उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव 2017 के जो नतीजे आये हैं। इन नतीजों से जनता ही नहीं सत्तारूढ़ पार्टियों के मुखिया से लेकर कार्यकर्ता भी अचंभित हैं। चुनाव के नतीजे आने के बाद राष्ट्रीय लोक दल के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।
आरएलडी अपने ही गढ़ में हुई ध्वस्त
- रालोद पार्टी का अपना ही गढ़ पूरी तरह ध्वस्त हो गया।
- छपरौली, मांट और सिवालखास इन तीन जगह को छोड़कर आरएलडी कैंडिडेट अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।
- छपरौली कम अंतर से जीत गए, मांट सीट पर कुछ ही वोटों से हार मिली और सिवालखास में जमानत बचा ली।
- हालात ऐसे हो गए कि 357 सीटों पर चुनाव लड़ने का दम भरने वाली पार्टी मुश्किल से एक सीट ही जीत सकी।
- 2012 में 9 सीट जीतने वाली आरएलडी को साफ संकेत मिल रहे हैं कि वह बिना बैशाखी के आगे नहीं बढ़ सकती।
जाट भी रालोद से छिटकने लगे
- लगातार जनाधार खोती जा रही आरएलडी के लिए चुनौती यह है कि उनके सजातीय जाट भी उनसे छिटकने लगे हैं।
- जाट बाहुल्य मोदीनगर, सिवालखास, बागपत, बड़ौत, मांट आदि सीट पर बीजेपी या दूसरे दलों ने बाजी मार ली।
- रिजल्ट से साफ है कि आखिरी वक्त में जाट भी बड़ी तादाद में आरएलडी का साथ छोड़ गए, जबकि बीजेपी से जाट नेता जीते।
- जिनमें बलंदशहर से वीरेंद्र सिंह सिरोही, बुढ़ाना से उमेश मलिक, शामली से तेंजेंद्र सिंह, गढ़मुक्तेश्वर से कमल मलिक, छाता से लक्ष्मीनारायण, फतेहपुर सीकरी से उदयभान, बिजनौर की एक सीट से भी जाट नेता बीजेपी से विधायक बन गए।
अकेले लड़ने पर मिली सिर्फ एक सीट
- राष्ट्रीय लोक दल का परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाला जाट वोट अजित सिंह से बिखर रहा है।
- 2012 फिर 2014 और अब 2017 में पार्टी को करारा झटका लगा है।
- उससे पार्टी के भविष्य पर राजनीति के जानकार सवाल उठाने लगे हैं।
- उनका मानना है कि अजित सिंह को दूसरे दलों के साथ मिलकर ही मैदान में उतरना चाहिए।
- 2012 में अजित सिंह ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा 9 सीटें मिली।
- इस बार अकेले लड़ा और सिर्फ एक सीट आई।