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यूपी पुलिस फर्जी मुठभेड़ के बाद कहती है – लाश देने का कोई कानून नहीं

Azamgarh: Rakesh Pasi Encounter Reality check by Rihai Manch-2

रिहाई मंच ने फर्जी मुठभेड़ में मारे गए आजमगढ़, गोपालपुर के राकेश पासी के गांव जाकर परिजनों से मुलाकात की। परिजनों का आरोप है कि उसके सीने और पीठ पर गोलियों के निशान हैं जबकि टी शर्ट पर निशान नहीं है। प्रतिनिधिमंडल में मसीहुद्दीन संजरी, शाह आलम शेरवानी, अनिल यादव और राजीव यादव शामिल थे।

प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि जब वे राकेश (29) के घर पहुंचे तो वहां उनकी तेरहवीं की तैयारी चल रही थी। इस बीच उनकी मां चनौती देवी, पत्नी रेखा और गांव वासियों से मुलाकात हुई। रोते हुए चनौती देवी बताती हैं कि उनके पति की पहले ही मृत्यु हो गई है और उनके एक लड़के दिनेश पासी की गुजरात में मौत हो गई थी जब वो कमाने गया था। अब राकेश के जाने के बाद उनके परिवार में वो और राकेश की पत्नी रेखा और उसके तीन छोटे-छोटे बच्चे अंश, खुशी और आर्यन रह गए हैं। वो इस उम्र में उनकी देखभाल कैसे कर पाएंगी। कहती हैं जहां बैठे हैं यह पट्टीदार का मकान है, सामने के झोपड़ीनुमा अपने घर को दिखाते हुए फूट-फूटकर रोने लगती हैं।

Azamgarh: Rakesh Pasi Encounter Reality check by Rihai Manch

राकेश की पत्नी से बात करने पर पहले वो अवाक सी हो जाती हैं और फिर फूट-फूटकर रोने लगती हैं। रोते में ही कहती हैं कि बार-बार पुलिस आती थी। पुलिस के डर से वे सबके सब गांव छोड़कर भागे-भागे रहते थे। पुलिस वाले गाली-गलौज करते थे। इसी बीच उन्हें शांत करवाती हुई राकेश की चाची इन्द्रावती कहती हैं ‘ऐसे भगवइनै कि बाऊ के मरल मुंह देखे के पड़ल।’ बगल में खड़ी उनकी एक और चाची कहती हैं कि पुलिस ने कुछ दिनों पहले कुर्की की थी तो उनके घर में भी घुसकर तोड़-फोड़ की और सामान उठा ले गई। वे राकेश की मां की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं ‘बुढ़िया इ लइकी (राकेश की पत्नी) के पुलिस के डर के मारे ले के भागल-भागल फिरत रही, बतावा इ का कइ सके ई उमर में।’

घर वाले घटना के बारे कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं थे और राकेश के घर में अब कोई वयस्क पुरुष नहीं बचा। ऐसे में उनके चाचा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि 18 जून को 12 बजे दिन में मालूम चला कि राकेश को पुलिस ने मार दिया है। जहांनगज थाने के अमिठा, गोपालपुर के पास मारने की खबर आने के बाद शाम को मेंहनगर थाने से पुलिस आई। पहले दिन हम लोग गए पर उस दिन पोस्टमार्टम नहीं हुआ। दूसरे दिन पोस्टमार्टम हुआ उसके बाद हम लोगों ने लाष घर ले जाने के लिए कहा तो कहा गया कि ‘लाश देने का कोई कानून नहीं है।’

गांव के लोग मोबाइल में राकेष के शव की फोटो दिखाते हैं जिसमें वो लाल टी शर्ट पहने हुए है। वे बताते हैं कि सीने में छह और पीठ पर पांच गोलियों के निशान, कंधे और सिर पर एक-एक गोली का घाव दिख रहा था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर इतनी गोलियों के निशान बदन पर दिख रहे थे तो क्यों नहीं टी शर्ट पर वो दिखे। परिजनों का कहना है कि न तो उनको पुलिस ने एफआईआर की कापी दी न ही पोस्टमार्टम की। जब वे थाने गए तो पुलिस ने कहा कि 32 दिन बाद कापी दी जाती है।

वे बताते हैं कि राकेश ने प्रधानी का चुनाव लड़ा था जिसमें उसे 360 वोट मिले थे। चुनाव के दौरान और उसके बाद भी पुलिस लगातार उसके बारे में पूछताछ करने आती थी। यह सब करीब चार साल से चल रहा था।

प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि राम जी पासी की फर्जी मुठभेड़ में जब हत्या की गई तो उस घटना में राकेष पासी को पुलिस ने फरार बताया था। गौरतलब है कि रामजी पासी प्रकरण की जांच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कर रहा है। वहीं राकेश के शरीर पर गोलियों के निषान और टी शर्ट के निषानों पर उठते सवाल साफ बताते हैं कि पुलिस ने राकेश को पहले की उठा लिया था। बाद में उसकी हत्या कर फर्जी मुठभेड़ की कहानी बनाई। इसमें पुलिस ने जहां पहले उसे एक फर्जी मुठभेड़ में मारे गए रामजी पासी के साथ होने और फिर भागने की बात कही। 18 जून को जिस तरीके से राकेश को मारा गया उससे साफ है कि दोनों मुठभेड़ों की पुलिसिया कहानी फर्जी ही नहीं बल्कि ठंडे दिमाग से की गई हत्या है।

राकेश के साथ एक अन्य व्यक्ति और एसओजी के सिपाही को गोली लगने की बात कह घटना को सही ठहराने की कोशिश की गई है। मीडिया में पुलिस ने कहानी बनाई कि वे महिला प्रधान के प्रतिनिधि को मारने जा रहे थे। उनका पीछा करते हुए पुलिस ने उनकी बाइक में टक्कर मार दी। वे गिरते ही पुलिस पर फायर करने लगे। पुुलिस की ताबड़तोड़ फायरिंग में एक बदमाश मारा गया जबकि दूसरा गोली लगने से घायल हुआ। एसओजी सिपाही भी घायल हुआ। यह पूरी कहानी मनगढ़ंत है। अगर नहीं है तो पुलिस क्यों नहीं परिजनों को एफआईआर और पोस्टमार्टम की कापी दे रही है। जबकि इसे पाना पीड़ित परिवार का अधिकार है। दरअसल, पुलिस जानती है कि तथ्य सामने आते ही वो सवालों के घेरे में फंस जाएगी।

रिहाई मंच ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के ठोंक देने के आदेश के बाद फर्जी मुठभेड़ों के नाम पर वंचित समाज के लोग मारे जा रहे हैं। चाहे वो राम जी पासी हों या फिर राकेश पासी दोंनों ही राजनीतिक रुप से सक्रिय थे। राम ही जहां 600 मतों से बीडीसी थे तो वहीं राकेष पिछले प्रधानी चुनाव में 360 वोट पाया था। यह घटनाएं साफ करती हैं कि योगी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाकर आगामी चुनाव का रास्ता साफ कर रही है। आजमगढ़ में फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए सभी लोग चाहे छन्नू सोनकर, जयहिंद यादव, राम जी पासी, मुकेश राजभर, मोहन पासी और अब राकेश पासी सभी के सभी पिछड़े और दलित समाज से हैं।

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