पूरे प्रदेश में नागपंचमी (nag panchami) का पर्व हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है। राजधानी लखनऊ में भी इसका जश्न देखने को मिल रहा है। इस मौके पर जहां शिवालयों में शिव और पार्वती की पूजा हो रही है। इसके अलावा नागदेवता का भी विशेष पूजन हो रहा है। शहर में मेले, दंगल और गुड़िया पीटने के पारंपरिक अनुष्ठान भी आयोजित हो रहे हैं। नागपंचमी पर्व के लिए शहर में देर रात तक मेले की तैयारियां हुईं तो बाजार में मिठाई और रंगबिरंगी छड़ियों की खूब बिक्री हुई।
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ऐतिहासिक मेले पर मेट्रो की अड़चन
- नागपंचमी पूजन के लिए शिवालयों में माहदेव के विशेष शृंगार, पूजन और आरती का आयोजन किया गया।
- मनकामेश्वर मंदिर, कोनेश्वर मंदिर, कोतलेश्वर, रानीकटरा के छोटे और बड़े शिवालय, पारा रोड के बुद्धेश्वर महादेव मंदिर, राजेंद्र नगर के महाकाल मंदिर और द्वादश ज्योतिर्लिंग धाम समेत प्रमुख मंदिरों में पूजन की विशेष तैयारियां की गई।
- हुसैनगंज में लगने वाले नागपंचमी मेले पर मेट्रो की अड़चने हावी हैं।
- ट्रैफिक जाम की संभावना के चलते सीमित दुकानें लगाईं गईं।
- बर्लिंग्टन के पास झूला लेकर आए सतीश और आसिफ ने कहा कि हम हर साल मेले में आते हैं, लेकिन इस बार परेशानी उठानी पड़ रही है।
- हालांकि दुकानदार मेले की तैयारियों में जुट गए हैं।
- मेले में रंगबिरंगी छड़ियां, खिलौने, क्रॉकरी, मिठाई और अंदरसे की दुकानें सज गईं हैं।
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मंगलकारी है नागपंचमी, यहां होंगे दंगल
- नागपंचमी के अवसर पर गोमती अखाड़ा समिति की ओर से 55वां इनामी कुश्ती दंगल और सम्मान समारोह होगा।
- गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल चौक के गोमती अखाड़े में पहलवान अपनी ताकत की अजमाइश करेंगे। कुश्ती दंगल के बाद वरिष्ठ गुरुओं को सम्मानित होंगे।
- इसके साथ ही सदर और गणेशगंज में भी दंगल होंगे।
- ज्योतिषाचार्य पंडित राधेश्याम शास्त्री ने बताया कि गुरुवार को सुबह 7:01 बजे से पंचमी तिथि लग गई है। जो शुक्रवार सुबह 6:38 बजे तक रही।
- शास्त्र के मुताबिक सूर्योदय के पहले अगर पंचमी तिथि रहती है तो नागदेवता की पूजा विशेष मंगलकारी होती है।
- शास्त्र के मुताबिक दोपहर 12 बजे तक पूजन बहुत ही मंगलकारी रहेगा।
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यहां पीटी नहीं झुलाई जाती है गुड़िया
- नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की पुरानी मान्यता है।
- लड़के डंडे या कोड़ों से कपड़े की बनी गुड़िया पीटते हैं।
- यह देखने में एक खेल जैसा है लेकिन, कहीं न कहीं इसमें महिला उत्पीड़न का दंश भी दिखता है।
- यही देखकर महिला समाख्या की तत्कालीन जिला कार्यक्रम समंवयक ऋचा सिंह ने गांवों में इस मान्यता को बदलने की ठानी।
- गुड़िया पीटने की जगह गुड़िया झुलाने का अभियान चलाया।
- धीरे-धीरे उनका प्रयास रंग लाने लगा और आज दर्जनों गांवों में नागपंचमी को गुड़िया झुलाई जाती है।
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- नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की मान्यता के खिलाफ अब से कोई दो दशक पूर्व जिले के कुछ गांवों की महिलाओं ने अपने स्वर मुखर किए।
- पहली बार वर्ष 1997 में चंद गांवों में इन महिलाओं ने गुड़िया पीटने के बजाय गुड़िया झुलाने की परंपरा की शुरुआत की।
- महिला समाख्या के बैनर तले इस अभियान की शुरुआत करने वाली महिला समाख्या की तत्कालीन जिला कार्यक्रम समन्वयक ऋचा सिंह बताती है कि वर्ष 1996 में जब पहली बार सीतापुर गुड़िया पीटने का आयोजन देखा तो उन्हें यह रस्म महिला उत्पीड़न की पहली पाठशाला जैसी लगी।
- ऋचा सिंह बताती हैं कि हजारों साल पुरानी इस मान्यता के खिलाफ अभियान शुरू करना आसान नहीं था। लगातार संपर्क और बैठकों के बाद कुछ महिलाएं साथ में आने को तैयार हुईं।
- इसके बाद इस (nag panchami) आंदोलन को ‘बिटिया पढ़ाओ, गुड़िया झुलाओ‘ नाम दिया गया।
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