गुजरे जमाने की मशहूर गायिका बेगम अख्तर का लंबी बीमारी के बाद आज लखनऊ में निधन हो गया। उनकी गजल, ठुमरी और दादरी को एक नई पहचान देने के लिए आज भी याद किया जाता है। पिछले साल 7 अक्टूबर को बेगम अख्तर के 103वें जन्मदिवस के मौके पर गूगल ने डूडल बना कर उन्हें श्रृद्धांजलि दी। लेकिन उनकी शिष्य और दरबारी-बैठक गायिकी की आखिरी फनकार जरीना बेगम पिछले काफी दिनों से लखनऊ स्थित केके अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं। आलम यह था कि इलाज तक के लिए पैसे नहीं थे। जीर्ण बेगम के दामाद नवेद ने सभी से गुहार लगाई, लेकिन सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं किया गया। आखिरकार उन्होंने शनिवार को अंतिम साँस ली।
जरीना बेगम के इलाज के लिए पैसे न होने पर हमारी टीम के साथ मिलकर रेडियो चैनल रेड एफएम ने एक मुहीम भी चलाई थी जिसका नाम था #अवधकीआख़िरीआवाज़। जरीना बेगम के दामाद नवेद कहते हैं मदद की गुहार सभी से लगाई थी हमने मगर सिर्फ रेड एफ एम और uttarpradesh.Org ने हमारी सोशल मीडिया के माध्यम से मदद की थी, लेकिन सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं किया गया। आज सुबह मेरी सास की आवाज़ हमेशा के लिए शांत हो गई।
#AwadhKiAkhiriAwaz जरीना बेगम के लिए नवाबों के शहर लखनऊ ने दिखाया अपना प्यार, क्राउड फंडिंग से जुटाए 1 लाख 21 हज़ार 823 रुपये और BNCET कॉलेज की तरफ से एक ई -रिक्शा उनके परिजनों को दिया गया. @RedFMIndia और @WeUttarPradesh टीम की तरफ से आप सभी का आभार. @tuchchatushar pic.twitter.com/hxSEedZRwO
— UttarPradesh.ORG News (@WeUttarPradesh) April 10, 2018
बता दें डालीगंज के एक निजी केके अस्पताल के आईसीयू में जरीना बेगम भर्ती थीं। उनके घरवालों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि इलाज भी ठीक से करवा सकें। लेकिन फिर भी परिवार वाले अपनी तरफ से कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे। दामाद मोहम्मद नावेद कहते हैं कि तीन साल पहले प्रदेश सरकार ने जरीना बेगम को पांच लाख रुपये की धनराशि वाला बेगम अख्तर अवॉर्ड दिया था। वह भी इलाज में खर्च हो गया था मगर उसके बवाजूब हम ज़रीना बेग़म को बचा नहीं पाए।
#AwadhKiAkhiriAwaz : जरीना बेगम के परिवार को सौंपा गया चेक. @RedFMIndia https://t.co/1v5tE9srwM
— UttarPradesh.ORG News (@WeUttarPradesh) April 9, 2018
नवेद के मुताबिक उनके गुर्दे में दिक्कत थी। पहले सिविल होस्पिटल में एडमिट करवाया था लेकिन सुधार होता न देख फिर से केके हॉस्पिटल में ले आये जहाँ कई साल तक इलाज चला था। जिसके बाद उनकी आज मौत हो गई नावेद ने खा कि पैसे की दिक्कत तो आ ही रही थी, फिर भी कोशिश पूरी है करी गई कि सरकार की तरफ से किसी मंत्री का फोन आये मगर आज तक नहीं आया। कुछ लोग हैं, जो जरीना बेगम की मदद के लिए आगे आए थे। लेकिन उनकी मदद भी अब कम पड़ गई थी।
नावेद के मुताबिक अस्पताल का बिल एक दिन का हजारों में था। रोज़ कहां से लाएं इतने पैसे? आमदनी का जरिया भी सिर्फ एक ई रिक्शा है जो हमें लोगों की मदद से मिला। सिविल अस्पताल में जवाब दे दिया गया था। तब हम उन्हें उसी अस्पताल में लेकर आ गए, जहां उनका हमेशा इलाज चलता रहा।
गौरतलब है कि उनकी बेटी रूबीना, दामाद नावेद और दिव्यांग बेटा अयूब उनके साथ रहते हैं। जरीना बेगम मूलरूप से बहराइच के नानपारा कस्बे की रहने वाली हैं। गाने में उनकी दिलचस्पी बचपन में अपने आसपास के माहौल से हुई। उनके वालिद शहंशाह हुसैन नानपारे के स्थानीय कव्वाल थे। इसके बावजूद घर में लड़कियों के गाने को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता था। अम्मी ने छिप-छिपाकर गाने का रियाज शुरू किया। ऐसे ही छिप-छिपकर वे रेडियो स्टेशन तक पहुंचीं। उनके हुनर को असल मुकाम तब मिला, जब वे बेगम अख्तर के नजदीक आईं। बीमारी की हालत में भी उन्होंने दिल्ली के इंदिरा गांधी हॉल में गाना गाया था और यही उनकी आखिरी परफॉर्मेंस थी।
बीमार होने के बावजूद दी थी परफॉर्मेंस
जरीना बेगम की गुजरी जिंदगी के बारे में नावेद बताते हैं कि अम्मी मूलरूप से बहराइच के नानपारा कस्बे की रहने वाली हैं। गाने में उनकी दिलचस्पी बचपन में अपने आसपास के माहौल से हुई। उनके वालिद शहंशाह हुसैन नानपारे के स्थानीय कव्वाल थे। इसके बावजूद घर में लड़कियों के गाने को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता था। अम्मी ने छिप-छिपाकर गाने का रियाज शुरू किया। ऐसे ही छिप-छिपकर वे रेडियो स्टेशन तक पहुंचीं। उनके हुनर को असल मुकाम तब मिला, जब वे बेगम अख्तर के नजदीक आईं।
बेगम अख्तर ने उनको बैठक गायिकी के आदाब और तौर-तरीके सिखाए। इसके बाद जरीना ने शौहर तबला-नवाज कुरबान अली के साथ देशभर की महफिलों में अपनी गायिकी के जौहर बिखेरे। आकाशवाणी ने भी उनको ए ग्रेड आर्टिस्ट के रूप में स्वीकार किया। अम्मी न तो पढ़ी-लिखी थीं और न ही इतनी तेज कि बदलते वक्त से कदम मिला सकें। यही वजह है कि उन्हें अपनी दुनिया में एक वक्त के लिए शोहरत तो खूब मिली लेकिन वो उनकी जिंदगी को खुशहाली नहीं बख्श पाई। नौ साल हो गए अम्मी लकवे के साथ कई बीमारियों से लड़ रही हैं। उन्होंने बीमारी की हालत में दिल्ली के इंदिरा गांधी हॉल में गाया था और यही उनकी आखिरी परफॉर्मेंस थी।