फूलपुर उपचुनाव के बाद अटकलों का बाजार गर्म है और सभी राजनीतिक दल प्रत्याशियों को लेकर मंथन कर रहे हैं. बीजेपी, सपा, बसपा के साथ कांग्रेस भी इस सीट पर जीत की आस लगाये बैठी है. केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद ये सीट खाली हुई थी जिसपर 11 मार्च को उपचुनाव होना है, जबकि गोरखपुर की सीट योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद खाली हुई है. कांग्रेस की जिला इकाई ने प्रत्याशियों के नामों को लेकर एक बैठक बुलाई थी जिसमें प्रियंका गाँधी के नाम पर काफी गर्म माहौल में बहस हुई. फूलपुर की सीट पर उपचुनाव के लिए 20 फ़रवरी तक नामांकन दाखिल किये जायेंगे लेकिन कांग्रेस ने अभी कोई प्रत्याशी नहीं दिया है.
प्रियंका को उम्मीदवार बनाने की उठी मांग
जिला इकाई ने बैठक में प्रियंका गाँधी को फूलपुर से उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा. इस प्रस्ताव को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर को भेजा जाना है. प्रियंका गाँधी के नाम को लेकर लगभग हर चुनाव में अटकलें लगाई जाती हैं. फूलपुर उपचुनाव को लेकर लग रही अटकलों के पीछे भी कई वजह हैं. देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं जबकि वीपी सिंह भी इस जीत से चुनाव जीत चुके हैं. ऐसे में प्रियंका गाँधी को इस सीट से उम्मीदवार बनाए जाने की मांग जिला इकाई कर रही है.
क्या है मायावती का ‘ईबीएम प्लान’, जो कर रहा है बीजेपी को परेशान
बैठक में लगे प्रियंका गाँधी के नारे:
हालाँकि अभी इसको लेकर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है लेकिन जिला इकाई बराबर दबाव बना रही है और प्रियंका गाँधी के समर्थन में बैठक के दौरान तो नारे भी लगे थे. बता दें कि रायबरेली से प्रियंका को उम्मीदवार बनाये जाने की मांग भी जोरशोर से उठती रही है. पार्टी किस समीकरण को देखते हुए उम्मीदवार तय करेगी, इसको लेकर मंथन लगातार जारी है.
उपचुनावों को लेकर सियासत तेज:
2019 के आगामी लोकसभा चुनावों के पहले सभी पार्टियों के लिए गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव सीएम योगी के लिए परीक्षा माना जा रहा है. वहीँ गोरखपुर के अलावा फूलपुर में होने वाले चुनाव में डिप्टी सीएम केशव मौर्य की साख भी दाव पर होगी. इन दोनों लोकसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीख की चुनाव आयोग द्वारा घोषणा कर दी गयी है. 11 मार्च को इन सीटों पर चुनाव पर मतदान होंगे जबकि 14 को गिनती का काम होगा. वहीँ चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद राजनीतिक दलों की बयानबाजी तेज हो गई है.