उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद शिक्षा और समाज कल्याण के क्षेत्र में कायापलट का दावा हर मोर्चे पर सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों और नेताओं द्वारा किया जाता रहा है लेकिन जब सच्चाई की पड़ताल की गयी तो पता चला कि पर्दे के पीछे शिक्षा और समाज कल्याण के नाम पर जो खेल चल रहा है वह वाकई में सरकारी दावो से बिलकुल विपरीत है|
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उत्तरप्रदेश की प्रत्येक सरकारें छात्रवृत्ति प्रदान करती रही हैं| गरीब परिवार के विद्यार्थियों की शिक्षा काफी हद तक उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति राशि पर निर्भर है लेकिन योगी सरकार के कार्यकाल में विद्यार्थियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जिसका कारण है छात्रवृत्ति की राशि अभी तक बहुतायत छात्रों के पास नहीं पहुंची है| मिर्ज़ापुर, बनारस समेत कुछ जिलों में तो हालत इतनी बदतर है कि अभी तक अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) छात्रों को छात्रवृत्ति की राशि का एक रुपया भी नहीं मिल सका है|
मिर्जापुर के छात्रों द्वारा प्रदान की गयी सूचना पर जब इस मामले में हमने जानकारी जुटाने की कवायद शुरू की तो अधिकारियों द्वारा दी गयी जानकारी और आंकड़ों में ज़मीन-आसमान का अंतर दिखाई दिया|
Scholarship Scam पर क्या कहते हैं अधिकारी?
जब हमने छात्रों के माध्यम से समाज कल्याण विभाग की वेबसाइट पर मौजूद टोल फ्री नंबर पर इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की तो एक छात्र को लम्बा-चौड़ा भाषण सुनाया गया| दुसरे छात्र से यह कहा गया कि जब बजट आएगा तो स्कॉलरशिप खाते में ट्रान्सफर कर दी जाएगी| एक अन्य छात्र ने जब इसी नंबर पर सूचना प्राप्त करने की कोशिश की तो फोन पर अधिकारी ने कहा कि बजट नहीं है, मुश्किल है कि ओबीसी की छात्रवृत्ति आएगी|
वेबसाइट पर मौजूद नहीं है वर्तमान आंकड़ा
अधिकारियों द्वारा प्रदान की गयी उपरोक्त जानकारी को पुख्ता करने के लिए जब हमने समाज कल्याण की वेबसाइट पर उपलब्ध रिपोर्ट को देखने की कोशिश की तो पता चला कि 2016-17 के आंकड़ें पूर्ण रूप से उपलब्ध ही नहीं हैं| सत्र 2017-18 का आंकड़ा अभी तक अपलोड नहीं किया गया है|
कितना सही है बजट राशि न होने का दावा?
अधिकारियों द्वारा बजट न होने की सच्चाई जानने की कोशिश की तो जो आंकडें प्राप्त हुए वो और भी चौकाने वाले थे| सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2015-16 वित्तीय वर्ष में शिक्षा का बजट 40112 करोड़ रूपये था जिसे 2016-17 के बजट में बढ़ा कर 49808 करोड़ रूपये कर दिया गया| बाद में बजट राशि में संशोधन करते हुए 46442 करोड़ रूपये शिक्षा का बजट निर्धारित किया गया जिसमे 1200 करोड़ रूपये पिछड़े वर्ग की छात्रवृत्ति और 942 करोड़ रूपये अल्पसंख्यक वर्ग की छात्रवृत्ति के लिए मजूर किया गया|
यानी सिर्फ शिक्षा का बजट ही लगभग 6300 करोड़ रूपये बढ़ा दिया गया| इतना ही नहीं 2017-18 में शिक्षा का प्रस्तावित बजट 62351 करोड़ रूपये है जो कि पिछले वर्ष की बजट राशि से 34% ज्यादा है|
अगर समाज कल्याण के नाम पर प्रस्तावित बजट को भी एक नज़र से देखा जाय तो 2015-16 में 17487 करोड़ की तुलना में लगभग 2500 करोड़ रूपये बढ़ा कर 2016-17 में 20238 करोड़ (संशोधित) कर दिया गया| वित्तीय वर्ष 2017-18 में प्रस्तावित बजट 22665 करोड़ रूपये है|
कहाँ है बजट में बढ़ाया गया धन?
अपने ही सरकारी आंकड़ों में अधिकारी फंसते हुए नज़र आ रहे हैं| जब प्रत्येक वित्तीय वर्ष में बजट राशि को बढ़ाया गया तो छात्रों को छात्रवृत्ति क्यों नहीं प्रदान की गयी? जिनको छात्रवृत्ति की रकम प्राप्त भी हुई है वो पिछले वर्ष के मुकाबले कम है| आखिर बजट में छात्रवृत्ति, शिक्षा और समाज कल्याण के नाम पर बजट में बढ़ाई गयी धनराशि कहाँ है?
एक और तर्क कि सरकारी कोष में धन नहीं है
अधिकारियों का यह भी तर्क है कि बजट तो प्रस्तावित हो गया लेकिन धनराशि ज़ारी नहीं की गयी क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार की कुल पूँजी घाटे में हैं| कुछ का यह भी कहना है कि सरकारी कोष में धन उपलब्ध नहीं है| नेता और मंत्री अकसर यह कहते हुए नज़र आते हैं कि समाजवादी सरकार ने सरकारी कोष खाली कर दिया है|
जब इस दावे की पड़ताल की गयी तो यह दावा भी झूठा निकला| 2015-2016 वित्तीय वर्ष में कुल टैक्स 2,27,076 करोड़ रूपये उत्तर प्रदेश सरकार के कोष में जमा हुआ| 2016-2017 वित्तीय वर्ष में सरकारी कोष में 2,69,407 करोड़ रूपये टैक्स के रूप में जमा हुए| 2017-2018 में 19% इज़ाफे के साथ कुल 3,19,397 करोड़ रूपये सरकारी कोष में जमा होने का अनुमान है|
अब सवाल यह उठता है कि आखिर जब आमदनी बढ़ी, बजट बढ़ा तो छात्रवृत्ति क्यों नहीं मिल रही? आखिर हजारों करोड़ रूपये कहाँ है?