हाल में हुए उत्तर प्रदेश लोकसभा उपचुनावों में बसपा प्रमुख मायावती ने भले ही सपा को 2 सीटों पर जीत दिलवाने में मदद की हो लेकिन मायावती ने इस बात का साफ़ संकेत दे दिया है कि उनकी पार्टी आगामी 2019 के आम चुनावों में सपा के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर सख्त समझौता करेगी.
टिकेट बंटवारे को लेकर सख्त रहेंगी मायावती
मायावती ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा कि वह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से ज्यादा अनुभवी और सीनियर है. अपने इस बयान से उन्होंने साफ़ कर दिया कि सपा के 2017 विधानसभा चुनाव और 2014 लोक सभा चुनावों में बीएसपी से बेहतर प्रदर्शन करने के बाद भी टिकटों का सही बंटवारा होना आसान नही होगा.
यह बयान उनके उपचुनावों से पहले दिए हुए बयान को साफ़ करता है, जब उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी सपा के साथ गठबंधन तब करेगी जब उन्हें सम्मानित सीट दी जाएँगी.
2014 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की 80 सीटों में बसपा की एक भी सीट नहीं निकली थी जबकि सपा ने 5 सीट पर जीत हासिल की थी. हालाँकि दूसरे चरण में सपा ने 31 लोकसभा सीटे और बसपा ने 33 सीटों पर जीत हासिल की थी. जिन सीटों पर सपा दूसरे स्थान पर रही, वहां अभी जल्द ही हुए गोरखपुर और फूलपूर चुनावों में सपा ने बसपा के पूर्ण सहयोग से जीत हासिल कर ली.
वैसे अबतक लगभग 5 सीटों पर बसपा ने सिर्फ 200 से 3000 वोटों के साथ सपा से आगे रहकर जीत हासिल की है. बसपा सलेमपुर में 200 वोटों से सपा से आगे रही थी, वही धौरहरा में 500 वोटों से, अलीगढ में 1500 वोटों से और सुल्तानपुर एवं हरदोई में 3000 वोटों से आगे रही थी. एक सपा कार्यकर्ता ने कहा कि सामान्यतः सपा भी इन सीटों पर दावा कर सकती है.
सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान से इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि समस्या का हल निकाला जायेगा. भाजपा को हराने के उद्देश्य से इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों के साथ आने से भाजपा को संघर्ष की सम्भावना का अंदाजा हो गया है.
यादव मायावती को सीनियर सहयोगी के रूप में पहचान देंगे?
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने अपनी पहचान छुपाते हुए बताया कि”यह देखना मुश्किल होगा कि यादव मायावती को अपने सीनियर सहयोगी के रूप में पहचान देंगे.बीएसपी के 19 विधायकों की तुलना में सपा के पास 47 विधायक है. लोकसभा में सपा के अब 7 एमपी है जबकि लोकसभा में बसपा का एक भी एमपी नही है.2017 के चुनावों में कांग्रेस के साथ बेमेल गठबंधन के बाद सपा पहले ही बड़ी हार का सामना कर चुकी है.”
मायावती के इस बयान से कि उनकी पार्टी फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनावों की तरह कैराना और नूरपुर उपचुनाव में सीधी सहभागिता नही देगी, से भी साफ़ है कि आगामी 2019 के चुनाव में अपनी पार्टी के लिए वह बड़ी संख्या में सीटों को सुरक्षित करने के लिए सपा पर दबाव बना रही है.
इस गठबंधन में कांग्रेस का साथ मामले को बिगाड़ सकता है क्यूंकि 2014 के दूसरे चरण में अमेठी और रायबरेली को छोड़ कर, जहाँ उनके उमीदवार हैं, पार्टी को 7 और सीट चाहिए थी, जैसे कानपुर के लिए श्रीप्रकाश जयसवाल और बाराबंकी के लिए पी.एन.पुनिया.
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के सभी 7 एमएलए द्वारा बीएसपी उमीदवार के लिए वोट देने बाद मायावती ने कांग्रेस की भी तारीफ की थी, यह भी साफ़ इशारा देता है कि मायावती बीजेपी के खिलाफ इस गठबंधन में कांग्रेस का भी साथ चाहती हैं.
इस गठबंधन में आरएलडी, निषाद पार्टी और पीस पार्टी भी कम से कम एक सीट तो चाहती ही हैं. भाजपा नेता सभी पार्टियों में सीट बंटवारे की मांग और दबाव को गठबंधन के टूटने की संभावना के रूप में देख रहे हैं.
एक समय में (तात्कालिक मुख्मंत्री) कल्याण सिंह ने सपा के साथ गठबंधन किया था पर बड़ी हार के बाद बीजेपी ने अपना रास्ता बदल लिया था.