वंसत पंचमी का त्योहार आज पूरे देश में बड़े धूम धाम से मनाया जा रहा है। वहीं, बीते साल यह त्योहार एक फरवरी मनाया गया था। लोगों की माने है कि इस दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था।

माघ शुक्ल पंचमी तिथि को बंसत पंचमी कहा जाता है। इस तिथि में देवी सरस्वती की पूजा का विधान है।

यह वर्ष पंचमी तिथि का आरंभ 21 जनवरी को दोपहर 3 बजकर 33 मिनट पर हुआ है।

पंचमी तिथि अगले दिन यानी 22 तारीख को शाम 4 बजकर 24 तक रहेगी।

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शास्त्र के नियम के अनुसार दोपहर के बाद पंचमी तिथि होने से अगले दिन पंचमी तिथि होने पर पूजा की जानी चाहिए।

इसलिए 22 जनवरी को सुबह 7 बजकर 17 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक देवी सरस्वती की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त रहेगा।

भारतीय पंचांग में 6 ऋतुएं हैं, इनमें से वसंत ऋतुओं का राजा भी माना जाता है।

वसंत ऋतु का आगमन पतझड़ के बाद होता है।

वहीं वसंत ऋतु का आगमन नई फसल के उगने और फूलों के खिलने का त्योहार भी कहा जाता है।

इस खुशी में देशभर में उत्सव मनाया जाता है।

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मान्यता है कि वंसत पचंमी से ठंड कम हो जाती है और दिन तेजी से बड़े होने लगते हैं।

वहीं मंदिरों में भगवान की मूर्ति का वसंती कपड़ों और फूलों से श्रंगार किया जाता है।

धूम-धाम के साथ यह महोत्सव सेलिब्रेट किया जाता है। ब्रज में भी वसंत के दिन से होली का उत्सव शुरू हो जाता है।

देवी सरस्वती को ज्ञान, कला, बुद्धि, गायन-वादन की अधिष्ठात्री माना जाता है।

इसलिए इस दिन विद्यार्थी, लेखक और कलाकार देवी सरस्वती की उपासना करते हैं।

विद्यार्थी अपनी किताबें, लेखक अपनी कलम और कलाकार अपने म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट , बाकी चीजें मां सरस्वती के सामने रखकर पूजा करते हैं।

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यह त्योहार पूरे देश में श्रद्धा और उल्लाह के साथ मनाया जाता है।

सरस्वती पूजा या बसंत पंचमी के दिन आमतौर पर लोग पीले कपड़े पहनकर पूजा करते हैं।

यदि यौवन हमारे जीवन का वसंत है तो वसंत इस सृष्टि का यौवन है।

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भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’ कहकर ऋतुराज वसंत को अपनी विभूति माना है।

भगवान श्रीकृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता हैं। इसीलिए ब्रजप्रदेश में राधा – कृष्ण का आनंद-विनोद बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

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