बीते दिनों राजधानी लखनऊ में आलू किसानों ने जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया था। विरोध जताते हुए किसानों ने लाखों टन आलू सीएम आवास, विधानसभा और राजभवन के बाहर फेंक दिये थे। किसानों के नाम पर राजनीति करना उनको सुविधाओं का लाली पाप दिखलाना और उनका वोट बैंक हासिल करना होता है। किसानों की जमीनी हकीकत क्या है इसे सरकार को कोई लेना देना नहीं है। वहीं इन दिनों आलू किसान आलू को कौड़ियों के दाम पर बेचने को मजबूर है। 

फरुखाबाद जिला आलू के मामले नंबर वन

प्रदेश का फरुखाबाद जिला आलू के मामले में पहल स्थान पर आता है। तो वही, गाजीपुर दूसरा स्थान लेकिन यहां के किसान आलू के सीजन में बहुतायत मात्रा में आलू की खेती करते हैं। आलू जब खेतों से निकलता है तब ये किसान इसके अच्छे मूल्य की चाहत में आस-पास के कोल्ड स्टोरेज में रख देते हैं, वही कुछ किसान व्यापारियों के हाथों बेच देते हैं।

एक तरफ को किसान जो इस उम्मीद से आलू कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं कि इसको निकालने के बाद बेटे को इंजीनियर डॉक्टर बनाने के लिए भेजेंगे। बेटी की शादी भी करेंगे। वह आलू के व्यापारी अच्छी मुनाफा के लिए भी आलू को किसानों से खरीद कर कोल्ड स्टोरेज में रख देते हैं। किसान और व्यापारियों का आलू जब खेत से निकलता है अब इनकी लागत प्रति क्विंटल 300 से 400 रुपया आता है।कोल्ड स्टोरेज में रखने पर प्रति क्विंटल 210 का खर्च भी आता है। साथ ही कोल्ड स्टोरेज से निकालने के बाद भाड़ा और पल्लेदार का भी करीब 100 रुपया खर्च होता है।

इस तरह किसानों को इस वक्त आलू की कीमत लगभग 700 से 800 से प्रति कुंटल आ रहा है। लेकिन इस वक्त जो आलू का बाजार भाव है, इतना गिर चुका है कि इन्हें मात्र 50 से 150 से प्रती क्विंटल ही मिल पा रहा है। जिसको लेकर आलू के किसान और व्यापारी काफी परेशान है।

प्रदेश के कुछ किसान अपने आलू को कोल्ड स्टोरेज में छोड़ दे रहे है। तो कुछ किसान कुछ अधिक रुपये मिलने की चाहत में मिल से निकाल बाजार में बेचने की जुगत लगा रहे है। सबसे ज्यादा हालत उन किसानों की खराब है, जो इसी आलू के सहारे बेटी की शादी तय कर चुके है। उन्हें समझ मे नही आ रहा है कि वे क्या करे।

प्रदेश का हर किसान और व्यापारी सीएम योगी और पीएम मोदी सरकार को कोसती नजर आ रही है। इनका कहना है कि जब योगी सरकार बनी थी तो उसने आलू का केंद्र खोलने की और समर्थन मूल्य देने की बात कहीं थी लेकिन उसका वादा सिर्फ वादा ही रहा।

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