यूपी के अमेठी जिला में पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों की करबला में शहादत की याद में दसवीं मुहर्रम को जिले के मुसाफिरखाना के भनौली के तमाम मोमनीन गमे हुसैन में डूबे रहे। शुक्रवार को इमाम हुसैन की याद में जुलूस बडा इमाम बारगाह से जामा मस्जिद इमामबाग और फिर इमामबाग से छोटा इमाम बारगाह व दरगाह-ए-आलिया होते हुए कर्बला में ताज़िया दफ्न कर संपन्न किया गया। इस बीच अज़ादारों ने जमकर नौहा-मातम किया और इमाम की याद में आंसू बहाए। लोगों ने कर्बला के शहीदों की याद में तलवारों और ज़नजीरों से खुद को ज़ख़्मी कर फतेमा ज़हरा को पुरसा दिया।
हिन्दू धर्म के लोग हुए शामिल :
मुहर्रम के इस जुलूस में ख़ास बात ये रही कि इसमें ना सिर्फ मुसलमान बल्कि बड़ी संख्या में हिंदू भाइयों ने भी शिरकत की। इस बीच मौलाना इकबाल हुसैन, मौलाना इंतज़ार आबदी और मौलाना अमीर हसन ने तकरीर कर कर्बला के शहीदों का ज़िक्र किया और लोगों को इमाम हुसैन की कुर्बानी का असल मकसद लोगों तक पहुंचाया।
क्यों मनाया जाता है मोहर्रम :
गमी का दिन मुहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों को इराक के बयाबान में जालिम यजीदी फौज ने शहीद कर दिया था। हजरत हुसैन इराक के शहर करबला में यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे और अपने नाना मोहम्मद साहब के दीन बचा लिया।
मोहर्रम में लोग खुद को जख्मी क्यों करते हैं :
शिया मुसलमान अपनी हर खुशी का त्याग कर पूरे सवा दो महीने तक शोक और मातम मनाते हैं। इमाम हुसैन पर हुए ज़ुल्म को याद करके रोते हैं। ऐसा करने वाले सिर्फ मर्द ही नहीं होते, बल्कि बच्चे, बूढ़े और औरतें भी हैं। यजीद ने इस युद्ध में बचे औरतों और बच्चों को कैदी बनाकर जेल में डलवा दिया था। मुस्लिम मानते हैं कि यजीद ने अपनी सत्ता को कायम करने के लिए हुसैन पर ज़ुल्म किए। इन्हीं की याद में शिया मुसलमान मातम करते हैं और रोते रहते हैं।