• मुलायम सिंह यादव एक बार फिर से राजनीति के खेल में उतर गया है.
  • जिस पार्टी को मुलायम ने अपने खून और पसीने से खड़ा किया, वो पार्टी दो-दो चुनाव में मिली करारी हार के बाद (2016 विधान सभा चुनाव और 2019 ) अब वेंटीलेटर पर जा चुकी है.
  • दोनों ही चुनाव में मुलायम के लड़के अखिलेश नाकारा और नाकाम साबित हो चुके हैं.

आखिरकार समाजवादी पार्टी के पितामह या फिर कहें तो सूरमा मुलायम सिंह यादव को दो सालों की सक्रिय राजनीति के रिटायरमेंट के बाद मुख्यधारा की राजनीति में वापस आना ही पड़ा. अपने अंतरात्मा की आवाज पर या फिर 2019 के चुनावी नतीजों में पार्टी को मिली करारी हार से मजबूर होकर ही सही, मुलायम को अब अपने बेटे अखिलेश के नेतृत्व से मोहभंग हो चुका है और समाजवादी राजनीति का बूढ़ा शेर अब एक बार फिर से राजनीति के खेल में उतर गया है.

जिस पार्टी को मुलायम ने अपने खून और पसीने से खड़ा किया, वो पार्टी दो-दो चुनाव में मिली करारी हार के बाद (2016 विधान सभा चुनाव और 2019 ) अब वेंटीलेटर पर जा चुकी है. दोनों ही चुनाव में मुलायम के लड़के अखिलेश नाकारा और नाकाम साबित हो चुके हैं. 2016 के यूपी विधान सभा चुनाव में अखिलेश और राहुल की जोड़ी ‘यूपी के लड़के बीजेपी की आंधी में उड़ गई या फिर कहें तो चारो खाने चित्त हो गई. फिर उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बुआ-भतीजा (अखिलेश-मायावती) का गठजोड़ भी एक बुझा हुआ पटाखा ही साबित हुआ

सपा-बसपा महागठबंधन से सिर्फ मायावती को मिला फायदा

2019 के चुनावी नतीजों से यह तो स्पष्ट हो गया कि सपा-बसपा महागठबंधन से सिर्फ और सिर्फ मायावती और उनकी पार्टी बसपा को ही फायदा हुआ. मायावती के लिए तो यह गठबंधन संजीवनी ही साबित हुई. महागठबंधन का सबसे ज्यादा घाटा समाजवादी पार्टी और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को ही उठना पड़ा. महागठबंधन से अखिलेश को कुछ मिला तो नहीं उलटे वो सबसे बड़े लूजर भी साबित हो गए. मायावती ने संसद में अपने आंकड़े को सीधे जीरो से उपर उठाकर 10 तक पहुंचा दिया तो समाजवादी पार्टी अपने टैली में एक अंक का भी इजाफा नहीं कर पाई. गठबंधन से बीएसपी ने अपने वोट शेयर में 0.3 फीसदी का इजाफा किया. 19.03 फीसदी से बढ़ कर बीएसपी का वोट प्रतिशत 19.06 फीसदी हो गई. सबसे बड़ा घाटा तो अखिलेश को उठाना पड़ा, न तो पार्टी सांसदों की टैली बढ़ा सकी औऱ न ही वोट शेयर में इजाफा कर पाई. 2014 में जितनी सीट थी 2019 में भी उतनी ही सीट (05) से संतोष करना पड़ा. वोट शेयर भी 22 फीसदी से घटकर 2019 में 18 फीसदी पर आ गई.

मुलायम ने अखिलेश को लगाई फटकार

राजनीतिक जानकारों और सूत्रों के हवाले से जो खबर आ रही है  उसके मुताबिक मुलायम सिंह यादव ने हार के बाद पार्टी की समीक्षा बैठक में अखिलेश को जमकर फटकार लगाई है. खासकर यादव पट्टी (Yadav Land) में ही जो करारी हार का सामना करना पड़ा है वो एक गंभीर मामला बन गया है. मुलायम ने यादव पट्टी जहां यादव वोटों का दवदबा है, वहां मिली हार को लेकर अखिलेश से काफी तीखे सवाल किए हैं. खासकर कन्नौज से अखिलेश की पत्नी डिंपल की हार, बंदायू से और फिरोजाबाद से भतीजे धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव की हार मुलायम यादव के गले नहीं उतर रही है और इस करारी हार को लेकर मुलायम ने अखिलेश को कड़ी फटकार भी लगाई है. बंद दरवाजों के अंदर हुई इस मीटिंग में मुलायम ने बिल्कुल सीधे लहजों में अखिलेश से यह कहा है कि तुम आधी लड़ाई वोटिंग से पहले ही हार गए थे जब तुमने मायावती को 38 सीटें ऑफर कर दी थी.

मुलायम ने दिया संकेत- शिवपाल की होगी समाजवाटी पार्टी में एंट्री

समाजवादी पार्टी के पुरोधा और संरक्षक ने रिव्यू मीटिंग में स्पष्ट संकते दे दिया है कि पार्टी के संगठन में भारी फेरबदल होगी. पार्टी के कार्यप्रणाली में भी बदलाव लाए जाएंगे. इतना ही नहीं बंद दरवाजे के अंदर हुई इस मीटिंग में मुलायम ने अखिलेश को इस बात  को लेकर भी फटकार लगाई है कि चाचा शिवपाल के साथ अखिलेश के मतभेद और झगड़े की वजह से पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है. शिवपाल के पार्टी छोड़ने के बाद पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ रहा है. मुलायम ने इशारों में अखिलेश को यह स्पष्ट कर दिया कि पार्टी के हित के लिए शिवपाल को वापस लाना जरूरी है. शिवपाल यादव न सिर्फ पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं बल्कि पार्टी के चाणक्य भी कहे जाते हैं. फिरोजाबाद सीट पर अक्षय यादव जो रामगोपाल यादव के लड़के हैं उसको हराने में सबसे बड़ा हाथ शिवपाल यादव का ही है. जैसे ही शिवपाल मुकाबले में उतरे समाजवादी पार्टी को इस सीट पर पर 95 हजार वोटों का नुकसान हो गया.

स्थानीय हो गया था अखिलेश का इलेक्शन कैंपेन

मुलायम अखिलेश यादव के चुनाव प्रचार के स्टाइल से भी नाराज थे. उन्होंने रिव्यू मीटिंग में बताया कि अखिलेश हर चुनावी सभा में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर हमला करते थे. पार्टी का चुनावी कैंपेन सही दिशा में नहीं जा रहा था, अखिलेश चुनाव प्रचार में अवारा पशुओं को चुनावी मुद्दा बना रहे थे तो दूसरी तरफ बीजेपी पूरा चुनाव पीएम मोदी और राष्ट्रवाद के नाम पर लड़ रही थी. मिर्जापुर में एक रैली के दौरान जब अखिलेश के हैलीपेड के पास एक सांड आ गया तो उसने सीएम योगी पर चुटकी लेते कहा कि लगता है यह सांड योगीजी से मिलने आया है, अगर इस आवारा पशु के कारण किसी की जान जाती है तो सीएम के खिलाफ एफआईआऱ दर्ज होना चाहिए. इतना ही नहीं अखिलेश पूरे चुनाव प्रचार में अपने साथ सीएम योगी आदित्यनाथ के एक हमशक्ल को लेकर प्रचार करने जाते थे और उनका मजाक उड़ाते थे. उन्होंने योगी का मजाक उड़ाते ट्वीट किया था कि- जब उन्होंने हमारे जाने के बाद मुख्यमंत्री आवास को गंगा जल से धोया था तब हमने भी तय कर लिया था कि हम उनको पूड़ी खिलाएंगे.

वोटरों से कोई जुड़ाव नहीं था अखिलेश का

मुलायम ने अखिलेश के वोटरों से जुडाव खत्म होने पर भी सवाल खड़े किए. हालांकि अखिलेश ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती और आरएलडी चीफ अजित सिंह के साथ कई चुनावी सभा और रैलियां की लेकिन मुलायम को लग रहा है कि इन रैलियों और सभाओं में जनता से अखिलेश निजी तौर पर भावनात्मक जुड़ाव कायम नहीं कर पाए. उन्होंने अखिलेश को 2012 की याद दिलाते हुए कहा कि जब 2012 में मुख्यमंत्री बनने से पहले अखिलेश ने पूरे प्रदेश में साइकिल से यात्रा किया था तो इससे उनका जनता से सीधे जुड़ाव कायम हुआ था. लेकिन इस बार वो पार्टी कार्यकर्ता से भी जुड़ाव बनाने में नाकामयाब साबित हुआ. मुश्किल से वो पार्टी दफ्तर में 2 घंटे भी पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ नहीं बिताता था.

गलत सलाहकारों की टीम ने डुबोया अखिलेश को

मुलायम ने अखिलेश को उनके सलाहकारों और चाटुकारों से घिरे रहने पर भी फटकार लगाई है. अखिलेश के कोर टीम जो उन्हें सलाह देते आ रहे हैं औऱ रणनीति बनाते आ रहे हैं उनको लेकर भी मुलायम ने अखिलेश की क्लास ली है. इस कोर टीम में अनुराग भदौरिया, सुनील साजन समेत कई और युवा लीडर हैं जो अखिलेश के चाटुकारिता मंडल में शामिल है. शायद मुलायम के इसी क्लास लेने के बाद अखिलेश ने पार्टी के सभी प्रवक्ताओं की टीम में एक झटके में भंग कर दिया और मीडिया हाउस को पत्र लिख कर हिदायत दी कि पार्टी के इन प्रवक्ताओं को टीवी शो में मत बुलाएं.

2022 का वाटर लू

अखिलेश यादव को अब खुद में बदलाव लाने होंगे, उन्हें खुद को पहचानना होगा और शायद उन्हें यह बदलाव जितनी जल्दी हो अपने अंदर लानी होगी. अगर वो खुद में बदलाव नहीं लाएंगे तो 2022 का विधान सभा चुनाव कहीं उनके लिए वाटर लू न साबित हो जाए. अगर वो और उनकी पार्टी 2022 में आंकड़ों के लिहाज से अच्छा प्रदर्शन कर पाएगी तो यह न सिर्फ अखिलेश के राजनीतिक करियर के अंत की घोषणा होगी बल्कि समाजवादी पार्टी और उस लोहिया ब्रांड पॉलिटिक्स का भी अंत हो जाएगा, जिसे मुलायम सिंह यादव ने सालों-साल की मेहनत के बाद खड़ा किया है.

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