मिर्जापुर में दो गरीब आदिवासी परिवारों का घर पिछले साल बारिश में ढह गया था, जिसके बाद 11 महीने होने के बाद भी आज तक ये परिवार बिना छत के जीवन-बसर करने को मजबूर हैं. न तो इनके काम सरकारी प्रधानमंत्री आवासीय योजना आई और न ही सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने के बाद कोई अधिकारी ही इनके लिए आशियाने का इंतजाम कर सका.
पिछले साल बरसात में ढह गया था घर:
प्रधानमंत्री आवासीय योजना गरीबों और बेघर को आशियाना देने की एक महत्वपूर्ण योजना हैं लेकिन इस योजना का फायदा पात्रों को मिल रहा हैं या नहीं, और कितने जतन करने के बाद उन्हें सर ढकने के लिए छत मिल रही हैं, ये बात तो कोई जरुरतमन्द ही बता सकता है.
खबर मिर्जापुर से है, जहाँ सरकारी मदद से गरीबों को मिलने वाले आवास की जमीनी हकीकत का पता चलता है. इसकी सच्ची तस्वीर मिर्ज़ापुर के लालगंज विकास खण्ड में देखा जा सकता है, जहां खम्हरिया कला गांव में पिछले 11 माह से दो आदिवासी परिवार गांव के सरकारी भवन में शरण लेने को मजबूर है।
गाँव का सामुदायिक केंद्र 11 महीनों से बना हुआ है ठिकाना:
आदिवासी तबके से आने वाले इन परिवारों के आशियाने को पिछले वर्ष जुलाई माह में भीषण बरसात के बाद आई बाढ़ ने निगल लिया था। उस समय शरण लेने के लिए कई परिवार गाँव में मौजूद सरकारी पंचायत भवन में पहुंचे थे।
आज भी लगभग एक साल बीतने के बाद भी दो परिवार इसी सामुदायिक भवन में शरण लेने को मजबूर है। दोनों परिवारों की पूरी गृहस्थी इसी सरकारी भवन से चल रही है।
बेहद गरीब यह परिवार किसी तरह से अपना जीविकोपार्जन कर रहा है। ये पीड़ित परिवार बाढ़ में पूरी तरह से श्रतिग्रस्त हो चुके घर को बनवा नहीं पा रहे है.
सरकारी आवासीय योजना का लाभ अब तक नहीं:
घर के लिए इन लोगों ने कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के कार्यालय का चक्कर काटे पर एक वर्ष बीतने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है. न तो इन्हें मुवावजा मिला और न ही आवास। वहीं इस मामले में पीड़ितों का कहना है कि उनकी कोई सुनने वाला नहीं है.
जब इस मामले में जिले के डीएम से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मामला अभी संज्ञान में आया है. जल्द ही इन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना और मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत आवास दिया जाएगा.
बहरहाल एक बरसात से दूसरी बरसात आ गयी लेकिन ये पीड़ित परिवार आज भी बेघर हैं और अपने आशियाने ले लिए सरकार और प्रशासन से आस लगाये बैठे हैं.