मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है। “इन लाइनों को एक ऐसे शख्स ने सच साबित कर दिया जो दुनिया की सब से घातक बीमारी मस्कुलर डिसट्राफी से जंग लड़ रहा है। जिसके शरीर पर मछर भी बैठ जाये तो वह उसे हटा नही सकता है। लेकिन उसके हौसले इतने बुलंद है कि सीए का फर्स्ट स्टेज का एग्जाम पास करके सब को चौका दिया। इंटरनेट व बुक्स से पढाई कर यह सफलता प्राप्त की है, दरअसल कोचिंग करना था लेकिन इस बीमारी के चलते उसे कोचिंग में दाखिला तक नही मिला था।
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बर्रा थाना क्षेत्र स्थित बर्रा चार में रहने वाले डॉ ए के अग्रवाल जिनका सत्य हास्पिटल नाम से नर्सिंग होम है। वह इन्डियन एसोशियेशन मस्कुलर डिसट्राफी के यूपी प्रेसिडेंट है, इनकी पत्नी मनीषा अग्रवाल महिला डॉक्टर है।
परिवार में बड़ा बेटा अपूर्व अग्रवाल अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवार्शिटी से एम्बीए कर रहा है। वही छोटा बेटा देवांग मस्कुलर डिसट्राफी नाम की घातक बीमारी की चपेट में है। जिसके हाथ पैर के साथ ही पूरी बॉडी हिल भी नही सकती है। वह अपना हाथ तक नही हिला डुला सकता। मस्कुलर डिसट्राफी बीमारी से इण्डिया में 0.3 प्रतिशत लोग ग्रसित है जिसका इलाज इण्डिया के बाहर यूरोपीय कंट्री में भी नही है l
देवांग की माँ डॉ मनीषा अग्रवाल ने बताया कि जब देवांग का जन्म हुआ था तो वह नार्मल बच्चो की तरह था । लेकिन जब वहा बड़ा हुआ तो उसको चलने, उठने, बैठने में प्राब्लम होती थी।
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जब उसके हमने मेडिकल टेस्ट कराये तो हमें पता चला कि देवांग मस्कुलर डिसट्राफी से ग्रसित है। इसके हमने इण्डिया के बहार अमेरिका, इंग्लैण्ड और भी कई यूरोपीय कंट्री में भी दिखाया लेकिन यह नाइलाज बीमारी थी। लेकिन अब इसके कुछ ट्रीटमेंट आये आये है।
उन्होंने बताया कि हमने हमने बेटे को इस बात का अहसास नही होते दिया कि वह इस बीमारी से ग्रसित है तो वह कुछ कर नही सकता है। मेरा बेटा मानसिक रूप से बहुत स्ट्रोंग है और वह हम सभी को मोटीवेट करता है। मै और मेरे हसबैंड दोनों डाक्टर है लेकिन हम लोग सिर्फ सुबह की मीटिंग में ही पेशेंट को देखते है। खुद का हास्पिटल यदि को इमरजेंसी केस आया तो देखा वर्ना हम लोग दोपहर के बाद से पूरा समय अपने बेटे को देते है।
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उन्होंने कहा मेरा बेटा मस्कुलर डिसट्राफी से ग्रसित है ईश्वर ने मुझे ऐसा बेटा दिया लेकिन मै एक खुस किस्मत माँ हूँ क्यों कि ईश्वर इस तरह के टास्क हर किसी को नही देता है। यदि टास्क ईजी होगे तो उसे आसानी से पूरा कर लेगा । लेकिन टास्क टफ होगे तो आप इजली नही बल्कि टफ तरीके से पूरा करेगे।l
देवांग के पिता डॉ एके अग्रवाल ने बताया कि मेरा बेटा दुनिया की सबसे घातक बीमारी से लड़ रहा है । इसके बाद भी मैं उसे सेल्फ बनाने के प्रयास में जुटा हूँ ,बेटे ने 2011 में हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली।
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लेकिन उसको लगातार समस्या बढती जा रही थी, जब वह इंटर क्लास में पंहुचा तो उसके हाथ तक उठाना बंद हो गए। इंटर की परीक्षा के मै चाहता था कि सीबीएसई बोर्ड उसे एक राईटर प्रोवाइड कराये ।
इसके लिए मैंने स्कूल के प्रिंसिपल को लेटर लिखा तो उन्होंने जवाब दिया कि मेरे अधिकार क्षेत्र से बहार है यह काम बच्चे को राईटर प्रोवाइड कराने के लिए मै काई बार दिल्ली एचआरडी मिनिस्टर से मिलने का प्रयास किया, पीएम को लेटर लिखा इसके साथ सीबीएसई बोर्ड के अधिकारियो से मुलाकात की इसके लिए कम से कम दस बार दिल्ली के चक्कर लगाये।
सीबीएसई बोर्ड ने कहा मेरे पास ऐसा कोई जिओ नही है। लेकिन मेरी मर्सी भरी अपील से सीबीएसई बोर्ड के चेयर मैन विनीत जोशी का दिल पसीज गया और बेटे के लिए राईटर प्रोवाइड करा दिया।
उसने एग्जाम दिए इंटर में 97 प्रतिशत नंबर लाकर देवांग ने सिटी टॉप किया ।
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इसके बाद मैंने उसे क्राइस्टचर्च कालेज से बीकाम किया वहा भी मै कई बार चक्कर लागए कि बेटे को राईटर प्रोवाइड कराया जाये । यूनिवर्सिटी ने राईटर प्रोवाइड कराया और बेटे ने बीकाम किया। मेरा बेटा एक काबिल सीए बनान चाहता था।
इसके लिय उसने तैयारी लेकिन सीए बनने के लिए कोचिंग करना जरूरी था, मैंने दर्जनों कोचिंग सेंटर पर की बेटे को कोचिंग करा दू लेकिन किसी भी कोचिंग ऐसी कोई जगह नही जहा पर रैम्प बनी हो ताकि वह अपनी इलेक्टानिक व्हील चेयर से से क्लास रूम तक पहुच जाये।
रैम्प नही वजह से उसे कोचिंग नही मिल पाई। मैंने कोचिंग के टीचरों से अपील की वह जो भी सेलेबस पढ़ाते है उसे पैन ड्राइव में देदे तो कोचिंग संचालको ने कहा कि पैन ड्राइव में सेलेबस देगे तो आप उसकी सीडी बनाकर मिस यूज करेगे।
उनकी यह बात सुन कर मै बहुत आहत हुआ । फिर मैंने बेटे को समझाया कि बेटा मै तुम्हे बुक अवेलेबल करा दूंगा तुम नेट में सर्च करके भी पढाई कर सकते हो ।
मेरा बेटा फ्हिजिकली कमजोर है लकिन मानसिक रूप से स्ट्रोंग है वह मेरी बात को समझ गया और उसने पढाई की । सीए का एग्जाम भी पास किया । हम लोगो ने यू ट्यूब पर वो विडिओ भी देखते है कि मस्कुलर डिसट्राफी के पेशेंट कैसे रहते है ।
इण्डिया से बहार यूरोपीय कंट्री में इस बीमारी से ग्रसित लोग आम जीवन जीते है क्यों वह पढने जाते है, माल में घुमने जाते है.मूवी देखने जाते है क्यों कि वहा पर सभी पब्लिक प्लेस पर रैम्प बने है।
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लेकिन अफ़सोस इण्डिया में की सडको पर कही भी दिव्यंगो के लिए रैम्प नही है। किसी भी कालेज ,माल ,मोवी थेटर पर कानपुर में रैम्प है की नही । इण्डिया का इन्फ्रास्त्रेक्कार ही नही है।
सभी जगह रैम्प बनाये जाये इसके लिए मैंने पीएम ,राष्ट्रपति महोदय को भी पत्र लिखे है। हमारे प्रधानमंत्री जी दिव्यंगो की बात करते है लेकिन उनके लिए कुछ इस तरह का माहोल बनाये कि वह भी आम जिन्दगी जी सके ।
सभी को समानता से जीने का अधिकार है। फ़िलहाल इसके लिए मैंने पहल भी मैंने सभी बिल्डर, आरटीटेक, जिला प्रशासन, पीडब्लूडी व् कई पालिटिकल नेताओ के साथ बैठा की ताकि सभी सभी जगह दिव्यंगो के लिए रैम्प बनाये जाये । लकिन अकेला इन्सान क्या कर सकता है, इसके बाद भी मै हिम्मत नही हार रहा हूँ मुझे अपने बेटे से जीने और संघर्स करने की नसीहत मिल रही है।
उन्होंने बताया कि देवांग के लिए आईसीआईसी बैंक 6 माह पहले से जब ऑफर भी आया था । जब मै बेटे को इंटरविव के लिए ले कर गया तो इंटर व्यूव तीसरी मंजिल पर चल रहा था ।
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लेकिन वहा लिफ्ट तक पहुचने के लिए सीढ़िया चढ़नी थी जहा उसकी व्हील चेयर नही जा सकती थी।
मैंने उसने बोला बेटा ऊपर नही आ सकता है आप लोग चाहे तो नीचे आकर या फिर मेरी कार में बैठकर इसका इंटर व्यू ले सकते है।
लेकिन उन्होंने आने इंकार कर दिया । वो जॉब किसी और को दे दी ।
देवांग ने बताया कि मै इस बीमारी से ग्रसित हूँ लेकिन मेरे पैरेंट्स ने कभी इस बात का एहसास नही होने दिया। मेरे पैरेंट्स हमेशा मुझे मोटीवेट करते है मेरी मदद करते है।
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मै बुक का पन्ना तक नही पलट सकता हूँ इस वजह से मैंने इंटर नेट और लेपटॉप पर पढाई की ।
मै लेपटॉप अपरेट कर लेता हूँ । इंटरनेट ,लेपटोप और मेरे पैरेंट्स सबसे अच्छे फ्रेंड है।
इनके आलावा मेरा और कोई दोस्त नही है। सीए के लिए मै बीते 9 माह से तैयारी कर रहा था ।
मस्कुलर डिसट्राफी से पीड़ित जितने भी लोग है पीड़ित है वह अपने आप को किसी से कमजोर नही समझे। एक पॉजिटिव सोच के साथ जीने का प्रयास करे ।