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पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली तेंदुए की हत्या की हकीकत #LeopardEncounter

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तेंदुए की मौत पर परदा डालने में लगी स्थानीय पुलिस और वन विभाग की टीम के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि जिस किचन में तेंदुआ मरा पाया गया उसकी दीवार में ड्रिल कर छेद क्यों बनाया गया था। वहीं, तेंदुए की मौत के करीब 35 घंटों तक लेटलतीफी कर फजीहत करवाने के बाद विभाग ने पीएम रिपोर्ट सार्वजनिक की। इसमें यह भी सामने आया कि तेंदुए को काफी नजदीक से दो गोलियां मारी गई थीं। रिपोर्ट जारी करने में हुई देरी और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान भी विभागीय मिलीभगत की ओर इशारा कर रहे हैं। आशियाना की औरंगाबाद खालसा कॉलोनी के शरीफ के मकान में जिस किचन की दीवार में ये छेद मिले उसी किचन में वॉश बेसिन के नीचे वन विभाग की टीम को तेंदुआ मृत मिला था। पीएम रिपोर्ट से यह भी पता चला कि तेंदुए को पास से मारी गईं गोलियां उसके शरीर के आरपार निकल गई थीं। इस कारण चिकित्सकों को तेंदुए के शव में सिर्फ गोलियों के घुसने और निकलने के घाव मिले, गोलियां नहीं मिलीं।

ऐसे में अब तेंदुए की मौत को लेकर बड़ा सवाल यह उठने लगा है कि किचन की दीवार में ये छेद किसने और कब बनवाएं। रविवार दोपहर जब मीडियाकर्मी शरीफ के मकान में घरवालों से घटना के बारे में पूछने पहुंचे तो उन्हें गांववालों के गुस्से का सामना करना पड़ा। सामने आई तस्वीरों में छेद ताजा मसाले से बंद मिले। इलाकाई लोगों ने बताया कि तेंदुए की मौत के बाद ये छेद बंद किए गए हैं। दोपहर को इलाकाई जनप्रतिनिधि बीना रावत ने तेंदुए के हमले से प्रभावितों का हालचाल लिया।

लखनऊ जू के अस्पताल में शनिवार दोपहर चार घंटों से भी अधिक समय तक चले पोस्टमार्टम में तेंदुए के शरीर पर गोलियों के चार घाव मिले हैं। ये दो गोलियों के लगने से हुए हें। मुख्य वन संरक्षक अवध के. प्रवीण राव ने बताया कि तेंदुए को दो गोलियां लगीं, जो पीठ और गर्दन के पीछे की हड्डियों के हिस्से में घुसते हुए शरीर के आरपार हो गई। इन्हीं के घाव मिले।

तेंदुए को गोली मारने की नहीं थी परमिशन, दर्ज होगी FIR: PCCF

उपनिदेशक जू डॉ उत्कर्ष शुक्ला, डॉ. अशोक कश्यप, डॉ. बृजेन्द्रमणि, डॉ. आशीष सिंह के अलावा राजधानी के सीवीओ डॉ. टीपी सिंह और डॉ. आशीष के पैनल ने पोस्टमार्टम किया। इसमें तेंदुए की मौत का कारण शॉक और अत्यधिक रक्तस्त्राव भी पाया गया है, क्योंकि दिल के वॉल्व में खून नहीं मिला। चिकित्सकों को इसके अलावा लगभग 50 किलो वजनी 5 साल के वयस्क नर तेंदुए के शरीर पर किसी अन्य हथियार के निशान नहीं मिले। यह भी बताया कि पोस्टमार्टम के बाद मुख्य पशु चिकित्सकाधिकारी कुछ दौरों पर रहे रिपोर्ट में देरी हुई।

वन विभाग की कहानी में भी झोल, मौके पर नहीं दिखे

वन विभाग की कहानी में भी लापरवाही दिखने लगी है। लोगों ने रविवार दोपहर बताया कि सुबह जब तेंदुआ जाल काटकर भागा तो उन्होंने वन विभाग की टीमों को इसकी सूचना देनी चाही तो कर्मचारी इधर-उधर चले गए। कुछ लोग मैदान में खड़ी वन विभाग की गाड़ियों में दिखे तो नजदीक ही रहने वाले मैकूलाल के मकान में भी महकमे के 6-7 लोग मिल गए। इनसे जब स्थानीय लोगों ने तेंदुए के निकल भागने की बात कही तो वे उन पर ही भड़क गये। विभागीय आला अधिकारियों से भी ग्राउंड स्टाफ ने ये बातें छिपाईं।

आशियाना में तेंदुए को घेरकर मारने को लेकर देशभर के पशु प्रेमी गुस्साए हैं। संस्थाएं भी पुलिसिया और वन विभाग के रवैये को लेकर आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। इन सबके बीच नगर के पशु प्रेमियों और सोशल मीडिया पर लोगों ने मारे गए तेंदुए को ‘अभिमन्यु’ का नाम दे दिया। पीपुल्स फॉर एनिमल (पीएफए) के सदस्यों ने घटना को लेकर देश के तमाम हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन किया। आने वाले दिनों में लखनऊ में भी प्रदर्शन की तैयारी है।

पीएफए की पदाधिकारी स्वाति गौरव ने बताया कि दो दिनों से जिस तेंदुए को बचाने की कोशिश टीमें कर रही थीं, दो घंटों में पब्लिक और पुलिस ने उसे घेरकर मार डाला। ठीक वैसे ही जैसे कभी महाभारत के ‘अभिमन्यु’ को मारा गया था। इसी कारण हम पशु प्रेमियों ने उसे ‘अभिमन्यु’ नाम दिया है। उसकी मौत को लेकर संस्था के लोगों ने भोपाल, इंदौर, बरेली, उत्तराखंड के अलावा दक्षिण भारत में प्रतीकात्मक प्रदर्शन किए। कार्रवाई न होने पर हम लखनऊ में भी उसके लिए आवाज उठाएंगे।

उत्तराखंड वाइल्ड लाइफ बोर्ड के मेंबर रहे कौशलेन्द्र सिंह पहले ही मामले को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक को शिकायत की तैयारी कर रहे हैं। राजधानी में वन्यजीवों और पशुओं के लिये काम करने वाली एक्टिविस्ट कामना पांडेय ने बताया कि पूरे मामले में लीपापोती को लेकर हम कानूनी कार्रवाई की तैयारी कर रहे है। मारा जाने वाला वन्यजीव नरभक्षी नहीं था, न उसे मारने के लिए प्रदेश के पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ से अनुमति ली गई थी।

आशियाना में शनिवार को मारे गए तेंदुए पर गोली पुलिस ने चलाई थी। यह जनता भी जानती है और मीडिया में भी दिनभर पुलिस ने चीख-चीख कर बयान दिया। फिर भी न जाने वन विभाग को पुलिस से किस बात का डर है कि केस अज्ञात पर कराया गया। अब जांच के बाद कार्रवाई का राग अलापा जा रहा है। इस पर विशेषज्ञ कहते हैं कि यह पहला मामला नहीं है जब दोनों विभाग ‘आपसी तालमेल’ से काम करते देखे गए हैं।

वन्य जीव संरक्षण विशेषज्ञ और उत्तराखंड वाइल्ड लाइफ बोर्ड के मेंबर रहे कौशलेन्द्र सिंह के मुताबिक अवैध कटान में भागीदारी के खेल की भी इसमें भूमिका है। बताया कि 2011-12 में माल में एक किसान सागौन का अपना पेड़ कटवा रहा था। फारेस्ट गार्ड ने रिपोर्ट की तो कार्रवाई हो गई। वहीं, उन्होंने पिछली सरकार में दुधवा संरक्षित वनक्षेत्र में लगभग 10 हजार से अधिक अवैध पेड़ों की कटान की रिपोर्ट मुख्यमंत्री और डीजीपी को दी।

मामले को लेकर कमेटी बैठी जांच हुई, लेकिन आज तक मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में तेंदुए के मामले में उम्मीद जताई जा सकती है कि नाम सामने होने के बावजूद महकमा अज्ञात के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। प्रदेश के पूर्व पीसीसीएफ रहे डॉ. रामलखन सिंह ने बताया कि दोनों विभाग सरकार के लिए काम करते हैं।

ऐसे में अपने-अपने कार्यक्षेत्र में एक दूसरे का सहयोग तो लेना ही पड़ता होगा, हो सकता है कि उसके चलते ही ऐसा हुआ हो। आबादी में तेंदुए को गोली मारे जाने को लेकर कहा कि वन विभाग के नियम जितने मजबूत वन्यक्षेत्र में होते हैं, उसके बाहर उनमें शिथिलता आ जाती है। ऐसे में तमाम गुंजाइश रहती है।

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