उत्तर प्रदेश के अमेठी जनपद में न जाने कितने निजी शिक्षण संस्थान अस्तित्व में हैं इन संस्थानों में मोटी फीस लेकर, बच्चों को शिक्षा-दीक्षा दी जा रही है एक समय था जब निजी शिक्षण संस्थान गिनती के थे जिले में आज शिक्षा को व्यवसाय बना लिया गया है और शासन-प्रशासन मूक दर्शक बना बैठा है।
सिर्फ कागजों पर है सरकारी दिशा निर्देश:
- निजी शिक्षण संस्थाओं में गणवेश, डोनेशन,किताबों आदि की मारामारी से आम अभिभावक त्रस्त ही नजर आ रहा है।
- शासकीय विद्यालय के शिक्षकों को चुनाव, परिवार नियोजन आदि बेगार के कामों में उलझा दिया गया था, जिससे वहाँ की पढ़ाई प्रभावित हुए बिना नहीं है।
- शासकीय शालाओं में शिक्षकों का ध्यान अब पढ़ाई की ओर पूर्व की तरह नहीं रह गया है, यह सब कुछ शासन-प्रशासन बखूबी जानता है।
- शासकीय स्तर पर निजी शिक्षण संस्थानों के लिये न जाने कितने दिशा-निर्देश जारी होते हैं, पर उनमें से कितनों का पालन हो पाता है, यह बात भी सभी के सामने है।
- हर साल दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम आने के बाद सरकारी और निजी शिक्षण संस्थान तो मौन रहते हैं पर निजी स्तर पर कोचिंग के संचालकों द्वारा बच्चों के अच्छे प्रतिशत आने पर इसका श्रेय बटोरा जाता है।
- शिक्षण संस्थानों की इस मामले में चुप्पी आश्चर्यजनक ही मानी जा सकती है
- वैसे वे चुप इसलिये हैं क्योंकि, वे इस बात को बेहतर जानते हैं कि पालक आखिर बचकर जायेगा कहां? एक नहीं तो दूसरी संस्था में तो दाखिला करवायेगा ही।
फीस की फांस में फंसे हैं अभिभावक:
- यक्ष प्रश्न तो यह है कि निजी कोचिंग के संचालकों द्वारा श्रेय लेने की जो कवायद की गयी उस पर न तो सांसद-विधायक ही चिंतित नजर आ रहे हैं और न ही प्रशासन ने ही संज्ञान लेता नजर आता है।
- इसका कारण यह है कि निजी शिक्षण संस्थानों में अभिभावकों द्वारा मोटी फीस देकर बच्चों को पढ़ाया जाता है,
- फिर क्या वजह है कि, सरकारी विद्यालय की बजाय बच्चा किसी निजी कोचिंग में जाने की जिद करता है।
- जाहिर है कि निजी शिक्षण संस्थानों में अनुभवी शिक्षकों का टोटा है? अगर नहीं तो क्या वहाँ पढ़ाई का स्तर बेहद कमजोर है?
शिक्षा को दुकान बनाने वाल अभियान:
- समाजसेवी रमेश मिश्र ‘फौजी’ का कहना है प्रशासन को चाहिये कि इस मामले में संज्ञान अवश्य ले अगर किसी संस्था में कोई बच्चा अध्ययन कर रहा है तो कम से कम उस संस्था के शिक्षक पर तो कोचिंग पढ़ाने पर पाबंदी लगनी ही चाहिये।
- एक बात समझ से परे है कि विद्यालय में चालीस बच्चों के बीच जो शिक्षक बच्चों को विषय समझाने में असफल रहता है।
- वह निजी तौर पर कोचिंग के दौरान चालीस मिनट में ही उस विषय में बच्चे को पारंगत कैसे बना देता है, मतलब साफ है कि शिक्षा को दुकान बनाने का अभियान परवान चढ़ रहा है।
ये भी करें पहल:
- अगर ऐसा नहीं किया जा सकता है तो बेहतर होगा कि, जिले के विधायक निजी कोचिंग संस्थानों को ही शिक्षण संस्थान का दर्जा दिये जाने की बात विधानसभा में गुंजायमान करें,
- ताकि कम से कम अभिभावक तो कई दृष्टिकोणों से लुटने से बच सकें।
- विडम्बना यही है कि सांसद-विधायक भी शिक्षा के मामलों में विधानसभा और संसद में मौन ही रहने में भलाई समझते हैं, जिससे शिक्षा का स्तर गिरना स्वाभाविक ही है।
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