लोगों का ध्यान बंटा रहे।
इसी क्रम में लगभग 42 वर्ष पहले कांग्रेस पार्टी द्वारा देश में थोपी गई “राजनीतिक इमरजेन्सी” की याद बार-बार ताज़ा की जाती है जबकि पूरा देश ने इनके “नोटबन्दी की आर्थिक इमरजेन्सी” की जबर्दस्त मार झेलने के साथ ही पिछले चार वर्षों से हर मामले में “अघोषित इमरजेन्सी” जैसा माहौल हर स्तर पर लोगों को झेलना पड़ रहा हैं. इससे हर समाज, हर वर्ग व हर व्यवसाय के लोग काफी ज्यादा घुटन
व त्रस्त महसूस कर रहे है.
इतना ही नही बल्कि खुलेआम बीजेपी के नेतागणों की तानाशाही व आपराधिक मानसिकता इतनी ज्यादा बढ गयी है कि वे लोग मीडिया जगत को जान की धमकी देने लगे है