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बनारस के जिंदा ‘संतोष सिंह’ को सरकारी सिस्टम ने घोषित किया ‘मृत’

Man Dead In Govt Records Struggles To Prove Himself Alive

Man Dead In Govt Records Struggles To Prove Himself Alive

मूलरूप से वाराणसी के रहने वाले संतोष को मुंबई बम धमाकों के बाद सरकारी दस्तावेजों में मृत घोषित कर दिया गया. जिसके बाद सालों से संतोष सिंह अपने गले में ‘मैं जिन्दा हूँ’ कि तख्ती लटकाए खुद को जिंदा साबित करने की जद्दोजहद में लगे हुयें हैं. लेकिन अधिकारियों ने आँखे मूंद रखी हैं.

एक मुर्दे की जिंदा कहानी, जिसकी मौत का दुनिया ने तमाशा बना दिया लेकिन वो मरा ही नही और सिस्टम की बदहाली तो इतनी कि उसे अपने आप को जिंदा दिखाने के लिए 15 साल का भी वक्त कम लग रहा है। बदहाल और भ्रष्ट सिस्टम की ऐसी तस्वीर जिसमें एक आम आदमी को सरकारी दस्तावेजों में मृत घोषित कर दिया की अब उस आदमी को अपने गले में “मैं जिंदा हूँ” कि तख्ती लटका कर चलना पड़ रहा है।

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‘मैं जिन्दा हूँ’ की तख्ती लटकाकर घूमने पर मजबूर संतोष:

मामला बनारस के एक गाँव के रहने वाले संतोष सिंह का हैं. जिसके कुछ साल पहले सरकारी दस्तावेजों में मृत घोषित कर दिया गया, जिसके बाद से संतोष सालों से अब तक लगातार अपनी पहचान पाने के लिए शासन प्रशासन के दरवाजे खटखटा रहा हैं.

लेकिन कागजी दस्तावेजों में मर चुके संतोष का दोबारा जिन्दा होना नामुमकिन सा लगता है. वहीं संतोष खुद को जिन्दा साबित करने और प्रशासन की आँखे खोलने के लिए खुद के गले में ‘मैं जिन्दा हूँ’ की तख्ती लटकाए घूमते हैं.

अभिनेता नाना पाटेकर के बावर्ची रह चुके हैं संतोष:

संतोष सिंह को जीते जी मार देने की कहानी सन 2000 से शुरू होती है। उस वक्त संतोष अपने गांव से फिल्म एक्टर बनने की चाहत में मुम्बई चला गया था संतोष के मुताबिक उस वक्त गांव में मशहूर अभिनेता नाना पाटेकर फिल्म ‘आंच’ की शूटिंग के सिलसिले में आये हुए थे।

गांव में ही उसकी मुलाकात नाना से हुई और वो उसे अपने साथ लेकर मुम्बई चले गए। वहां वो नाना के साथ ही रहकर उनके लिए खाना पकाने का काम करता था।

दलित लड़की से शादी करने पर गाँव से बहिस्कृत:

इसी दौरान मुंबई में उसकी मुलाकात एक दलित लड़की से हुई और संतोष ने उससे शादी कर ली जिसके बाद गांव वालों ने उसे बहिष्कृत कर दिया। फिर उसके बाद मुंबई ब्लास्ट में संतोष सिंह को मृत घोषित कर उसकी जमीन हड़प ली।

जिसको लेकर संतोष सिंह पिछले 15 सालों से लगातार चक्कर काट रहे हैं लेकिन उन्हें अभी तक इंसाफ नहीं मिल पाया। और अब संतोष सिंह ने  अपने जैसों  के साथ मिलकर जिंदा मुर्दों को जिंदा करने का बीड़ा उठा लिया है।

मुंबई धमाकों में घोषित किया मृत:

वाराणसी के चौबेपुर के संतोष सिंह को कुछ सरकारी कर्मचारियों और उसके रिश्तेदारों ने जमीन के लालच में जीते जी मार डाला सरकारी दस्तावेजों में उन्हें मृत घोषित कर उनकी जमीन हड़प ली।

इस नाइंसाफी के बाद संतोष पिछले पन्द्रह सालों से जस्टिस के लिए लड़ाई लड़ रहा है अपने जिंदा होने का प्रूफ लोगों को अपने गले में बोर्ड पर लिखे मैसेज के जरिये बता रहा था.

परिजनों ने हड़पी 12 एकड़ जमीन:

अपनी आपबीती सुनाते हुए  संतोष ने बताया  कि महाराष्ट्र में एक दलित लड़की से शादी करने के बाद उसके रिश्तेदारों ने उसे  बहिष्कृत कर उसे मुम्बई ब्लास्ट में मृत बता उसकी साढ़े बारह एकड़ जमीन अपने नाम करा ली।

इसी के बाद से वह अपने गले में ‘मैं जिंदा हूं’ का बोर्ड टांगकर घूम रहा है. अब संतोष सिंह ने अपने जैसे जिंदा मुर्दों को न्याय दिलाने की ठान ली है और उसी को लेकर उन्होंने लखनऊ में सम्मेलन का भी आयोजन किया था  लेकिन  प्रशासन की अनुमति ना मिल पाने के कारण उन्हें अपना सम्मेलन  कैंसिल करना पड़ा।

15 साल से खुद को जिन्दा साबित करने में लगे संतोष:

यूँ तो ये प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस से आते है लेकिन ये अपने आप को ये भी नही दिखा सकते कि मैं संतोष सिंह हूँ क्योंकि सरकार की फाइलों में तो ये मर चुके है।

लेकिन इसके पीछे कसूर किसका है, क्या संतोष ने दलित लड़की से शादी की तो उसको ये सजा मिली या फिर ये की वो अपने सपनो को पूरा करने के लिए मुम्बई चला गया। जिंदा रहकर भी मर कर जीने की सजा ये भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मुँह चिढ़ाती नजर आती है।

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