दीपावली 2018 की तैयारियां जोरों पर हैं। इस दौरान चल रहे चायनीज सामान के बहिष्कार के मद्देनजर चाइनीज झालर नहीं बल्कि मिट्टी के दीये लोगों की पसंद बन रहे हैं। दीयों की खरीदारी तेज होने से कुम्हार भी काफी गदगद है। कुछ लोग विरोध करते हुए कह रहे हैं कि इस वर्ष चाइना निर्मित झालर नहीं जलाएंगे। हमारे पैसों से ही हमें चीन हमारे देश के लोगों को आंख दिखा रहा है। दीपावली में चाइनीज झालर व लाइट न लगाने के लोगों से किए जा रहे आग्रह के बीच कुम्हारों में उनके मिट्टी के दीपक बिकने की आस जग गई है।
दिन-रात एक-कर कुम्हार मिट्टी का दीपक तैयार करने में जुट गए हैं। कुल मिलाकर इस बार दीपावली की रात मिट्टी के दीपक की रोशनी से गुलजार होगी। लोगों को पटाखे जलाने के बजाय अपने घर को सरसों तेल के दीये जलाना चाहिए। इससे न सिर्फ हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाए रख सकते हैं बल्कि पटाखे जलाने से होने वाले वायु और ध्वनि प्रदूषण के साथ ही फैलने वाली गंदगी को भी रोक सकते हैं। दीपावली में पटाखे जलाकर अपने माता-पिता द्वारा बड़ी मेहनत से जमा किया गया धन व्यर्थ जला देते हैं। उस धन का उपयोग जनकल्याण के कार्य में कर हम जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं।
कुम्हार जाति के लोगों में एक नई आस जग गई है कि उनके मिट्टी के दीपक इस बार ज्यादा बिकेंगे और दीपावली की रात उजाला उनके मिट्टी के दीपक से होगा। ऐसे में कुम्हार मिट्टी के दीपक बनाने में जुट गए हैं। राजधानी लखनऊ के सरोजनीनगर इलाके के बिजनौर गांव के आसपास के इलकों में भी कुम्हार भी दिन रात एक-कर मिट्टी के दीपक बना रहे हैं। उनका कहना है कि इस बार मिट्टी के दीपक ज्यादा बिकने की संभावना है। इस बार एक मिट्टी का दीपक पंद्रह दिन पहले से ही स्टोर भी किए जा रहे हैं।
मिट्टी दीया खरीदने से जहां कुम्हारों का रोजगार बढ़ेगा वहीं देश की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। जब हमारे देश का पैसा देश में रहेगा, तो हम किसी भी आतंकवादी संगठन से लड़कर हम उन्हें ठिकाने लगा सकते है। कहा कि हमारे देश के कुम्हारों का रोजगार बंद हो गया था। लेकिन अब उन्हें दीपावली पर्व पर इस वर्ष काफी बिक्री है। कुम्हार ने बताया कि इस वर्ष मिट्टी का दीया, कलश, घंटी, कुल्हड़ आदि का बिक्री जोरों पर है। सरकार ने प्लास्टिक बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उस समय कुम्हारों के दिन बहुरने लगे थे एवं मिट्टी के बर्तन बिकने शुरू हो गए। लेकिन कुछ दिनों बाद से ही प्लास्टिक बिकना शुरू हो गए।
दीपावली हिन्दुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार है। उससे जुड़ी हर वस्तु की खरीदारी हम वक़्त से पहले ही कर लेते हैं। इन्हीं सब वस्तुओं में से एक हैं मिट्टी के दिए। पहले जहाँ कुम्हारों से साधारण दिए खरीदे जाते थे, आजकल वही अब कई रंगों और परिवेशों में मिलने लगे हैं। इतना तो सभी को पता है कि दिए दिवाली पर लेने चाहिए, लेकिन क्यूँ लेने चाहिए ये शायद किसी को भी पूर्ण रूप से नहीं पता है। कहते हैं जैसे श्री राम ने रावण का वध कर बुराई के ऊपर अपनी जीत स्थापित की थी, उसी प्रकार दिया भी अँधेरे को मिटा रौशनी फैलाता है। अँधेरा यहाँ बुराई और दिए की रौशनी अच्छाई का प्रतीक है। दीयों को जला हम अपने मन और जीवन में फैले अंधकार को दूर कर उन्हें फिर से रोशन बनाते हैं।
लोग ऐसा मानते हैं की दिया जलने से जो भी जिंदगी में नकरात्मक उर्जा मोजूद होती है, वह धीरे धीरे सकरात्मक उर्जा में परिवर्तित हो जाती है। यही नहीं, जिस तरह दिए की बाती सभी तकलीफों को झेल जलती रहती है, वैसे ही हमें भी कभी परेशानियों से डर कर हार नहीं माननी चाहिए और कोशिश करते रहना चाहिए। प्राचीन समय में दिए की रौशनी से ही लोग पढ़ाई करते थे। लाइट के आने से दिए जलने तो बंद हो गए लेकिन अभी भी कई लोग दिवाली पर जलते दीयों से पढ़ाई में एकाग्रता और मन लगने की प्रार्थना करते हैं। इसका कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है, लेकिन हाँ लोगों की सालों की मान्यता बिलकुल गलत हो ऐसा भी मुमकिन नहीं है। तो यह तो थी वो मान्यताएं जिस वजह से दीपक जलाना दिवाली पर इतना महत्वपूर्ण माना जाता है। आगे जानते हैं कि इस दिवाली पर किस प्रकार के दिए खरीदने के लिए उपलब्ध है और कहाँ।
Photos Credit- Suraj Kumar
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