इलाहाबाद कौशाम्बी के बिरमेर और अहलाद पुर गांव में पुलिस कर्मियों ने मसीही समाज के लोगों को प्रार्थना सभा करने पर रोक लगाई. जिसकी वजह से मसीही समाज आक्रोशित है और कोर्ट में याचिका दायर कर चुका है. अब उन्हें जल्द से जल्द न्याय का इंतज़ार है.
पूरा मामला:
इलाहाबाद में कुछ पुलिस कर्मी मसीही समाज के लोगों को प्रार्थना सभा करने से रोकने लगे. कानून और संविधान के खिलाफ जा कर ऐसा करना गलत है. न यह तर्कसंगत है और न ही न्यायसंगत. मसीही समाज ने अरोप लगाया है की उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है.
क्या हैं मौलिक अधिकार?
भारतीय नागरिक को दिए गये 6 मौलिक अधिकारों में से के है धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, जोकि अनुच्छेद 25-28 में वर्णित है. इसके अनुसार कोई व्यक्ति कोई भी धर्म अपना कर उसके अनुसार आचरण और उसका प्रचार कर सकता है. धार्मिक कार्यों का प्रबंध कर सकता है. किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए वह कर देने के लिए बाध्य नहीं है. और कुल शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए कोई भी बाध्य नहीं है.
शुरू हो गयी है कार्यवाही:
मसीही समाज के आरोपों के आधार पर पुलिस के खिलाफ याचिका दायर हो गयी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से किया जवाब तलब भी किया है.
कौशाम्बी के डीएम,एसपी,एसडीएम चायल और एसएचओ से 24 घंटे में व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है.
कौशाम्बी के बिरमेर और अहलाद पुर गांव में प्रार्थना सभा से रोकने का पुलिस पर आरोप लगाया गया है. 27 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी.
याची रोशन लाल और कई अन्य ने याचिका दाखिल की है.
जस्टिस गोविंद माथुर की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है सुनवाई मामले की सुनवाई.