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SC ST एक्ट के तहत सात साल से कम सजा के मामले में बिना नोटिस गिरफ़्तारी नहीं

पूरे देश में इस वक़्त एक ही मुद्दा है जो सभी राजनीतिक दलों के लिए अपने-अपने वोट बैंक को बचाने का विषय बन गया है वो है- ‘एससी एसटी एक्ट’ . बीते 6 सितम्बर को सवर्ण समाज ने इस एक्ट के विरोध में भारत बंद बुलाया था. अब एससी एसटी एक्ट से जुड़े मामलों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सात साल से कम की सज़ा वाले मामलों में फ़ौरन गिरफ्तारी नहीं करने का निर्देश दिया है. 

क्या है पूरा फैसला?

दरअसल झारखण्ड के गोंडा के राजेश मिश्र ने अपने खिलाफ एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज एफआइआर को चुनौती दी थी .

साथ ही जांच के दौरान गिरफ़्तारी नहीं किये जाने की मांग की थी.

लखनऊ बेंच के जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकौली की खंडपीठ ने इस मामले में कहा की सात साल से कम के सजा वाले मामलों में बिना नोटिस के गिरफ्तारी नहीं करने को कहा है.

इस संबंध में कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में पहले  2014 के अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य केस का फैसला लागू होगा.

बता दे कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामले में सीआरपीसी की धारा 41 और 41 अ के प्रावधानों का पालन करने के  निर्देश दिए थे.

संसद में पलटा था कोर्ट का फैसला:

संसद ने 17 अगस्त को एससी एसटी एक्ट में संसोधनों को मंजूरी दी थी.

जिसके बाद इस नए एक्ट के तहत ही गोंडा के राजेश मिश्र के ऊपर प्राथमिकी दर्ज हुई थी.

राजेश मिश्र पर अनुसूचित जाति की एक महिला ने मारपीट और अभद्र बात कहने का आरोप लगाया था.

जिसके बाद 19 अगस्त को गोंडा के कांडरे थाणे में एससी एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी.

2014 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

2 जुलाई 2014 को अरनेश बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना किसी ठोस सबूत के वजह के आरोपी की महज इसलिए गिरफ्तारी का ली जाए क्योंकि कानून विवेचक को यह अधिकार देता है. यह गंभीर चिंता का विषय है.

कोर्ट ने कहा था की ऐसे मामलों में पहले यह बताना होगा की गिरफ्तारी क्यों ज़रूरी है.

कोर्ट ने यह भी कहा था की अगर आरोपी नोटिस के अभी निर्देशों का पालन करता है तो गिरफ़्तारी ज़रूरी नहीं है.

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