लखनऊ. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को ऐसे समय में बंद करने का फैसला किया है जब यूपी में चुनाव सिर पर हैं। ब्रैंडिंग और कॉरपोरेट होते चुनाव में जब सारी जमीन पैसे से ही तैयार होती है, ऐसे में इस झटके ने कई प्रत्याशियों और दावेदारों के माथे पर पसीने ला दिए हैं। जानकारों के अनुसार तो फैसला सही से लागू हुआ तो ‘कैश की ऐश’ बंद हो जाएगी। समस्या यह है कि अगर पहले से जुटाया गया पैसा अकाउंट में जमा कराकर इसे ‘सफेद’ खर्च करने की कोशिश की जाए तो इनकम टैक्स के दायरे में लाना होगा।
विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा 28 लाख रुपये
- राजनीतिक पार्टियों का भीड़ जुटाने से लेकर पोस्टर-बैनर लगाने तक का सारा कम भुगतान पर होता है।
- चुनाव की तैयारी कर रहे एक प्रत्याशी का कहना है कि एक दिन साथ चलने के लिए भी 500 रुपये की अपेक्षा आम होती है।
- लिहाजा 500-1000 रुपये के नोट आम चलन का हिस्सा हो चुके हैं।
- ऐसे में सारा काम ही ठप हो जाएगा। विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा 28 लाख रुपये है।
- जबकि खर्च इससे कई गुना ज्यादा होता है। चुनाव लड़ने वाले कई प्रत्याशी अपनी आय व खर्च दोनों ही कम दिखाते हैं।
- टिकट पाने से लेकर क्षेत्र में माहौल बनाने तक के खर्चे कैश में ही होते हैं।
- इससे पिछली आय के आंकड़ों में हेर-फेर फंसा सकता है।
- समस्या क्षेत्रीय दलों के लिए और बढ़ गई है क्योंकि उनका अधिकांश लेन-देन कैश में होता है।
- क्योकि चुनाव के बदलते ट्रेंड में कार्यकर्ताओं की जगह पेड वर्कर ने ली है।
चंदा देने वाले का विवरण देना जरूरी नहीं होता
- जानकारों का कहना है कि चुनाव के लिए चंदों के नाम पर फंड जुटाने का काम शुरू हो चुका है।
- राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपये से अधिक के चंदे की जानकारी देनी होती है।
- इससे कम के लेन-देन के लिए चंदा देने वाले का विवरण देना जरूरी नहीं होता है।
- अब यह संयोग है या सुनियोजित रणनीति कि पार्टी राष्ट्रीय हो या राज्य स्तर की, वह चुनाव आयोग को जो चंदे का ब्योरा देती है उसमें से 70 फीसदी 20 हजार से कम के देनदारों के होते हैं।
- यह वह सोर्स है जिसका पता न चुनाव आयोग लगा पाता है और न ही दूसरी आर्थिक एजेंसियां इसका पता लगा पाती हैं।
चंदा छिपाना होगा मुश्किल
- अब अगर पार्टियां 20 हजार नकद का चंदा दिखाती हैं तो भी उसमें आई 500-1000 नोटों को बैंकों तक पहुंचाने के लिए उनका विवरण या स्त्रोत देना होगा।
- ऐसे में चंदा छिपाना मुश्किल हो सकता है।
- आईआईएम लखनऊ के प्रफेसर हिमांशु राय कहते हैं कि ताजा फैसले का असर जाली नोटों और चुनाव खर्च पर पड़ेगा।
- मिडिल लेवल करप्शन पर भी इसके असर दिखेंगे।
- हालांकि, योजना जैसे-जैसे लागू होगी, इसके लांग टर्म प्रभाव उसी अनुसार समझ में आएंगे।
पिछले लोकसभा चुनाव में 300 करोड़ रुपये से अधिक कैश हुआ था जब्त
- पिछले लोकसभा चुनाव में सर्वे एजेंसियों ने करीब 30 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया था।
- खास बात यह है कि सभी राजनीतिक दलों को ओर से दिखाया गया खर्चा इस राशि का 10 फीसदी भी नहीं था।
- सेंटर फॉर मीडिया स्टडी के अनुसार पिछले पांच सालों में देश में हुए चुनावों में करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
- इसमें से 75 हजार करोड़ रुपये बेनामी सोर्स से थे। जिसे ‘ब्लैक मनी’ बताया जा रहा है।
- पिछले लोकसभा चुनाव में 300 करोड़ रुपये से अधिक कैश जब्त किया गया था।