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गाँव पठारी पिपरा माफ प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों के वादे पर है जोरदार तमाचा

Pushpendra Singh Chandel Adopted Pipara Maaf village's reality check

Pushpendra Singh Chandel Adopted Pipara Maaf village's reality check

गाँव पठारी पिपरा माफ प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों के वादे पर है जोरदार तमाचा

एक तरफ जहाँ बीजेपी की सरकार के आते है सबका साथ व सबका विकास की तर्ज पर बीजेपी ने अपनी सरकार की कार्यनीति शुरू की थी। वैसे ही अच्छे दिन की शुरुआत का स्लोगन भी उन्होंने दिया था। इसी के अंतर्गत पीएम मोदी ने सभी विधायको को कम से कम एक गांव गोद लेने का एक अभियान जारी किया था। मोदी का नाम आते ही अच्छे दिनों का ख्वाब ताजा हो जाता है। अच्छे दिन आने के दावे और वादे की उम्र दो साल हो चुकी है।

ग्रामीण अपनी व्यथा डीएम से लेकर पीएम तक, सभी को सुना चुके हैं, पर हर बार परिणाम सिफर ही रहा

हमीरपुर-तिन्दवारी लोकसभा से भाजपा सांसद के इस दत्तक गांव का कोई पुरसाहाल नहीं है। महोबा जनपद का ग्राम पठारी पिपरा माफ प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों के वादे पर जोरदार तमाचा है। सड़क, बिजली और पानीविहीन इस गांव का दुर्भाग्य है कि यहां की एक हजार आबादी इक्कीसवीं सदी में चौदवीं सदी का जीवन गुजार रही है। कहने को तो इसे हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी से भाजपा सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने गोद ले रखा है, पर इन दो वर्षों में वह इस गांव में फकत एक बार पहुंच सके।

जिला प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा और सांसद को यहां आने तक की नही है फूर्सत

आदर्श ग्राम होने के चलते जिला प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा और सांसद को यहां आने की फूर्सत नहीं है। डिजिटल इंडिया जैसे शब्द से अंजान इस गांव के लोग आधुनिकता की दौड़ में कितने पीछे हैं इसका अनुमान लोगों के घरों में जलने वाली लालटेनों से लगा सकते हैं। देश का यह पठारी पिपरा माफ गांव उन दुर्भाग्यशाली गांवों में शुमार है, जहां आजादी के बाद से अब तक बिजली नहीं पहुंची। यूपी सीमा के अंतिम छोर पर बसे इस गांव में केवल विद्युत अनुपलब्धता ही बड़ी समस्या नहीं, गांव की कच्ची सड़क, जस संसाधन का अभाव और पगडंडियों में व्याप्त गंदगी ने भी ग्रामीणों का जीना दुश्वार कर रखा है।

स्वास्थ्य व शिक्षा के नाम पर महज एक दिखावा, मही मिल रही कोई सुविधाए

अस्पताल और स्कूल के नाम पर भी यहां कुछ नहीं है। रही बात पानी की तो गांव के बाहर लगे एक मात्र हैंडपम्प से 250 परिवार काम चला रहे हैं। बुंदेलखंड के महोबा में पानी को लेकर जो हालात हैं वह सभी जानते हैं ऐसे में गांव के लिए यह हैंडपम्प किसी वरदान से कम नहीं। तड़के चार बजे से इस हैंडपम्प पर लगा साइकिलों और बैलगाड़ियों का जमावड़ा गांव में गहराते पानी संकट की कहानी बयान करता है। सफाई के मामले में भी इस मजरे की दशा बेहद खराब है।

और तो और अधिकांश ग्रामवासियों के पास नही है मोबाइल तक

अधिकांश ग्रामवासियों के पास मोबाइल नहीं है, और जिनके पास है वह पड़ोस के गांव से चार्ज कर काम चलाते हैं। फ्रिज टीवी, स्टीरियो और डीवीडी किस बला का नाम है, पठारी के ग्रामीण जानते तक नहीं। इस गांव की हालत देखकर आप प्रधानमंत्री के अच्छे दिनों की असलियत समझ और परख सकते हैं।  असल में पठारी गांव मोदी के कथित विकास को मापने का वह थरमामीटर जो उनके सभी दावों को झूठा साबित कर रहा है। गांव में रहने वाले रिटायर्ड फौजी नवाब सिंह परिहार कहते हैं कि सांसद ने ग्रामीणों के साथ छलावा किया है।

ग्राम पंचायत के साथ प्रशासन कर रहा सौतेला व्यवहार

बकौल नवाब सिंह, वह खुद कई बार सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल से मिल चुके हैं, पर वह कोई ध्यान नहीं दे रहे। ग्राम प्रधान घसीटा अनुरागी को भी इस बात का खासा मलाल है कि उनकी ग्राम पंचायत के साथ प्रशासन सौतेला व्यवहार कर रहा है। प्रधान के मुताबिक उनकी ग्राम पंचायत में पिपरा माफ के साथ कंचनपुरा, उदयपुरा और पठारी जुड़े हुए हैं,

”अपना पेट हाऊ न देहो काऊ” सटीक बैठी तिंदवारी सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल की कार्यशैली पर यह कहावत

बुंदेलखंड की एक मशहूर कहावत है, अपना पेट हाऊ – न देहो काऊ. हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल की कार्यशैली पर यह कहावत सटीक बैठती है। सांसद द्वारा गोद लिए गांव पठारी के विकास की फिक्र भले न हो पर वह खुद की तरक्की को लेकर बड़े गंभीर रहते हैं। सांसद के नाम पर चल रहे पेट्रोल पम्प, क्रशर, पहाड़, काऐलेज और कामधेनु योजना के नाम पर स्थापित एक करोड़ लागत की डेयरी उनके विकास-पसंद होने का पुख्ता प्रमाण है, पर यह विकास उनका निजी है।

क्रशर प्लान्टों पर नियम-कानून की उड़ा रहे धज्जियां

यही वजह है कि इनके क्रशर प्लान्टों पर नियम-कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। कबरई के डहर्रा में इनके नाम पर हो रहा पत्थरों का अवैध खनन भी कानून के प्रति इनके गैरजिम्मेवारी को ही दर्शाता है। सांसद के पेट्रोल पम्पों में भी नियमों की खूब खिल्ली उड़ाई जाती है। सांसद अपने निज-विकास को लेकर कितने संजीदा हैं, इसका उदाहरण है उस योजना को हथियाया जाना, जिसे बुंदेलखंड की दशा सुधारने के लिए लागू किया गया था।

बुंदेलखंड में है भीषण जल-संकट

सांसद के पिता हरपाल सिंह के आवेदन को स्वीकृत हुए भी दो साल बीत चुके हैं, लेकिन आज तक कामधेनु योजना चालू नहीं हो सकी। बताते हैं कि निर्माण कार्य के लिए बैंक की तरफ से फंड रिलीज हो चुका है पर भवन अभी भी आधा-अधूरा ही पड़ा है।

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