देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में ‘महासंग्राम’ मचा हुआ है. प्रदेश अध्यक्ष पद से बिना बताये हटाये जाने पर अखिलेश नाराज हुए. जिसका रिएक्शन ये हुआ कि शिवपाल को अपने मंत्रालय से हाथ धोना पड़ गया. शिवपाल ने भी नाराजगी दिखाते हुए पहले तो इस्तीफे के संकेत दिए लेकिन मुलायम के समझाने पर कुछ देर तक चुप रहे.
शिवपाल और अखिलेश को समझाने की तमाम कोशिशें असफल साबित हुईं. एक तरफ रामगोपाल यादव ‘ ऑल इज वेल’ कहते रहे वहीँ दुसरी तरफ देर रात मुलायम शिवपाल और अखिलेश के बीच मीटिंग फेल गई.
उसी वक्त शिवपाल ने प्रदेश अध्यक्ष के पद सहित मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मतलब स्पष्ट था कि शिवपाल को मंत्रालय वापस दिए जाने पर बात नही बनी. इस्तीफे के बाद हालाँकि अखिलेश यादव ने मंत्री पद से इस्तीफा नामंजूर कर दिया. लेकिन विवाद ख़त्म होने का नाम नही ले रहा है. सपा सुप्रीमो के सामने अब उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती उनके बेटे और उनके भाई के बीच विवाद है.
हमेशा मुलायम के फैसले का शिवपाल ने किया सम्मान:
- मुलायम की अंगुली पकड़कर राजनीति सीखने वाले शिवपाल ने हमेशा उन्हें अपना आदर्श माना.
- मुलायम के हर फैसले को अपने लिए आदेश माना.
- मायावती के शासन में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभाई.
- लेकिन मुलायम पुत्र-प्रेम के वजह से इस त्याग को नहीं देख पाए.
- 2012 में अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया तब भी शिवपाल ने विरोध नहीं किया.
- अखिलेश को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने पर भी शिवपाल चुप रहे.
- आज भी इस्तीफा देने के बाद शिवपाल ने मुलायम के आदेश को ही अपने लिए सबकुछ मानने की बात कही है.
क्या ‘परिवार और पार्टी’ को टूटने से बचा पाएंगे नेताजी:
मुलायम सिंह यादव ने कभी नही सोचा होगा कि एक दिन उनके परिवार में ही वर्चस्व की जंग शुरू हो जाएगी. बेटे के सीएम और भाई के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी जो सियासी संग्राम मचा है वो थमता नही दिख रहा है. इस पुरे प्रकरण से अगर कोई सबसे ज्यादा आहत होगा तो वो मुलायम सिंह यादव हैं.
- लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं जिसपर मुलायम सिंह यादव फैसला नहीं कर पा रहे हैं.
- इन बातों की तरफ इशारा उनके भाई रामगोपाल और बेटे अखिलेश ने भी किया.
- ‘बाहरी’ की बात पर अब सबकी निगाहें अमर सिंह की तरफ हैं.
- वहीँ अमर सिंह ने भी सफाई देकर ये बहस छेड़ दी है कि क्या वाकई इस पुरे घटनाक्रम के पीछे कोई ‘साजिश’ थी.
क्या अब मुलायम अपने राजनीति की शुरुआत से अपने ‘लक्ष्मण’ रूपी भाई का साथ दे पाएंगे. 1992 में पार्टी के गठन के बाद से शिवपाल यादव ने हमेशा ही मुलायम का साथ दिया. पुरे राजनीतिक सफ़र में अबतक ये भाइयों की इन जोड़ी को कोई साजिश तोड़ नही पायी. इस बात से मुलायम भी बखूबी परिचित हैं.
मुलायम भी जानते हैं शिवपाल के कद की अहमियत:
- उन्होंने विलय के दौरान मचे घमासान पर भी अपनी राय स्पष्ट कर दी थी.
- मुलायम को शिवपाल के कद और प्रभाव के बारे में बखूबी मालूम है.
- उन्होंने पहले भी कहा था कि शिवपाल आधी पार्टी हैं.
- उनके अलग होने पर समाजवादी पार्टी टूट जाएगी.
- आधे लोग उनके साथ चले जायेंगे.
अब ऐसी विकट स्थिति में आने बचने के लिए मुलायम सिंह यादव को भी कुछ बड़े फैसले लेने होंगे. आज का दिन मुलायम सिंह यादव के लिए परीक्षा का दिन है.