एटा से इसे लड़ा सकती है समाजवादी पार्टी लोकसभा 2019 का चुनाव !
जहाँ एक तरफ सपा-बसपा गठबंधन में सीटों के बंटवारे को गुरुवार को अंतिम रूप दे दिया गया। सूबे में लोकसभा की सीटों में से 37 सीटें सपा और 38 सीटें बसपा के खाते में गई हैं। वही दूसरी तरफ ऐसे में एटा लोकसभा सीट सपा के पास आते ही दावेदारों के बीच कयास शुरू हो गई है। वैसे तो समाजवादी पार्टी की एटा लोकसभा पर अच्छी पकड़ है। एटा जिले की दो विधानसभाएं लोकसभा सीट को मजबूती देती हैं। लेकिन संभावित उम्मीदवारों में पूर्व सांसद देवेन्द्र सिंह यादव और पूर्व विधायक रामेश्वर सिंह यादव शामिल हैं। जिसमे सूत्रों की माने तो देवेन्द्र सिंह यादव का दावेदारी ज्यादा मानी जा रही है हलाकि वे 2014 में भाजपा से चुनाव जरुर हार गए थे पर इसका कारन लोग मोदी की लहर को मान रहे है।
- मगर एटा लोकसभा सीट सपा के खाते में आते ही दावेदारों ने अपना अपना दावा पेश करना शुरू कर दिया है।
- सपा के जिम्मेदार अभी तक खुलकर नहीं कह पा रहे हैं कि एटा लोकसभा सीट पर किसको लड़ाया जाएगा।
- लेकिन सुगबुगाहट तेज हो गईं और आठ दावेदारों की लिस्ट पार्टी मुखिया के दरबार में पहुंचने की चर्चाएं हैं।
- उत्तर प्रदेश की एटा लोकसभा सीट 2019 के चुनाव से काफी वीआईपी सीट मानी जा रही है।
ना सिर्फ राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका है एटा का काफी महत्व
2014 में हुए चुनाव में यहां से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे। एटा के पटियाली में ही मशहूर सूफी संत अमीर खुसरो का जन्म हुआ था। ऐसे में ना सिर्फ राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका महत्व बढ़ जाता है।
- मगर एटा लोकसभा सीट पर पार्टी मुखिया किसको लड़ाएंगे यह कहना अभी जल्दबाजी होगी।
- लेकिन संभावित उम्मीदवारों में पूर्व सांसद देवेन्द्र सिंह यादव और पूर्व विधायक रामेश्वर सिंह यादव शामिल हैं।
- समाजवादी पार्टी किस पर ज्यादा भरोसा जताती है यह अभी भी गर्त में छिपा हुआ है।
- दिग्गजों के बीज मंथन शुरू हो गया है कि आखिर एटा लोकसभा की नैया कौन सा प्रत्याशी पार लगा सकता है।
पार्टी जिस चेहरे को सामने लाएगी वही होगा हमारा सांसद प्रत्याशी
1980 के हुए चुनाव में यहां से आखिरी बार कांग्रेस जीत पाई थी। हालांकि, उसके बाद 1967 और 1971 का चुनाव जीत कांग्रेस ने यहां से वापसी की। लेकिन 1977 में चली कांग्रेस विरोधी लहर में चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोकदल ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भारतीय जनता पार्टी से अलग हो अपनी पार्टी बना यहां से चुनाव लड़ा और जीता। कानपुर और फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट से सटे एटा में पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता था। लेकिन उसके बाद यहां से हिंदू महासभा ने भी 1957 और 1962 में जीत दर्ज की थी।
- उसके बाद 1984 में लोक दल के जीत दर्ज करने के बाद ये सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई।
- 1989, 1991, 1996 और 1998 में यहां भारतीय जनता पार्टी के महकदीप सिंह शाक्य ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी।
- 1999 और 2004 एटा से लगातार दो बार समाजवादी पार्टी का परचम लहराया।
- पिछले चुनाव में कल्याण सिंह माने और उनके बेटे राजवीर सिंह को टिकट मिला।
- राजवीर सिंह ने दोगुने अंतर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को मात दी।
जातीय समीकरण के आधार पर एटा का क्षेत्र है काफी महत्वपूर्ण
- जातीय समीकरण के अनुसार एटा का क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है।
- एटा क्षेत्र में लोध, यादव और शाक्य जातीय बहुल है।
- 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर करीब 16 लाख मतदाता थे।
- जिसमें से 8.5 लाख पुरुष और 7.2 लाख महिला मतदाता हैं।
- बता दें कि बीते साल 26 जनवरी, 2018 को कासगंज में निकली तिरंगा यात्रा पर काफी बवाल हुआ था।
- यहां हुई हिंसक झड़प में एक युवक की मौत हो गई थी।
- इस मुद्दे पर काफी राजनीतिक बवाल भी हुआ था और राज्य की योगी सरकार की काफी आलोचना हुई थी।
रिपोर्ट- संजीत सिंह सनी
[penci_related_posts taxonomies=”undefined” title=”UP News” background=”” border=”” thumbright=”no” number=”6″ style=”grid” align=”none” displayby=”recent_posts” orderby=”random”]
- Uttar Pradesh Hindi News से जुडी अन्य ख़बरों की जानकारी के लिए हमें फेसबुक पर ज्वाइन करें और ट्विटर पर फॉलो करें
- यूट्यूब चैनल (YouTube) को सब्सक्राइब करें