प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मई को वाराणसी के नाविकों को ई-बोट बांटी थी। योजना थी कि इससे गंगा में प्रदूषण तो कम होगा ही, साथ ही नाविकों की आमदनी बढ़ जायेगी। लेकिन नाविकों की आमदनी बढ़ना तो दूर की बात है, नाविक तो ई-बोट को चलाने के लिए भी तैयार नहीं हैं। ई-बोट में खामियों के चलते सभी नाविक मिलकर ई-बोट का विरोध कर रहे हैं।
ई-बोट में हैं ये खामियाँ:
- ई-बोट की बैटरी एक बार चार्ज करने पर बमुश्किल 5 से 6 घंटे चलती है।
- बैटरी की चार्जिंग और ढुलाई पर रोजाना लगभग 200 से 300 रूपये तक खर्च हो जाते हैं।
- अगर रोजाना एक नाविक ई-बोट से लगभग 500 रूपये कमाता है, और उसके 300 रूपये सिर्फ बैटरी पर ही खर्च हो जाते हैं। तो उसकी इससे ज्यादा आमदनी तो चप्पू वाली नाव चलाने में हो रही थी।
- बैटरी ख़त्म होने पर ई-बोट को बीच गंगा में चप्पू से चलाना पड़ता है।
- बैटरी चार्ज करवाने के लिए घाट से सीढियों के जरिये ही बैटरी को ऊपर ले जाना पड़ता है।
नाविकों का कहना है कि मोदी जी ने कहा था कि ई-बोट से नाविक प्रतिदिन 500 रूपये तक कमा लेंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वाराणसी घूमने आये लगभग सभी सैलानी चप्पू वाली नाव में घूमना पसंद करते हैं।