उत्तर प्रदेश पुलिस के कारनामों की लिस्ट में अब एक और नया कारनामा जुड़ गया है. कभी यूपी पुलिस आम इंसान का एनकाउंटर कर उसे बीच सड़क पर गोली मार देती है तो कभी बदमाशों से मुठभेड़ में अपनी पिस्टल ने नहीं बल्कि मुंह की आवाज़ों से ठांय-ठांय के जरिये अपराध को रोकने का प्रयास करती है.
अब प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक नया आरोप उनके सर मढ़ा है. बीते दिन ग़रीब नाबालिग़ बच्चों को बुरी तरह पीटने का आरोप लखनऊ पुलिस पर लगा है.
क्या है मामला:
एक वीडियो सामने आया है जिसमें बच्चे दिख रहे हैं. रोते हुए उन बच्चों के शरीर पर जहाँ एक चोट के निशान हैं तो दूसरी तरफ उनकी रोज़ी रोटी का जरिया यानी उनका स्ट्रीट फ़ूड का ठेला, जो ज़मीन की धूल फांक रहा है.
लखनऊ के नरही क्षेत्र में बच्चे सड़क किनारे अपना खाने का ठेला लगा कर इज्ज़त के 4 पैसे कमाने की कोशिश करते हैं. लेकिन असंवेदन शील लखनऊ पुलिस को ये नागवार होता है और वह ठेला हटवाना चाहती है.
इसमें कोई बुराई नहीं है, ये पुलिस का काम है कि सड़क पर अतिक्रमण हटवाएं. बल्कि एक अच्छा नागरिक होने के नाते बच्चे हो या बड़े उन्हें ऐसा अतिक्रमण नहीं लगाना चाहिए लेकिन यहाँ पुलिस की उस कार्य शैली पर सवाल उठ रहा है कि अतिक्रमण हटवाये के लिए क्या बच्चों को इस बेरहमी से मारने की जरूरत थी?
उनकी रोज़ी रोटी का ज़रिया भी किया बर्बाद:
और अगर वे ठेला नहीं हटाना चाहते थे तब भी उनको मारने के साथ उनकी रोज़ी रोटी के जरिए को बर्बाद करना उचित था?
बहरहाल पुलिस ने ये किया या नहीं किया और अगर किया तो क्यों किया ये तो जांच का विषय होना चाहिए, लेकिन आसपास के लोगों ने और पीड़ित बच्चों ने पुलिस पर आरोप लगाए है.
आरोप सही हैं या नहीं इससे ज्यादा ज़रूरी ये भी है कि आये दिन विवादों में रहने वाली पुलिस अपनी वर्दी पर इस तरीके से दाग़ लगने से रोके, क्योंकि इससे जनता का पुलिस प्रशासन से विश्वास उठने लगता है और ऐसे में आम जनता पुलिस के पास जाने से पहले कई बार सोचने को मजबूर हो जाती है.
वहीं पुलिस का विवादों से नाता यूपी सरकार के लिए भी मुसीबत बनता है क्योंकि पुलिस के रवैया का सीधा असर सरकार पर पड़ता है और जवाब देही सरकार की हो जाती है.
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