उत्तर प्रदेश के सहकारिता विभाग में फर्जी ढंग से राज्यमंत्री बने सहारनपुर के कुंवर अम्मार अहमद के खिलाफ पुलिस ने शुक्रवार को ही मुकदमा दर्ज कर लिया लेकिन, वह अभी तक पुलिस की पकड़ से दूर हैं। अम्मार की गिरफ्तारी के बाद ही असली जालसाजों का राज खुलेगा। वैसे सचिवालय में ही जालसाजी की जड़े जमी हैं और कई मामलों के राजफाश के बावजूद इस पर अंकुश नहीं लग सका।
शासन के फर्जी पत्र के जरिये उत्तर प्रदेश सहकारी ग्रामोद्योगिक कृषि यंत्र एवं अनाज, दाल प्रशोधन आपूर्ति एवं विपणन संघ के निदेशक/राज्यमंत्री बनने के बाद अम्मार ने सहारनपुर पहुंचकर अपना स्वागत सत्कार कराया लेकिन, इसके साथ ही उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई। भाजपा नेताओं की शिकायत के बाद शासन स्तर पर हुई जांच में यह नियुक्ति फर्जी मिली और अम्मार के खिलाफ सहारनपुर की कोतवाली देहात में मुकदमा दर्ज कराया गया। सहारनपुर पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की लेकिन, वह हाथ नहीं आया। मंगलवार तक सहारनपुर की एक टीम लखनऊ में भी तफ्तीश के लिए आने वाली है।
दरअसल, पुलिस के हाथ यह सुराग लगे हैं कि लखनऊ में ही अम्मार को जालसाजों ने सब्जबाग दिखाए और लंबी रकम ऐंठकर उसे बेवकूफ बना दिया। अब सबसे अहम सवाल यह है कि अम्मार को सचिवालय में प्रवेश के लिए वाहन पास से लेकर नियुक्ति पत्र और तमाम कागजात किसने मुहैया कराए। यह सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं है। निसंदेह सचिवालय कर्मियों और कुछ प्रभावशाली लोगों के गिरोह ने यह कारनामा किया है।
अभी हाल में मुख्यमंत्री के ओएसडी के नाम पर मुरादाबाद के एक कारोबारी को माध्यमिक शिक्षा परिषद का सदस्य बनाने का झांसा देकर एक करोड़ की मांग करने वाले दो जालसाजों को लखनऊ पुलिस ने गिरफ्तार किया। ईद की व्यस्तता की वजह से यह जांच भी अभी नतीजे तक नहीं पहुंची है लेकिन, जालसाजों का एक बड़ा रैकेट सक्रिय है।
एक पूर्व मंत्री के ड्राइवर ने तो सपा सरकार में विधायकों को मंत्री बनाने का झांसा देकर बड़ी रकम ऐंठी। फिर जांच में पता चला कि बाराबंकी निवासी उस जालसाज के नेटवर्क में कई सचिवालयकर्मी भी शामिल थे। इस सरकार में अभिषेक निगम नामक एक जालसाज पुलिस के हत्थे चढ़ा जिसका बड़ा नेटवर्क सामने आया। धाक जमाने के लिए वह तो सचिवालय के अंदर एवं मंत्रियों के घरों पर लोगों को बुलाकर मिलता था। फर्जी नियुक्ति पत्र देकर विधानसभा सचिवालय में नौकरी देने का मामला भी उजागर हो चुका है। पर, सबसे खास बात यह कि इस तरह की बार-बार की जालसाजी के बावजूद पुलिस असली जालसाजों तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सकी।