उन्नाव कांड में पुलिस और सरकार की भूमिका से यह साफ़ है, कि सरकार बदल सकती है, पुलिस अधिकारी बदल सकता है लेकिन मामले की कार्रवाई में इनकी कार्यशैली नही बदल सकती. योगी सरकार हो या अखिलेश सरकार, ऐसे हाईप्रोफाइल केसों में सरकार का रवैया हमेशा ही शक पैदा करने वाला होता है. मामला भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का हो या अखिलेश सरकार के विधायक गायत्री प्रजापति का, सरकार की भूमिका अपराध खत्म करने में नही अपराधी को बचाने की रहती है .
सीएम योगी हो या अखिलेश, अपराध से बढ़ कर मंत्री/विधायक प्यारे:
उत्तर प्रदेश में अपराध रोज की आम बात जैसी है. बड़े बड़े दावे करने वाली सरकारें भी यूपी में अपराध रोकने में विफल हो जाती हैं, चाहे बात करें मायावती सरकार की, अखिलेश सरकार की या योगी सरकार की. अहम बात ये है कि अपराध रोकना मुश्किल हो सकता है. लेकिन यहाँ अपराधी को पकड़ कर सज़ा दिलवाना,ज्यादा मुश्किल होता है. शायद यहीं वजह हैं कि अपराधी बेधडल्ले से कांड पर कांड करते रहते है. ना उनको सरकार को कोई डर होता है और ना ही कानून का.
इसके पीछे का एक कारण और है, ज्यादातर अपराधों में सरकार और पुलिस की भूमिका ही संदेहास्पद होती है. अब चाहे हाल का उन्नाव गैंगरेप ले लो, जहाँ रेप के आरोपी की अब तक सिर्फ इसलिए गिरफ्तारी नही हुई , क्योंकि वे वर्तमान भाजपा सरकार के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर है. या चाहे, समाजवादी पार्टी के नेता गायत्री प्रजापति का रेप केस ले लो, जिसमे उनके केस की कार्रवाई में भी टालमटोल तब तक चलता रहा, जब तक खुद सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नही कर दिया.
आज जिस तरह से उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुलदीप सिंह सेंगर का मामला सुर्ख़ियों में है, उसी तरह फरवरी, 2017 में यूपी की राजनीति में ऐसे ही एक और रसूखदार मंत्री का बलात्कार मामला सुर्ख़ियों में था.
अखिलेश सरकार के मंत्री गायत्री प्रजापति पर भी रेप का आरोप लगा और इसी तरह उनके भी दबदबे में अपराध और पीड़िता दब गयी.
क्या था मामला:
गायत्री प्रजापति पर एक युवती ने रेप का आरोप लगा. उसका आरोप था की गायत्री प्रजापति के सरकारी आवास पर उसे नशीला पदार्थ दे बेहोश कर उसके साथ रेप किया गया. लेकिन तात्कालिक अखिलेश सरकार ने भी आज की योगी सरकार की तरह ही मामले पर कोई ध्यान नही दिया.
उस दौरान केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार को पीडिता से सहानुभूति हुई हो या सपा सरकार को इस मामले में घेरने की मंशा, जिसके चलते केंद्र ने मामले को मुद्दा बना दिया बावजूद इसके भी प्रदेश सरकार को कोई फर्क नही पड़ा.
हालांकि बाद में जब सुप्रीम कोर्ट के इस मामले को संज्ञान में लेते हुए सरकार को फटकार लगाई, तब जाकर मामला दर्ज किया गया.
पर मंत्री जी का रौब कहिये या सरकार का साथ गायत्री प्रजापति के ख़िलाफ़ मामला दर्ज होने के बाद भी वे अमेठी में अपने चुनाव प्रचार में लगे थे.
जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने कुलदीप सिंह सेंगर मामले के उछलने पर ये बयान दिया कि इस मामले में किसी को बख़्शा नहीं जाएगा, उसी तरह से तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बयान दिया था कि गायत्री प्रजापति को सरेंडर कर देना चाहिए.
दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने बयानबाजी तो कर दी पर उनकी मंशा पर सवाल उठाना लाजमी है. क्योंकि मुख्यमंत्री के ऐसे ब्यान के बाद भी पुलिस गायत्री प्रजापति की गिरफ्तारी क्यों नही कर पा रही थी. वही सवाल योगी जी के लिए भी की उठता है की अपराध पर 0 टोलेरेंस का नारा देनी वाली सरकार ने कुलदीप सिंह सेंगर की गिरफ़्तारी क्यों नहीं की?
गायत्री प्रजापति के मामले में उस वक्त दलील दी जा रही थी कि वे मुलायम सिंह यादव के ख़ासमख़ास हैं, लिहाज़ा अखिलेश उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकते. भ्रष्टाचार के मामले में उनकी कथित संलिप्ता को देखते हुए जब अखिलेश यादव ने उन्हें सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया भी, तो कुछ ही दिनों के अंदर वे उन्हें सरकार में वापस लेने को मजबूर हो गए थे.
ये भी कहा जाता रहा कि गायत्री प्रजापति, समाजवादी पार्टी के लिए खनन के धंधे से फंड जुटाने वाले नेता रहे थे, लिहाज़ा उनकी पहुंच पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक सीधे थी, सार्वजनिक मंच पर मुलायम सिंह के पांव के पास बैठकर फोटो खिंचाकर इसका वे प्रदर्शन भी कर चुके थे.
दूसरी ओर कुलदीप सिंह सेंगर सरकार में कोई मंत्री भी नहीं हैं, ना ही भारतीय जनता पार्टी में उनकी ऐसी हैसियत है, तो ऐसा क्या है कि जिसके चलते ऐसे लग रहा है कि योगी आदित्यनाथ का सरकारी महकमा उन्हें बचाने में जुटा रहा.
कुलदीप सिंह सेंगर ना तो संघी है और ना ही भाजपा का कोई पुराना चेहरा फिर उनको बचाने के लिए सरकार खुद की किरकिरी करवाने में भी झिझक नही रही, आखिर ऐसा क्यों?
कुलदीप सिंह सेंगर का दबदबा ही कहेंगे या उनके 16 साल की विधायकी का रौब जिसके चलते मामला उनके खिलाफ इतना नकारात्मक होने के बाद भी वे मुख्यमंत्री सचिवालय में खिलखिलाते नज़र आते है तो कभी लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के आवास के बाहर यह कहते हुए दिखते है कि आरोप ही लगा है, भगोड़ा तो नहीं हूं.
गायत्री और कुलदीप में क्या है अंतर:
मामला एक सा, दबंगई एक सी पर सरकार का रवैया अपने अपने नेता अपराधियों के लिए एक सा. लेकिन बस एक अंतर , गायत्री प्रजापति पुलिसिया दबिश के सामने फ़रार हो गए थे. प्रजापति ने राजनीति में आकर पैसों का साम्राज्य भले जुटा लिया लेकिन ऐसी दबंगई लाने वाली सामाजिक पृष्ठभूमि तो उनके पास नहीं ही थी.
गायत्री प्रजापति पर महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप था और महिला की नबालिग़ बेटी के साथ बलात्कार की कोशिश का आरोप था, जिसके चलते उन पर भी प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज़ एक्ट (पोक्सो) के तहत मामला दर्ज हुआ था.
कुलदीप सिंह सेंगर पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा है. ये मामला भी पोक्सो क़ानून के तहत दर्ज किया गया है. हालांकि, राजनीतिक तौर पर दोनों के ख़िलाफ़ साज़िश होने की बात भी होती रही है, लेकिन ऐसी आशंकाओं की भी कोई ठोस वजह नज़र नहीं आती. प्रजापति और सेंगर दोनों अपने साथ पीड़ित महिला का नार्को टेस्ट कराने की मांग करते रहे थे.
दोनों मामले में बारीक अंतर के आधार पर किसी के साथ रियायत नहीं बरती जा सकती, बावजूद इन समानताओं के कुलदीप सिंह सेंगर पर प्रथम दृष्टया आरोप ज़्यादा संगीन हैं क्योंकि पहले तो पीड़िता ने इस मामले में मुख्यमंत्री निवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की और दूसरी अहम बात ये है कि पीड़िता के पिता को पीट-पीटकर मौत के मुंह में पहुंचा दिया गया है.
सोशल मीडिया में जिस तरह की तस्वीरें और वीडियो पीड़िता के पिता के आए हैं, उससे इतना यही ज़ाहिर होता है कि जब सत्ता आपके हाथ में हो तो सिस्टम का आप कैसे मखौल उड़ा सकते हैं और आम आदमी सत्ता में मदांध तंत्र के सामने कितना निरीह हो सकता है.
इसकी झलक उस बानगी में भी दिखी है कि योगी आदित्यनाथ के बयान कि किसी को भी बख़्शा नहीं जाएगा, बावजूद राज्य के गृह विभाग के सचिव और उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक कुलदीप सिंह सेंगर को विधायक जी और माननीय विधायक जी कहते नज़र आए.
दोनों मामलो में सरकार की भूमिका:
गायत्री प्रजापति की गिरफ्तारी को लेकर राज्य पुलिस की छह टीमें दिन रात लगी हुई थीं, उनके ख़िलाफ़ लुक आउट नोटिस जारी किया जा चुका था, उनका पासपोर्ट रद्द किया जा चुका था.
लेकिन बात करे कुलदीप सिंह सेंगर की तो योगी के इस आरोपी विधयक को पुलिस महानिदेशक माननीय कह कर सम्बोधित कर रहे है. पूछने पर दलील देते है कि अभी तो उन्हें दोषी नहीं माना जा सकता, अभी तो आरोप लगे हैं. उनकी गिरफ्तारी पर राज्य पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह कहते हैं कि विधायक की गिरफ़्तारी नहीं हो सकती, वो सीबीआई करेगी.
हालांकि, पुलिस महानिदेशक और यूपी सरकार को तो ये भी बताना चाहिए था कि पुलिस हिरासत में पीड़िता की मौत कैसे हुई? लेकिन इसका जवाब देने के बदले सिस्टम और सरकार कुलदीप सेंगर के साथ नज़र आते रहे.
इसकी क्या वजह हो सकती है, फौरी तौर पर दो वजहें दिख रही हैं- एक तो कुलदीप सिंह सेंगर, योगी आदित्यानाथ की बिरादरी से आते हैं. संयोग ऐसा है कि जिस थाने ने पीड़िता का मामला दर्ज नहीं किया था, वहां के थानेदार से लेकर ज़िला पुलिस प्रमुख से लेकर राज्य पुलिस के मुखिया तक, सब ठाकुर हैं.
ऐसे में लग तो यही रहा है कि योगी आदित्यनाथ की ठाकुरवादी राजनीति से उनके हौसले बुलंद हैं और योगी आदित्यनाथ की सरकार उनको बचाने की कोशिश करती दिखी भी है.
हालांकि, एक बात ये भी कही जा रही है कि जिन लोगों के दामन के सहारे कुलदीप सिंह सेंगर बीजेपी में आए थे, वो योगी आदित्यनाथ के दूसरे खेमे के लोग हैं. माना जाता है कि राज्य में बीजेपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या, कुलदीप सेंगर को बीजेपी के पाले में लेकर आए थे.
पॉक्सो क़ानून की संवदेनशीलता कुलदीप सिंह सेंगर पर कार्रवाई की मांग करता था, ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि ये काम उत्तर प्रदेश की पुलिस ने क्यों नहीं किया?
योगी आदित्यनाथ सरकार इस मामले में सख़्त कार्रवाई करके सरकार के अपराध को लेकर किये दावों के साथ एक उदाहरण सेट कर सकती थी, पर उल्टा सरकार ने अपनी किरकिरी करवा ली.
कहा हैं, प्रधानमंत्री और राज्यपाल:
गायत्री प्रजापति का मामला सामने आने के बाद जहाँ एक तरह उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चिट्टी लिखकर इस सवाल उठाए थे. वही प्रधानमंत्री ने नपुर में अपनी चुनावी रैली में सपा-कांग्रेस गठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा था, “किसी नए काम से पहले गायत्री मंत्र का जाप होता है, लेकिन गठबंधन ‘गायत्री प्रजापति मंत्र’ का जाप करता है.”
राम नाइक अभी भी राज्यपाल हैं, लेकिन ऐसी अब ना उन्हें पीडिता की चिंता है और ना राज्य की. और ना ही इस मामले में प्रधानमन्त्री का अब कोई ब्यान आया.
हालांकि गायत्री प्रजापति को देर से ही सही पर गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन सरकार सवालों के घेरे में आ गयी थी और इस मामले के बाद अखिलेश सरकार पर लोगों का भरोसा डगमगा गया था.
उत्तर प्रदेश में वो भरोसा एक बार फिर से तार तार हो रहा है, इस बार इसके लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है.रेप की कार्रवाई तो सही समय पर हुई नही. और शायद इसी का खामियाजा पीडिता को अपने पिटा की मौत से भी चुकाना पड़ा. रेप केस मर्डर केस में तब्दील हो गया. इसकी जिम्मेदार भी योगी सरकार ही है.
इन्होने भी करवाई सरकार की किरकिरी:
अमणमणि के खिलाफ पत्नी की हत्या का आरोप
बसपा शासन में पुरुषाेेत्तम द्वेवेदी हुए थे गिरफ्तार
बहरहाल उस केस में तो देर से ही सही पर अपराधी को सजा तो मिली. पर पूर्ण बहुमत वाली इस सरकार में आमजनता का विश्वास जीतता है या सरकार और सरकार के रौबदार विधायक की दबंगई, यह देखने वाला होगा. सुप्रीम कोर्ट और इलाहबाद हाई कोर्ट के इस मामले में संज्ञान लेने के बाद सरकार और पुलिस दोनों पर कम से कम विधायक के केस की कार्रवाई शुरू करने का दबाव तो बं ही गया है.