लखनऊ: राजनीतिक उथल-पुथल की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा वर्ष 2018
यूपी की राजनैतिक में सियासी घटनाओं के लिहाज से अगर देखा जाये तो वर्ष 2018 बेहद दिलचस्प व महत्वपूर्ण रहा। पहले माना जा रहा था कि देश में किसी एक विशेष दल का बहुमत दौर चल रहा हो। पर वर्ष 2018 के अंत यानि इन दिनों साल के आखिर तक आते-आते कई छोटी पार्टियां प्रासंगिक बनकर उभरीं। वही तिन राज्यों में नही बीजेपी को हराने में किसी भी पार्टी ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।
- बीते विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की वापसी के बाद गठबंधन की राजनीति और हो गई महत्वपूर्ण।
- सियासत अखाड़े में मदन जैड़ा की रिपोर्ट।
कर गया वर्ष 2019 की राजनैतिक भूमिका को तैयार
यह साल राजनीतिक उथल-पुथल की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण रहा और आने वाले वर्ष की भूमिका तैयार कर गया। इस दौरान सबसे बड़े बदलाव विपक्षी राजनीति में आए। फूलपुर और गोरखपुर से शुरू हुई विपक्षी एकता की मुहिम ने इतना जोर पकड़ा कि साल का अंत होते-होते उसने एनडीए की घेराबंदी का ताना-बाना बुन लिया।
- तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में दर्ज की जीत।
- प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भाजपा को दिया बड़ा झटका।
- ऐसे कई राजनीतिक घटनाक्रमों ने जहां भाजपा नीत एनडीए को कमजोर किया।
- वहीं कमजोर पड़े विपक्ष में नई जान फूंक दी।
भाजपा को है अग़र हराना तो हो जाए सारा विपक्ष एक
साल के शुरू में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में सपा, बसपा और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा से ये प्रतिष्ठित सीटें झटक लीं। विपक्ष के लिए तब दो सीटें अहम नहीं थीं, लेकिन इस जीत ने विपक्ष को भाजपा से लड़ने का फॉर्मूला दिया। यानी भाजपा को हराना है तो सारा विपक्ष एक हो जाए। एक-दूसरे के धुर विरोधी दल एक साथ खड़े हो गए। इस फॉर्मूले पर ही आम चुनावों के लिए गठबंधन की बिसात बिछने लगी।
- भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने त्रिपुरा में वाम सरकार को उखाड़ फेंक।
- पूर्वोत्तर के कई राज्यों में अपनी या गठबंधन की सरकारें बनाई।
शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ने का लिया फैसला
एक तरफ जहां विपक्ष एकजुट हुआ वहीं एनडीए के दो अहम घटक टीडीपी और रालोसपा उसे छोड़कर चले गए। सबसे पुराने घटक शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया।
- अकाली दल ने आंखें दिखाई।
- लोजपा ने भी तीखे तेवर अपनाए।
- एनडीए में बिखराव और विपक्ष में मजबूती के संकेतों के साथ यह साल समाप्त हुआ है।
- इस विखराव और मजबूती में ही राजनीतिक जानकार अगले साल के चुनावी नतीजों के संकेत तलाश रहे हैं।
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