जहाँ एक ओर सरकार और जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने में जी जान से लगे है. वहीं दूसरी ओर कुछ लापरवाह अधिकारी व कर्मचारी इन प्रयासों पर पानी फेरने में लगे हुए है. अमेठी के सरकारी अस्पतालों की भी यही स्थिति है. अमेठी में कुछ ऐसी ही लापरवाही देखने को मिली, जहाँ घूसखोरी के नाम पर अस्पताल कर्मचारी रोगी के जान को खतरे में डालने में भी गुरेज नही कर रहे है.
36 घंटो ने 2 नवजात की हो चुकी मौत:
अमेठी जिले के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर जिम्मेदार लोग खिलवाड़ कर रहे हैं. प्रसव के नाम पर अवैध वसूली का सिलसिला नहीं खत्म हो रहा है. एक तरफ विभाग के जिम्मेदार व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं तो दूसरी तरफ लापरवाह अधिकारी और कर्मचारी किरकिरी कर रहे हैं. आये दिन प्रसव में लापरवाही और जच्चा व बच्चा की मौत होने के मामले सरकारी अस्पतालों में हो रहे है, 36 घण्टे के भीतर ऐसे ही दो मामले अमेठी में सामने आये तो लोगों की रूह ही कांप गई।
पहला मामला:
अमेठी के तहसील तिलोई के मोहनगंज थाना अंर्तगत गाँव रानीपुर निवासी मनोज कुमार ने पुलिस को शिकायती पत्र देते हुए बताया कि वह 18 अप्रैल की सुबह लगभग सात बजे अपनी गर्भवती पत्नी आरती सरोज का प्रसव कराने के लिए तिलोई सीएचसी ले गया था. यहां पर लेडी डॉक्टर नहीं थी तो स्वयं स्टाफ नर्स व आया मिलकर इलाज करने लगी. सही ढंग से इलाज नहीं हो पाने के कारण प्रसूता ने एक बच्चे को तो जन्म दिया लेकिन कुछ ही देर बाद उसकी मौत हो गई.
इलाज के नाम पर माँगा गया पैसा:
आरोप है कि प्रसव के बाद मौके पर पहुंची स्टाफ नर्स व आया ने प्रसूता और उसके परिजनों से इलाज के नाम पर दो हजार रुपये मांगा था. नवजात की मौत के बाद परिजनों ने अस्पताल में काफी देर तक हंगामा भी काटा. बच्चे की मौत और प्रसव में हुई लापरवाही और इस तरह जबरदस्ती पैसे मांगने के आरोप में मोहनगंज थाने में परिजनों ने मोहनगंज थाने में शिकायत भी की.
दूसरा मामला:
अमेठी के शुकुल बाजार सीएचसी में एक बार फिर चिकित्सकों की लापरवाही और उनकी गैरहाजिरी का मामला सामने आया है. डॉक्टरों की लापरवाही के कारण गुरुवार को एक नवजात बच्चे की मौत हो गयी. जिसके बाद परिजनों ने अस्पताल में जमकर हंगामा किया।
मिली जानकारी के अनुसार यह घटना आज यानी गुरुवार की सुबह की है. शुकुल बाज़ार के सीएचसी में गुरुवार को प्रसव के बाद नवजात बच्चे की मौत हो जाने के बाद परिजनों ने हंगामा किया. परिजनों का आरोप था कि अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण बच्चे की मौत हुई है. शुकुल बाजार थाने के ऊचगाव निवासी हेमन्त तिवारी की पत्नी बीनू को जब प्रसव पीड़ा हुई तो परिजनों ने गुरुवार की सुबह 5.20 बजे सीएचसी शुकुल बाज़ार में भर्ती कराया. आरोप है कि स्टाफ नर्स सीता वर्मा के कहने पर भर्ती हुई प्रसूता प्रसव पीड़ा में बहुत देर तक तड़पती रही, लेकिन कोई डॉक्टर उसे देखने के लिए नहीं आया.
बाहर से लिखी दवाएं और बाद में कहा की नवजात शिशु मरा पैदा हुआ:
परिजनों का कहना है कि स्वास्थ्य कर्मियों ने एक नवजात बच्चे का जन्म कराया और जन्म देने के बाद जच्चा-बच्चा की हालत सामान्य बताई गई. यही नही बीनू के परिजनों का कहना है कि जच्चा-बच्चा के इलाज के लिए दवाएं भी बाहर से मंगवाई गयी और थोड़ी देर बाद बताया गया कि नवजात शिशु मरा पैदा हुआ है.
थाने में की शिकायत –
जिसको सुनने के बाद तीमारदारों में आक्रोश फैल गया. उनका कहना है कि शुकुल बाज़ार सीएचसी में न कोई दवा उपलब्ध है और न कोई डॉक्टर ड्यूटी पर रहता है. पूछने पर पता चलता है कि अमुक डॉक्टर मीटिंग में है. प्रसूता के पति ने इसकी शिकायत शुकुलबाज़ार थाने में की है.
सरकार का पैसा कहां गया :
सरकार द्वारा रूपयों की कभी कोई कमी नही होती है. सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं पर इतना पैसा खर्च करने के बाद भी कई बार नवजात शिशु व बच्चों की जान नही बच पाती है. कई लोगो को हताश व निराश होकर बिलख बिलख कर रोकर अपने घर लौटना पड़ता है.
आखिर कौन जिम्मेदार..?
ऐसी लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार कुर्सी पर बैठे अधिकारी या सरकार..? इसके बावजूद भी शिशुओं की मौत हो जाना चिंतनीय है. इससे डाॅक्टरो की लापरवाही और असंवेदना का आलम साफ देखा जा सकता है. जिले में प्रसव के दौरान शिशुओ के मौत का आंकडा कम होने का नाम ही नही ले रहा है. जबकि सरकार द्वारा सालाना बजट राशि आंवटित की जाती है. इसके बाबजुद भी देखने में यह आ रहा है कि कमजोरी के कारण कई बच्चों की मौत हो रही है. अनेक शिशुओं की मौत तो जन्म प्रसव के दौरान ही हो जाती है. वही दूसरी ओर प्रसव के बाद भी कमजोरी अन्य कारणों से अस्पतालों में शिशुओं की मौत हुई जिससे स्वास्थ्य महकमें की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं.
डाॅक्टरो की लापरवाही भी शामिल:
कई बार तो जच्चा बच्चा की मौत समय पर उपचार नही मिलने व कोई अचानक सिरियस कन्डीशन के दौरान भी हो जाती है. लेकिन मामला चाहे जो भी हो इस लापरहवाही का हर्जाना किसी अधिकारी या कर्मचारी को नही भुगतना पडता है. लेकिन जिसका सीने का टुकडा होता वो बच्चा उसे बडा ही दुख होता है.