जिस गोमती रिवर फ्रंट को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बड़े-बड़े दावे करते रहें हैं और गोमती नदी के सुन्दरीकरण को विश्वस्तरीय दर्जा दिलाने की बात करते रहे हैं, उन तमाम दावों की पोल खुलती नजर आ रही है। प्रदेश सरकार खुद को विकास के अजेंडे पर चलने वाली सरकार बताने के चक्कर में उन्हीं दावों के बीच फंसती नजर आने लगी है।

प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार ने 3000 करोड़ रूपये की भारी लागत से तैयार हो रहे गोमती रिवर फ्रंट को सरकार 2017 के शुरुआत में पूरा हो जाने का दावा भी किया है और फिलहाल इस पर काम भी जोरों पर चल रहा है लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, रिवर फ्रंट की आड़ में अवैध खनन का काम भी चल रहा है और गोमती रिवर फ्रंट के जुड़े अधिकारियों की देख-रेख में इस काम को अंजाम दिया जा रहा है।

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इस प्रोजेक्ट पर सरकार ने अभी लगभग 1513 करोड़ रूपये खर्च किये हैं और काम पूरा होते होते ये खर्च करीब 3000 करोड़ तक पहुँच जायेगा, जिसको देखते हुए सरकार ने पहले ही इसकी तैयारी कर ली थी। ये रिवर फ्रंट एक किलोमीटर लम्बा होगा। आधुनिक सुविधाओं से लैस करने की अखिलेश यादव सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना में धांधली के संकेत मिलने भी शुरू हो गए हैं।

सरकार ने इस प्रोजेक्ट की पहली किस्त 656 करोड़ रूपये दिए लेकिन इस प्रोजेक्ट से जुड़े नोडल डिपार्टमेंट ने इसके खर्च का कोई ब्यौरा नहीं दिया है। पैसे का दुरूपयोग होने की बात पर भी प्रदेश सरकार, इंजिनियर और प्रोजेक्ट से जुड़े विभाग ने कोई भी जानकारी देने से साफ मना कर दिया है।

रूप सिंह यादव को जूनियर होते हुए भी इस बड़े प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंपे जाने पर भी सवाल उठाये गए हैं। जमीनी स्तर पर हो रहे खर्च का ब्यौरा देने से रूप सिंह ने साफ साफ मना कर दिया है। रूप सिंह यादव एक एक्सिक्यूटिव इंजीनियर हैं और इस मेगा प्रोजेक्ट के इंचार्ज भी बनाए गए हैं।

  • इस प्रोजेक्ट में काम करने वाली कंपनियों को अन्य देशों में ब्लैक लिस्टेड किया जा चूका है और ऐसे में अखिलेश यादव सरकार की क्या मज़बूरी रही होगी कि इन्होने ऐसी कंपनियों के माध्यम से इस प्रोजेक्ट को पूरा कराने का जिम्मा सौंपा। इन कंपनियों के ब्लैक लिस्टेड होने की बात मेट्रोमैन श्रीधरन ने बहुत पहले ही कही थी। 

एक प्रश्न के उत्तर में गोल-मटोल जवाब देते हुए रूप सिंह यादव ने कहा कि इस प्रोजेक्ट पर बालू का रेट फिक्स नहीं था। यहाँ तक कि पर्यावरण विभाग द्वारा स्वीकृति दी गई है या नहीं, इस सवाल पर भी वो कोई जवाब नही दिए।

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इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत बन रहे पुल के क्षतिग्रस्त होने के बाद दीपक सिंघल ने जाँच के आदेश तो दिए लेकिन साथ ही ये बात भी खुलकर सामने आ गई कि अखिलेश सरकार इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की इतनी जल्दी में है कि बेसिक चीजों पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है और इरिगेशन डिपार्टमेंट ने इस प्रोजेक्ट को लांच करने से पहले अन्य विभागों से चर्चा भी नहीं किया। इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद से ही अनियमितताओं पर सवाल उठते रहे हैं लेकिन सरकार और विभागीय अधिकारी इसे नकारते हुए प्रोजेक्ट को आनन-फानन में पूरा करना चाहते हैं।

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