अंतर्राष्ट्रीय और देश के जन आंदोलनों के दबाब के चलते केंद्र की सरकार ने सूचना के अधिकार कानून (public information) को जैसे-तैसे साल 2005 में लागू तो कर दिया।
- पर तब से अब तक सरकारें किसी न किसी तरह इसी जुगत में लगी रहती हैं कि आखिर कैसे इस आरटीआई की धार कुंद की जाए।
- केंद्र सरकार और यूपी सरकार की कुछ ऐसी ही नीयत का खुलासा लखनऊ के सामाजिक संगठन ‘येश्वर्याज’ की सचिव उर्वशी शर्मा ने उत्तर प्रदेश प्रशासनिक एवं प्रबंध अकादमी की एक RTI के तहत दी गई रिपोर्ट के आधार पर किया है।
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क्या कहती है रिपोर्ट
- इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में जन सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए 45 लाख रुपये आबंटित किये थे।
- जिसमें से प्रदेश सरकार ने 38 लाख 30 हज़ार 823 रुपये खर्च किये।
- इसी रिपोर्ट से यह चौंकाने वाला खुलासा भी हुआ है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 में सूबे के आम नागरिकों के प्रशिक्षण के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार, दोनों ही सरकारों ने धेला भी नहीं दिया है।
- इस रिपोर्ट के आधार पर समाजसेविका उर्वशी ने केंद्र सरकार और यूपी की सरकार को पारदर्शिता विरोधी करार देते हुए इन सरकारों द्वारा आरटीआई एक्ट को आम जनता के बीच प्रचारित-प्रसारित करने के लिए वित्तीय संसाधनों का प्राविधान न करने के लिए दोनों सरकारों की भर्त्सना की है।
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राष्ट्रपति और यूपी के राज्यपाल को लिखा पत्र
- उर्वशी ने बताया कि दिसंबर 2015 में ‘उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015’ लागू हो जाने के बाद सूचना मांगने के किये इतने अधिक फॉर्म्स,फॉर्मेट्स और प्रक्रियाएं आमद कर दिए गए है।
- कि आम आदमी को सूचना मांगना अत्यधिक कठिन हो गया है।
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- ऐसे में जहां गैर सरकारी संगठन ‘येश्वर्याज’ बिना किसी सरकारी मदद के आरटीआई एक्ट को जन-जन तक पंहुचाने की कोशिश कर रहा है तो वहीं केंद्र और राज्य सरकारें इस मामले में मूकदर्शक बन पारदर्शिता के प्रति अपनी संवेदनहीनता का परिचय दे रही हैं।
- यूपी की आरटीआई नियमावली 2015 को अपनी उपलब्धि बताने वाले सूचना आयोग द्वारा इस मामले में आंख कान मुंह बंद किये रहने पर आड़े हाथों लेते हुए उर्वशी ने इस मामले में भारत के राष्ट्रपति और यूपी के राज्यपाल को पत्र लिखकर इस वित्तीय वर्ष में आम जनता को आरटीआई की ट्रेनिंग देने के लिए (public information) वित्तीय व्यवस्थाएं करने की मांग उठाई है।
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