खेती तो हर कोई करता हैं कोई गेहूं धान तो कोई दलहन पैदा करता हैं और देश का पेट भरता हैं लेकिन जब उन पर प्रकृति की मार पडती हैं तो वह बर्दाश्त नही कर पाता और मौत को गले लगा लेता हैं. वही राजनैतिक दल इनकी मौतो पर भी अपनी रोटी सेकने से परहेज नही करते. वही जनपद के एक किसान ने विषम परिस्थितियों में हार मानने के बजाय अपना रास्ता राष्ट्रपति भवन तक बना अपनी औषधि खेती के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डा0अब्दुल कलाम साहब के हाथों सम्मानित हो चुके हैं तो वही दूसरी और प्रदेश सरकार ने उन्हे उ़द्यान पण्डित तक का खिताब दे चुकी हैं.
लखनऊ में खेल विभाग में कोच के पद का भी ऑफर मिल चुका हैं
जनपद गाजीपुर जहां के लोगों के आय का मुख्य जरिया किसानी और देश की सेवा करने के लिए जवान पैदा करना होता हैं वही जनपद के जमानिया तहसील के अमौरा गांव जहां के रहने वाले किसान रंगबहादुर सिंह ने अपनी खेती का परचम प्रदेश ही नही देश मे फैलाया राष्ट्रपति भवन तक पहुंच चुके हैं, रंगबहादुर सिंह वैसे तो अपने समय मे पढने लिखने मे काफी होशियार थे, जिसके बदौलत इन्हे लखनऊ में खेल विभाग में कोच का पद मिला, लेकिन इनका मन उसमे नही लगा और वे उसे छोड़कर घर आकर अपनी खेती मे जुट गये.
अपनी पूरी खेती में जैविक खाद का प्रयोग किया
2001 में इन्हें पत्रिका उद्यमिता में छत्तीसगढ के किसान राजाराम त्रिपाठी और उनके खेती के बारे में जानकारी मिली. वे उससे प्रभावित हुए, और पहुंच गये राजाराम के फार्म हाऊस पर जहां उन्हे इसके बारे में जानकारी हासिल की और अपने गांव पहुंच अपने खेतों में कालमेघ, सतावरी, घृतकुमारी, सर्पगंधा, चित्रक, पत्थर चुर्ण, वक्ष,चंदन का पेड़, महोवनी और गुगुल के साथ ही कई तरह की खेती आरम्भ कर की. ये खेती करते गये और इसकी नवीनतम जानकारीया भी लेते गये. इस दौरान इन्होने अपने पूरी खेती में जैविक खाद का ही प्रयोग किया. जिसके बदौलत 2004 मे तत्कालीन राष्ट्रपति डा0अब्दुल कलाम साहब के द्वारा पूरे देश से 18 प्रगतिशील किसानों को आमंत्रित किया गया. जिसमे किसान रंग बहादुर पुर्वांचल से इकलौते किसान शामिल हुए. इसके बाद इन्हें बसपा सरकार में 2005 में प्रदेश के कृषि मंत्री अशोक वाजपेयी के द्वारा उद्यान पंडित का खिताब दिया.
सरकार ने मदद की जिसकी वजह से आज आगे बढ़ पाये
इसके बाद रंगबहादुर सिंह अपनी खेती को और आगे बढ़ाते गये और कई प्रमाण पत्र और सम्मान हासिल किया. इनकी खेती 4 हेक्टेयर मे होती हैं जिसमे इनका पूरा परिवार साथ देता हैं. 2005 मे भारत सरकार के तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार के द्वारा मेडिसिन प्लांट को औद्योगिक मिशन में सम्मिलित करने के लिए 12 सदस्यीय टिम मे बुलाया गया. जिसके बाद जनपद का चयन औद्योगिक मिशन में हुआ और जनपद को इस मद में 3 करोड़ की राशि उत्साहवर्धन के लिए आई. इन्होने बताया की सरकार इनकी मदद कर रही हैं जिसकी बदौलत आज इस खेती में यह आगे बढ़ पाये हैं लेकिन इसका बाजार नही होने की वजह से इनका अधिकतम लाभ बिचैलिये खा जाते हैं. अगर इन्हे बाजार या फिर दवा कम्पनिया डायरेक्ट इनका सामान खरीद ले तो जनपद मे इस आयुर्वेदिक औषधि खेती की संभावना और भी बढ़ सकती हैं.
रंगबहादुर अपनी मेहनत और समझदारी से ख्याति बटोर रहे हैं
एक ओर जहां रंगबहादुर अपनी मेहनत और समझदारी से अपनी खेती को परम्परागत के बजाय औषधि मे तब्दील कर आज ख्याति बटोर रहे हैं वही इनके इस कार्य से उनके गांव का भी नाम रौशन देश के पटल पर हो रहा हैं. वही अगर इन्हे जरा और मदद या फिर प्रधानमंत्री के द्वारा घोषित आयुष गांव मिशन लागू हो जाय तो फिर इस तरह की औद्योगिक खेती को एक नया आयाम मिल सकता हैं और जो लोग आयुर्वेद से दुर हो चले हैं वो इससे नाता जोडना आरम्भ कर देंगे.
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