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योगी सरकार की जमीनी हकीकत, अधूरे रह गए ज्यादातर वादे

19 मार्च को योगी सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा हो गया है. वहीँ अगर 28 जनवरी, 2017 को बीजेपी द्वारा जारी हुए उत्तर विधानसभा चुनाव-2017 के घोषणा पत्र को देखें तो हमे योगी सरकार के वो अहम् वादे सामने नजर आयेंगे. जिसमे उत्तर प्रदेश में अपराध, भ्रष्टाचार, विकास और गरीबों के लिए बेहतर से बेहतर काम करने के तमाम दावे किए गए थे. आपको बता दें कि इस एक साल में योगी सरकार की प्रदेश में जमीनी हकीकत ऐसी रही है कि कुछ बड़े चुनावी वादों में से ज्यादातर अधूरे रहे. वहीँ कुछ वादों पर तो अभी तक मुहर तक नहीं लगी है.

1 – शिक्षा और रोजगार का वादा:

आपको बता दें की योगी सरकार के दावे के अनुसार पहली से 8वीं तक के बच्चों को स्वेटर, मोजे और साथ ही 12 वीं तक लड़कों को लैपटॉप मुफ्त दिए जाने थे. जिसको लेकर सरकार ने दो बार टेंडर निकाला, लेकिन दिसंबर 2017 तक प्रॉसेस पूरी नहीं हो पाई और बाद में कलेक्टर को अपने स्तर पर टेंडर कराने को कहा गया. फ्री लैपटॉप वितरण योजना- 2017 शुरू की.

आपको बता दें कि जमीनी हैकत देखी जाए तो अभी तक 1.5 करोड़ बच्चों में से सर्दी खत्म होने तक सिर्फ 45% बच्चों को ही स्वेटर बांटे गए. वहीँ 22 से 23 लाख स्टूडेंट्स में से अभी किसी को भी फ्री लैपटॉप नहीं मिला.

वहीँ योगी सरकार के शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल ने कहा कलेक्टर को निर्देश दिए थे सभी बच्चों को स्वेटर बांट दिए गए हैं. जिसको लेकर सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने योगी सर्कार पर हमला करते हुए कहा कि स्वेटर बांटने में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार हुआ और ठंड खत्म होने के बाद दिखावे के लिए स्वेटर बांटे गए.

2- 25 सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाने का वादा:

आपको बता दें की इन वादों में एक वादा योगी सर्कार का राज्य में 25 सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और 6 एम्स बनाने का है. जिसको लेकर बजट में सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल और एम्स के लिए पहले चरण में 4323.89 करोड़ रुपए रखे गए हैं.

वहीँ इसके बावजूद अभी तक किसी भी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल या एम्स के लिए जमीन तक तय नहीं हुई है. गोरखपुर एम्स का शिलान्यास अखिलेश सरकार में किया गया था और इसको लेकर अब तक डेढ़ साल बीत गया है, लेकिन इसका भी निर्माण शुरू नहीं हो पाया है.

आपको बता दें की इस पर स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह का कहना है कि यूपी में स्वास्थ्य की समस्या बहुत ही जटिल थी. पिछली सरकारों ने स्वास्थ्य के बजट में घोटाले किए. एक साल में हमने बेहतर इंतजाम किए है.

वहीँ सपा के सीनियर लीडर और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन ने कहा कि सरकार काम करने की बजाए अस्पतालों का भगवाकरण करवा रही है और बीआरडी कॉलेज की घटना सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है।.

3- प्रदेश में गड्ढा मुक्त सड़कों का वादा:

आपको बता दें कि योगी सरकार के वादे के अनुसार प्रदेश में सभी सड़कें 15 जून 2017 तक गड्ढा मुक्त होनी थी. जिसको लेकर सरकार ने अलग-अलग विभागों को जिम्मेदारी सौंपी और कुल 1 लाख 21 हजार 816 किलोमीटर सड़क गड्ढा मुक्त की जानी थी, लेकिन सिर्फ 61 हजार 433 किलोमीटर यानी सिर्फ 50% सड़कें ही गड्ढा मुक्त हो पाई.

इसके साथ ही इस टारगेट पूरा करने के लिए सिर्फ तीन महीने से भी कम का वक्त बचा है. वहीँ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का इस पर कहना है कि सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के लिए हम लगातार काम कर रहे हैं. विभाग के पास उचित बजट नहीं था फिर भी हमने अन्य विभागों के सहयोग से लक्ष्य को पूरा किया है.

आपको बता दें की इस पर कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत ने कहा कि, गड्ढे मुक्त सड़क का दावा कुछ ही जिलों में सफल हुआ है. जिन सड़कों को गड्डा मुक्त किया गया है वो फिर से उसी तरह हो गई हैं.

4 – बिजली की समस्या खत्म करने का वादा:

आपको बता दें कि बीजेपी ने 2019 तक हर घर में बिजली और 5 साल में 24 घंटे बिजली देने का वादा किया है, लेकिन राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा के मुताबिक, सपा सरकार में 14 घंटे बिजली मिल रही थी, अब 16 से 18 घंटे मिल रही है, हालांकि, लोड बढ़ने से किसानों को ज्यादा राहत नहीं मिली.

वहीँ जमीनी तौर पर देखा जाए तो ये वादे ज्यादा कारगर साबित नहीं हुए हैं. बिजली का निजीकरण किया गया.  रेट 50 से 150 फीसदी तक बढ़ गए और गर्मी शुरू होते ही शहरों में भी बिजली कटौती शुरू हो गई है.

वहीँ ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का दावा है कि सपा सरकार ने पांच साल में जितने ट्रांसफार्मर बदले उतने हमने 1 साल में बदल दिए. करीब 37 हजार ट्रांसफार्मर खराब हो गए थे.

आपको बता दें कि इस पर सपा नेता रामगोविंद चौधरी ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र के सहारे यूपी में बिजली की सप्लाई की जा रही है. बिजली का रेट बढ़ाकर अवैध वसूली की जा रही है.

5- किसानों की कर्जमाफ़ी करने का वादा :

आपको बता दें कि सत्ता में आने से पहले बीजेपी ने ये वादा किया था कि किसानों का पूरा कर्ज माफ होगा और बिना ब्याज कर्ज दिया जाएगा.

वहीँ सत्ता में आने के बाद CM योगी ने पहली कैबिनेट मीटिंग में 36 हजार 359 करोड़ रुपए की कर्ज माफी का एलान किया. जिसमे 84 लाख किसानों को कर्जमाफी का लाभ मिलना था, लेकिन अभी तक 17.30 लाख किसानों का कर्ज माफ हुआ.

सबसे हैरानी की बात तो ये है कि यह कुल टारगेट का सिर्फ 22% है. देवरिया, वाराणसी, गोरखपुर और कुशीनगर को छोड़कर किसी भी जिले में दूसरे चरण की कर्जमाफी के प्रमाण पत्र बांटने का काम शुरू नहीं हुआ है.

आपको बता दें कि इस पर कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने कहा कि किसानों को कर्जमाफी का लाभ मिला है. दूसरे चरण के प्रमाणपत्र भी जल्द बांटे जाएंगे.

इस पर सपा नेता रामगोविंद चौधरी ने कहा कि कर्जमाफी की आड़ में सरकार ने खेती का बजट 70.13% कम कर दिया। किसानों को छला गया है.

6- 10 रुपये में टिफिन देने की योजना:

उत्तर प्रदेश में वर्तमान भाजपा सरकार के शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा 23 जिलों में अन्नपूर्णा योजना के तहत श्रमिकों को 10 रुपये में भरपेट भोजन देने की योजना फिलहाल महज़ कागज़ों में सिमट कर रह गई है.

इस संबंध में जब हमारे ‘फैजाबाद संवाददाता आशुतोष पाठक’ ने उप श्रम आयुक्त राजेश कुमार से बात की तो उन्होंने कहा कि निर्माण श्रमिकों के लिए योजनाएं घाोषित की गई थी.

उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड लखनऊ से वर्तमान में बोर्ड द्वारा निर्देश प्राप्त हुए हैं कि ये योजना किसी कारणवश स्थगित कर दी गई है. यहां पर निविदाकर्ता के जो आवेदन आये थे वो तकनीकी दिक्कत के चलते पास नहीं हो पाए थे.

उन्होंने बताया कि फैजाबाद में करीब 45 हजार श्रमिक पंजीकृत हैं. जिन्हें बोर्ड द्वारा संचालित योजनायों का लाभ समय-समय पर दिया जाता है.

यहां जिस जगह वर्कर काम करते हैं वहां करीब 100 लोगों को इस योजना का लाभ दिया जाना था. उन्होंने बताया कि इस संबंध में संस्थाओं का चयन नहीं हो पाया इसके चलते एक बार भी मजदूरों को ये टिफिन सेवा का लाभ नहीं मिल पाया.

इन जिलों में लागू होनी थी सस्ते भोजन की योजना:

जिस दौरान 2 अगस्त 2017 को इस योजना के लिए निर्देश जारी किये गए थे उस समय हापुड़ जिला में 585 श्रमिक पंजीकृत थे। वहीं मुरादाबाद में 341 बरेली में 245, मेरठ में 400, झांसी में 730, अलीगढ़ में 210, इलाहाबाद में 1229, वाराणसी में 919, गोरखपुर में 445, गौतमबुद्धनगर में 237, गाजियाबाद में 450, जौनपुर में 500, बदायूं में 1030, बुलंदशहर में 342,

शाहजहांपुर में 240, फैजाबाद में 100, चित्रकूट में 700, गोंडा में 200, महोबा में 1525, बांदा में 518, बलरामपुर में 500, इटावा में 300, आजमगढ़ में 120 श्रमिक पंजीकृत थे। लेकिन इन जिलों में श्रमिकों को 10 रुपये में भोजन नसीब नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं डिजिटल इंडिया की बात करने वाली भाजपा सरकार के श्रम मंत्रालय की वेबसाइट पर भी टेंडर या ताजा अपडेट उपलब्ध नहीं है।

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भले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली प्रदेश की भाजपा सरकार एक साल पूरा होने पर कार्यक्रम कर जश्न मना रही हो लेकिन श्रमिकों को 10 रुपये में टिफिन देने का वादा आज तक नहीं पूरा हो पाया। मजदूरों का पेट भरने के लिए अन्नपूर्णा योजना के तहत खाना देने का दावा किया गया था लेकिन ये योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई और आज तक नहीं शुरू हो पाई।

हालांकि इस संबंध में जब हमारे संवाददाता ने मेरठ के उप श्रम आयुक्त सरजू राम शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा कि निर्माण श्रमिकों के लिए योजनाएं घाोषित की गई थी। उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड लखनऊ से अभी तक इस प्रकार का दिशा निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है। निर्देश प्राप्त होने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

इलाहाबाद व अन्य जिलों में लागू होनी थी योजना:

गौरतलब है कि मजदूरों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के लिए यूपी के 23 जिलों में अन्नपूर्णा योजना शुरू की जानी थी। उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड (बीओसीडब्लू) में पंजीकृत असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को 10 रुपये में दोपहर का भोजन देने का वादा किया था। लंच टिफिन की शुरुआत पिछले साल शुरू की जानी थी। इसके बाद यह योजना इलाहाबाद व अन्य जिलों में भी लागू की जानी थी।

राज्य सरकार पंजीकृत श्रमिकों को दस रुपये में दाल, चावल, रोटी और सब्जी सहित भरपूर भोजन 10 रुपये में उपलब्ध कराने के लिए अन्नपूर्णा योजना के तहत देने जा रही थी। बीओसीडब्लू इसके लिए पिछले साल टेंडर जारी किया था।

बोर्ड के सचिव व उप श्रमायुक्त बीजे सिंह ने बताया था कि खाने पर आने वाला बाकी का पैसा उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड वहन करेगा। श्रमिकों सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के लिए संस्थाओं, फर्मों व कंपनियों से 7 से 21 अगस्त के बीच ई- टेंडर मांगे गये थे। लेकिन कुछ कमी के कारण यह योजना जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं दे रही है।

 

 

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