दादरी की नयी फोरेंसिक रिपोर्ट आने और उसमें मिले मांस के टुकड़े के बीफ होने की पुष्टि के सपा की स्थित बहुत सजह नहीं है। नयी फोरेंसिक रिपोर्ट ने एक बार फिर सूबे का सियासी माहौल गर्म कर दिया है। जिसके बाद सपा प्रदेश प्रभारी शिवपाल सिंह यादव के अथक प्रयासों से करीब आये छोटे चौधरी यानी अजीत सिंह अब कुछ कटे-कटे से दिख रहें हैं।
सूत्रों की खबर के मुताबिक दादरी में गौमांस की पुष्टि होने के बाद पश्चिमी यूपी के जाटों में समाजवादी पार्टी के खिलाफ आक्रोश है।
मालूम हो कि पश्चिमी यूपी में जाट बिरादरी में अजीत सिंह की अच्छी पकड़ हैं और ऐसे में अगर वह सपा के साथ जातें हैं तो उन्हें भी जाटों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।
रालोद प्रमुख अजीत सिंह को डर सताने लगा है कि सपा से गठबंधन पर कहीं पश्चिमी यूपी में उनका बचा हुआ जनाधार भी उनसे मुंह न फेर ले।
दादरी की घटना ने सपा सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिये हैं, इसके साथ ही मेरठ में हुई हिंसा की लपटों से भी सपा खुद को दूर नहीं रख सकी।
विपक्षी दलों ने मेरठ में हुई हिंसा के लिए सीधे तौर पर प्रदेश की समाजवादी पार्टी को निशाना बनाया।
पिछले कुछ दिनों में पश्चिमी यूपी में हुए घटनाक्रम के बाद रालोद मुखिया अपना हाथ पीछे खींचतें हुए दिखाई दे रहें हैं। जिसके बाद संभावित सपा-रालोद गठबंधन बनने से पहले ही बिखर जायेगा।
पश्चिम बंगाल और तमिलनाडू में सत्तासीन दलों की वापसी के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि अच्छा काम करने वाली सरकारें रिपीट हो कर आ रहीं हैं।
सपा यूपी में दोबारा सरकार बनाने के लिए पूरा जोर लगा रहीं हैं और इसी क्रम में उसने पश्चिमी यूपी में बड़ी ताकत माने जाने वाले अजीत सिंह की पार्टी से गठबंधन का निर्णय लिया था।
2017 चुनावों में सपा, अजीत सिंह को अपने साथ लाकर अपनी जीत की प्रबल संभावनाएं तलाश रही थी, लेकिन अब अजीत सिंह के हाथ पीछे खींचने से गठबंधन खटाई में पड़ता दिखाई दे रहा है।