1- हाथरस जिले के नगला बलवंत गांव के किसान रामबाबू और उनके दो भाइयों ने आलू के 3000 पैकेट (प्रत्येक 50 किलो) दो कोल्ड स्टोरेज में रखे थे। कोल्ड स्टोरेज के रेट के बराबर भी दाम नहीं मिलने के कारण 600-700 पैकेट आलू फेंकने पड़े।
2- आगरा जिले के खतौली के किसान बहादुर सिंह ने परिवार की 14 एकड़ जमीन में आलू की फसल लगवाई थी। 4000 कट्टे (बोरे) कोल्ड स्टोरेज में रखे। आलू 40 से 50 रुपए कट्टा बिकने से इतना घाटा हुआ इस बार आलू बोने की हिम्मत नहीं हुई। 12 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर अपनी बीमारी का इलाज करा रहे हैं।
3- आलू की लागत निकलवाने से परेशान किसानों ने अपना सांकेतिक विरोध बताने के लिए शनिवार तड़के राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास, उनके कार्यालय, राज्य विधानमंडल के सामने सड़कों पर आलू फेंक दिया। प्रदेश में तमाम स्थानों पर कोल्ड स्टोरेज से आलू निकालकर सड़कों पर फेंका जा चुका है।
देश में आलू किसानों की बदहाली बयां करने के लिए रामबहादुर और रामबाबू के उदाहरण अकेले नहीं हैं। तमाम आलू उत्पादक किसान इसी स्थिति से गुजर रहे हैं। भाव में गिरावट के चलते उन्हें ओने पौने दामों में आलू बेचना पढ़ रहा है। कई कोल्ड स्टोरेज से किसानों ने आलू नहीं निकाला तो कई ने खुद ही उन्हें फेंक दिया।
लागत की बात छोड़िए ऐसे भी केस है कि कोल्ड स्टोरेज के किराए के बराबर भी आलू का दाम नहीं मिला। मध्य और पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में कोल्ड स्टोरेज के बाहर आलू के ढेर देखे जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की बाजार हस्तक्षेप योजना भी आलू किसान को राहत नहीं दे पाई। सरकार ने 487 रुपए कुंतल की दर से 12938 क्विंटल आलू खरीदा। लेकिन यह मात्रा कोल्ड स्टोरेज मे रखे 120 लाख टन क्विंटल आलू की तुलना में नगण्य रही।
पिछले साल प्रदेश के 6.15 हेक्टेयर हिस्से में 1.55 लाख टन आलू का उत्पादन हुआ। जिस समय भाजपा की सरकार बनी उस समय आलू का बाजार भाव बेहद कम था। किसानों ने इस उम्मीद में बड़ी तादाद में कोल्ड स्टोरेज में आलू रखा कि आने वाले महीनों में आलू का भाव सुधर जाएगा। किसान दिसंबर जनवरी में कोल्ड स्टोरेज चालू निकाल कर बाजार में बेचता है। कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने का किराया आमतौर पर 200 से 300 रुपये कुंतल के बीच में है।
मंडी में इस समय सुपर क्वालिटी का आलू 500 रुआपये किलो और सामान्य आलू 300 रुआपुइ कुंतल है। औसत श्रेणी में आलू का भाव मंडी में उतना मिल रहा है जितना किसान कोल्ड स्टोरेज किराए, परिवहन और लेबर पर खर्च करता है। आलू की फसल पर आई लागत उसे खुद वहन करनी पड़ रही है आलू पर आमतौर पर 600 रुपये कुंतल लागत आती है।
मार्च 2017 में जिस समय प्रदेश में भाजपा सरकार बनी उस समय आलू में मंदी का दौर था। राज्य सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के रेट 487 रुपए प्रति कुंतल की दर से आलू खरीदने की घोषणा की थी। जो किसानों को ज्यादा देर रात नहीं दे पाई। जिस समय योजना की घोषणा हुई तब अधिक तर आलू कोल्ड स्टोरेज में रखा जा चुका था।
औरंगाबाद के टांडा बहरामपुर गांव के प्रधान और इंडियन पोटैटो ग्रोवर एंड एक्सपोर्टर सोसाइटी के अध्यक्ष सुधीर शुक्ला कहते हैं कि राज्य सरकार की बाजार हस्तक्षेप योजना हवा-हवाई थी। कुछ अफसरों ने इसे गलत ढंग से प्रचारित कराया। राज्य सरकार ने परिवहन में भाड़े में 50 रुपये कुंतल छूट का निर्णय लिया था। लेकिन इसे इतना जटिल बना दिया गया कि किसान लाभ नहीं ले पाए। आलू की सरकारी लागत खरीद भी नहीं हो पाई। आलू किसान कभी सरकारों की प्राथमिकता में नहीं रहे, इसलिए बंपर फसल के बावजूद बर्बादी की स्थिति में आ रहे हैं।
कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू ने सरकार से आलू उत्पादक किसानों के साथ अन्याय करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान भाजपा ने किसानों की समस्याओं के समाधान का वादा किया था अब वह वादे से मुकर रही है। आलू किसान बेहाल है और सरकार सो रही है।
लल्लू ने कहा के विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को उठाने के बाद सदन में सरकार की ओर से आवश्यक कार्यवाही की बात कही थी लेकिन कोई ठोस पहल नहीं की गई। यदि कुछ किया गया होता तो किसान लखनऊ की सड़कों पर आपने आलू को नहीं फेंकता। उन्होंने समर्थन मूल्य घोषित ना होने पर किसान आंदोलन की चेतावनी भी सरकार को दी है।
भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने कहा कि लखनऊ में किसानों ने आलू फेंककर सांकेतिक विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि सरकार को 16 मंत्रालयों की एक कमेटी बनानी चाहिए जो किसानों को बताए कि प्रदेश में कितने आलू, कितनी सब्जी और कितने अनाज की जरूरत है।
कई देशों में ऐसी व्यवस्था है। भाकियू के मंडल अध्यक्ष हरनाम सिंह का कहना है कि सरकार ने 487 रुपये क्विंटल आलू खरीदने का दावा किया था लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। जो थोड़ी बहुत खरीद हुई, वह आलू की ग्रेडिंग करके हुई। उन्होंने सवाल किया कि बड़ा और छोटा आलू कहां जाएगा?
एसएसपी दीपक कुमार ने बताया कि सीएम आवास, राजभवन और विधानसभा भवन और 1090 चौराहे के सामने लोडर चालक आलू गिराते हुए नजर आया तब शरारत की पुष्टि हुई। एसएसपी ने बताया कि सुबह ही हजरतगंज कोतवाली के नाइट अफसर उपनिरीक्षक राहुल सोनकर ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन कर एक लोडर का नंबर बताते हुए आलू गिराने की सूचना दी थी।
छानबीन में गौतमपल्ली थाना के नाइट अफसर उपनिरीक्षक प्रमोद कुमार, बाइक पर गश्त करने वाले सिपाही अंकुर चौधरी व वेद प्रकाश तथा हजरतगंज कोतवाली क्षेत्र में बाइक पर तैनात सिपाही कोमल सिंह व नवीन कुमार की लापरवाही सामने आई। उन्होंने आलू गिरने की जानकारी के बाद भी इस संवेदनशील मामले को नजरअंदाज किया। जिसके चलते इन पांचों पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया। एसएसपी ने बताया कि जो आलू फेंके गए हैं, वह सड़े हुए थे। आलू का नमूना जांच के लिए सुरक्षित रख लिया गया है।
आलू फेंकने के इस मामले पर कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि विपक्ष योगी सरकार को बदमान करने की साजिश रच रहा है। इतनी मात्रा में आलू अचानक कहां से आया इसकी जांच होगी। उन्होंने कहा कि सड़े आलू सड़कों पर फेंकवाकर सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। इस मामले में उन्होंने कहा कि अगर किसान आलू बाहर लेकर जाता है तो उसे 200 रुपये प्रति कुंतल या 25 परसेंट जो अधिकतम होगा वो भाड़े में छूट दी गई है। 2 प्रतिशत मंडी समिति ने छूट दी है। आधा परसेंट शेष में छूट दी गई है। इतना बड़ा काम पिछली सरकारों ने कभी आलू किसानों के हित में नहीं किया। यही वजह है कि 120 लाख मीट्रिक टन आलू राज्य से बाहर चला गया। उन्होंने कहा कि राज्य में अब पुराना आलू नहीं बचा है।