उत्तर प्रदेश में पिछले साल नवम्बर में सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को बाटें जाने वाले स्कूली जूतों पर यही कथन सही बैठता है.
गर्मी में नंगे पैर आने को मजबूर बच्चे:
लखनऊ के जियामाऊ क्षेत्र के सरकारी प्राथमिक स्कूल की यह सच्चाई है. जहाँ क्लास 2 के राहुल ने बताया कि जूते फटे हुए है, उसका सोल निकल आया है और इतनी गर्मी में लगभग नंगे पैर स्कूल आने में बहुत तकलीफ़ होती है.
वही बच्चा और उसके जैसे कई साथी बच्चे तब बहुत उत्साहित हुए थे जब उन्हें पिछले साल नवम्बर में पहली बार काले स्कूली जूते और मोज़े मिले थे.
अपना नाम छुपाये रखने की शर्त पर वहीं के एक शिक्षक ने बताया कि लगभग सभी 50 स्कूली जूते जो हमारे स्कूल के छात्रों को दिवाली के ख़ास तौफे के रूप में मिले हैं, वो फट चुके हैं. कई बच्चे अपने फटे जूते को रबर बैंड से बांध कर काम चला रहे हैं तो कुछ रस्सी से बाँध कर. हालाँकि सरकारी अधिकारी इस मामले को दबाने में लगे हैं.
बेसिक शिक्षा विभाग के निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम बहादुर सिंह ने बताया कि “हमने सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिया है कि फटे जूतों को बदलवा दे. क्यूंकि जूतों पर 12 महीने की वारंटी है. जूते नवम्बर में दिए गये हैं. इसीलिए ये बदले जा सकते हैं.”
सरकार का 266 करोड़ का बजट फेल:
खाकी से गुलाबी और भूरी रंग की ड्रेस में बदलाव के बाद प्रदेश सरकार ने राज्य के सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले 1.54 करोड़ छात्रों को जल्द ही नये स्कूली जूते और मोजे बांटने का ऐलान किया था. अक्टूबर की शुरुआत में ही, राज्य मंत्रीमंडल ने क्लास 1 से 8 तक के छात्रों को मुफ्त जूते, मोज़े और स्वेटर बांटने का स्वीकृति दे दी थी. 1.54 करोड़ छात्रों में जूते और मोज़े बांटने के लिये 266 करोड़ का बजट बना था. जिसमें एक जूते की कीमत 135.75 रुपये और 21.85 रुपये मोज़े की कीमत है.
क्लास 3 के सतीश ने बताया के उसके जूते का ऊपरी हिस्सा फट जाने की वजह से अब वह सैंडल बन गया है. जूता होली से पहले ही फट गया था. छात्र कहता है, “इस तरफ फटे जूते पहन कर आने से अच्छा तो नंगे पैर स्कूल जाए या फिर चप्पल पहन कर जाएँ.
कई और बच्चों ने यह भी शिकायत की कि उनको उनके ना के जूते नही मिले. वो या तो अपने नाप के जूते से बड़ा या छोटा जूता पहन कर आते हैं.
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