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उत्तर प्रदेश के सात शहरों में वायु प्रदूषण के कारण समयपूर्व मृत्यु दर में बढ़ोतरी

Premature mortality rate Increase Due to air pollution in seven cities of Uttar Pradesh

Premature mortality rate Increase Due to air pollution in seven cities of Uttar Pradesh

पिछले दो दशकों में खराब एयर क्वालिटी ही वह प्रधान कारण है, जिस वजह से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के शहरी इलाकों में मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है। यह निष्कर्ष है, सेंटर फॉर एन्वॉयरोंमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) और आइआइटी-दिल्ली द्वारा तैयार एक रिसर्च रिपोर्ट ‘नो व्हाट यू ब्रीथ’1 (जानिए आप कैसी हवा में सांस ले रहे हैं) का, जिसके अनुसार बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित उत्तर भारत के शहरों में ‘समयपूर्व मृत्यु-दर (प्रीमैच्योर मोर्टेलिटी)’ चिंताजनक ढंग से प्रति लाख आबादी पर 150-300 व्यक्ति के करीब पहुंच गयी है।

यह भी महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है कि अध्ययन में शामिल 11 शहरों में (रांची को छोड़कर) सभी जगह एक प्रदूषक तत्व- पर्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) का स्तर नेशनल स्टैंडर्ड से दो गुना ज्यादा2 और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सालाना स्वीकारयोग्य सीमा3 से आठ गुना ज्यादा हो गया है। इन ग्यारह शहरों में उत्तर प्रदेश के आगरा, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, बिहार राज्य के पटना, गया व मुजफ्फरपुर और झारखंड प्रदेश के रांची को शामिल किया गया।

यह रिपोर्ट सालाना मध्यमान पर्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) के संकेंद्रण की पड़ताल करता है, जिसे पिछले 17 सालों के सैटेलाइट डाटा के गहन विश्लेषण से तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में शामिल वायु प्रदूषण से त्रस्त 8 शहरों को पहले ही वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा तैयार ग्लोबल एयर क्वालिटी एसेसमेंट पर आधारित रिपोर्ट ‘ग्लोबल एंबियंट एयर क्वालिटी डाटाबेस (2018)4 में स्थान मिल चुका है।

उत्तर प्रदेश से संबंधित मुख्य निष्कर्षों में ये तथ्य उभर कर सामने आये हैं कि गंगा के मैदानी प्रदेश के पश्चिमी छोर पर बसे मेरठ (99.2μg/m3) और आगरा (91μg/m3) जैसे शहरों में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण की समस्या है। यह रिपोर्ट इस तथ्य पर जोर देती है कि इंडो गंगेटिक एरिया में पीएम2.5 एक्सपोजर संबंधी उत्सर्जन उभार पश्चिम से पूर्वी इलाकों की ओर जा रहा है। अध्ययन में शामिल 11 शहरों में वाराणसी में पीएम2.5 का विस्तार सबसे तेज पाया गया है। पिछले 17 वर्षों में वाराणसी में पीएम2.5 के स्तर ने 28.5μg/m3 तक बढ़ने का संकेत दिया है। प्रदेश के प्रमुख शहरों में गिने जानेवाले मेरठ, आगरा, लखनऊ, वाराणसी और गोरखपुर में पीएम2.5 की बढ़ती रफ्तार ‘‘अलार्मिंग’’ स्तर पर आ चुकी है, वहीं कानपुर और इलाहाबाद में यह ‘‘मोडरेट’’ स्तर पर है।

बढ़ते प्रदूषण के कारण सालाना समयपूर्व मृत्युदर के मानक पर कानपुर में सर्वाधिक मौत यानी 4173 प्रति वर्ष होती है, वहीं इसके बाद लखनऊ में 4127 लोगों की मृत्यु हो जाती है। अगर सालाना समयपूर्व मृत्युदर की संख्या को प्रत्येक लाख की आबादी के मानक में परिवर्तित करें तो मेरठ और आगरा में सर्वाधिक यानी प्रतिलाख 290 लोगों की मृत्यु होती है। मेरठ में वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। मौसम संबंधी प्रदूषण में उतार-चढ़ाव की बात करें तो यह बात महत्वपूर्ण है कि अक्तूबर से नवंबर के मानसून पश्चात सीजन और दिसंबर-फरवरी के जाड़े के सीजन में निम्न सीमा परत और सापेक्ष रूप से ठंडी स्थिति के कारण पीएम2.5 के मामले में बहुत ज्यादा एक्सपोजर लेवल रहा करता है।

रिपोर्ट के मुख्य नतीजों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए सीड के प्रोग्राम डायरेक्टर श्री अभिषेक प्रताप ने कहा कि ‘हम लोग अपने शहरों में जन स्वास्थ्य के दुःस्वप्न का सामना कर रहे हैं, क्योंकि प्रदूषित हवा फेफड़े खराब कर हमारा दम घोंट रही है। यह हमारे लिए जागने का समय है और पॉल्युशन ट्रेंड को पलटने के लिए सक्रिय होने का भी, क्योंकि हमारा स्वास्थ्य और जीवन दावं पर लगा हुआ है। केंद्र व राज्य सरकारों को इस अलार्मिंग स्थिति को अविलंब नोटिस में लेना चाहिए और समाधान के तौर पर एक नेशनल क्लीन एयर एक्शन प्लान तैयार करना चाहिए, जो महत्वाकांक्षी व प्रभावी हो और समय आधारित क्रियान्वयन पर फोकस करता हो।’ श्री प्रताप ने आगे बताया कि ‘वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का कोई भी बेहतर प्रयास एक समुचित एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग मैकेनिज्म के बिना व्यर्थ हो जायेगा, क्योंकि बिना समुचित डाटा के यह स्थिति अंधेरे में तीर मारने के जैसी है और अंततः हमें औंधे मुंह गिरना पड़ेगा।’

यह रिपोर्ट इस तथ्य पर जोर देती है कि इंडो गंगेटिक एरिया में पीएम2.5 एक्सपोजर संबंधी उत्सर्जन उभार पश्चिम से पूर्वी इलाकों की ओर जा रहा है। अध्ययन में शामिल 11 शहरों में वाराणसी में पीएम2.5 का विस्तार सबसे तेज और रांची में सबसे कम पाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले 17 वर्षों में वाराणसी में पीएम2.5 के स्तर ने 28.5 μg/m3 तक बढ़ने का संकेत दिया है। वाराणसी के अलावा मेरठ, आगरा, लखनऊ, गोरखपुर और पटना में पीएम2.5 की बढ़ती रफ्तार ‘‘अलार्मिंग’’ स्तर पर आ चुकी है, वहीं कानपुर, इलाहाबाद और गया में यह ‘‘मोडरेट’’ है। मुजफ्फरपुर में प्रदूषक धूलकणों में वृद्धि की दर कमोबेश रांची से तुलनायोग्य है। मौसम संबंधी प्रदूषण में उतार-चढ़ाव की बात करें तो यह बात महत्वपूर्ण है कि अक्तूबर से नवंबर के मानसून पश्चात सीजन और दिसंबर-फरवरी के जाड़े के सीजन में निम्न सीमा परत और सापेक्ष रूप से ठंडी स्थिति के कारण बहुत ज्यादा एक्सपोजर लेवल रहा करता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों के बारे में जानकारी देते हुए सीड की सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने बताया कि ‘एयरोसोल कंपोजिशन के विश्लेषण में यह तथ्य सामने आया है कि एयरोसोल पॉल्युटेंट्स जैसे सल्फेट, ऑर्गेनिक कार्बन, ब्लैक कार्बन जैसे प्रमुख प्रदूषकों का प्रतिशत बढ़ता गया है। प्रदूषण स्तर में ऐसी खतरनाक वृद्धि के लिए मुख्य रूप से मानवजनित स्रोत जिम्मेवार हैं और इसमें सबसे अहम भूमिका अनियोजित और बेतहाशा बढ़ते शहरीकरण की है। इसके अलावा मौसमविज्ञान संबंधी और स्थान-परिवेश की प्रकृति भी प्रदूषण के स्तर को परिवर्तित करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।’ उन्होंने आगे बताया कि ‘पीएम2.5 संकेद्रण में सबसे बड़ा योगदान आवासीय स्रोतों जैसे कुकिंग, हीटिंग और लाइटिंग का है, इसके बाद इन शहरों में इंडस्ट्री, ट्रांसपोर्ट और एनर्जी सेक्टर का नंबर आता है।’

भारत का हृदय स्थल कहे जानेवाले गंगा मैदानी क्षेत्र में बसे शहरों में वायु की गुणवत्ता सुधारने के लिए जरूरी कदमों के बारे में बताते हुए ‘नो व्हाट यू ब्रीथ’ रिपोर्ट के लेखक व आइआइटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमोशफियरिक साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ साज्ञनिक डे ने कहा कि ‘एयर क्वालिटी मैनेजमेंट प्लान का एक महत्वपूर्ण पहलू है, उद्देश्यों को पूरा करने के लिए टारगेट (जैसे एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड की प्राप्ति) को अल्पकालिक, माध्यमिक और दीर्घकालिक समय के साथ तय करना, और साथ ही इसका ठोस व बेहतर क्रियान्वयन करना। पहली प्राथमिकता के साथ घरेलू इस्तेमाल में स्वच्छ ईंधन की दिशा में बदलाव भी इन इलाकों में एयर क्वालिटी की दशा उत्तरोतर सुधारने में सहायक होगी खासकर घर-आधारित प्रदूषण उत्सर्जन को कम करने के लिए।

अगर नेशनल एयर क्वालिटी गाइडलाइन को हासिल कर लिया जाता है तो ‘प्रीमैच्योर मोर्टेलिटी बर्डन’ (समयपूर्व मृत्युदर भार) को आगरा, कानपुर, लखनऊ व मेरठ में 20 प्रतिशत से अधिक और इलाहाबाद, गया, गोरखपुर, मुजफ्फरपुर, पटना और वाराणसी में 10 से लेकर 20 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।’ यह रिपोर्ट वायु की गुणवत्ता सुधारने के व्यावहारिक समाधान के रूप में लोगों के बीच जनजागरूकता फैलाने, इंटर-स्टेट कोऑर्डिनेशन, और गंगा के मैदानी इलाकों के लिए खास तौर पर एक प्रभावी रिजनल क्लीन एयर एक्शन प्लान तैयार करने और इसके ठोस क्रियान्यवन पर जोर देती है।

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