गोमती नगर के विराज खंड में वर्ष 2003 में गोमती नगर स्टेशन के विस्तार व गड्ढ़ों के कातर करीब 150 भूखंड चले गए थे। लिहाजा, वहां पर आवंटित भूखंड मालिकों को बाद में एलडीए द्वारा अन्य विराज खंड पांच में समायोजित किया गया था। यह प्रक्रिया लंबे समय तक चली जिसमें खासा बवाल भी हुआ। पर, गोमती नगर की लैंड ऑडिट रिपोर्ट में इस जमीन को खाली दिखा दिया गया, जिसमें सैकड़ों प्लाट निकालने की सलाह दी गई जो करोड़ों में होंगे।
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जांच में सच्चाई उजागर
- लिहाजा, ऑडिट करने वाले लोग इसकी असलियत से अनजान रहे और आंख मूंदकर रिपोर्ट तैयार कर दी।
- इसी तरह विनीत खंड पांच में हाईटेशन लाइन के नीचे भी कई प्लाट निकाल दिये गए।
- जबकि उस जमीन पर भी प्लाट देना संभव न था।
- दरअसल, ये तो महज दो उदाहरण हैं लैंड ऑडिट तैयार करने में की गई गड़बड़ी के।
- रिपोर्ट में बिक चुके प्लाटों को भी खाली दिखाते हुए वाहवाही लूटने का प्रयास किया गया।
- अब रिपोर्ट की जांच में सच्चाई उजागर हो रही है।
- लिहाजा ऑडिट करने वाले से लेकर एलडीए अधिकारी तक खामियों की बात स्वीकार कर रहे हैं।
- लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से आवासीय कालोनी गोमती नगर का लैंड ऑडिट सर्वे करवाया गया था।
- यह सर्वे एक निजी एजेंसी द्वारा करवाया गया था।
- जिसने जियोलॉजिकल इंफोर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) तकनीक के माध्यम से सर्वे किया था।
- इस दौरान उनकी ओर से 5395 आवासीय व व्यावसायिक संपत्तियों की फाइलों में गड़बडिय़ों की बात कही गई।
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- कहा गया कि इसमें डुप्लीकेट फाइलें बनाकर खेल किया गया।
- आरोप लगे, एलडीए के अधिकारियों व बाबुओं ने मिलकर हजारों करोड़ का खेल किया।
- लेकिन, अब रिपोर्ट की पड़ताल करने पर उसमें ही कई खामियां निकल रही हैंं।
- लिहाजा, रिपोर्ट से हजारों करोड़ का घपला बताने व जेई व बाबुओं को चोर ठहराया गया।
- साथ ही एलडीए के वरिष्ठ अधिकारियों को हजारों करोड़ रुपए के लाभ के सपने दिखाये गए।
- लेकिन दुर्भाग्य से वह भी हवाहवाई साबित हो रहे हैं।
- लैंड ऑडिट में उन भूखंडों को भी खाली दिखा एलडीए की संपत्ति बता दिया जो बिक चुके हैं।
- जब संबंधित बाबुओं से ऑडिट के आधार पर पड़ताल की जा रही है तो सच्चाई उजागर हो रही है।
- हजारों करोड़ के घपले की जानकारी पाकर खुद प्रमुख सचिव मुकुल सिंघल सकते में आ गए थे।
- कहा जा रहा है कि इसके चलते ही उनका हाल में एलडीए में दौरा हुआ था।
- लेकिन रिपोर्ट ही गलत निकलने पर वह भी चुप रह गए।
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एजेंसी का ये है तर्क
- रिपोर्ट तैयार करने वाली एजेंसी का तर्क है कि हमने स्थिति को देख अपनी रिपोर्ट तैयार कर दी है।
- उसके बाद अब वर्तमान में क्या स्थिति है, असल में क्या हकीकत, इस बार में हम कुछ नहीं कह सकते।
- नये तैयार प्लान हमें न मिलने की तो उसे देखा गया है लेकिन दोनों में खास बदलाव नहीं है।
- साथ ही, यह भी सच है कि रिपोर्ट से हजारों करोड़ रुपए का लाभ नहीं होने वाला।
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इन गड़बडिय़ां के लगे आरोप
- ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया कि बाबुओं ने फाइलों के डुप्लीकेट दस्तावेज लगाये थे।
- फाइलों से कई कागज गायब मिले, कई भूखंडों की मूल फाइलें गायब मिली।
- लिहाजा डुप्लीकेट फाइल बनाकर काम हुआ।
- हालांकि कई मामलों में रिपोर्ट सही भी पायी गई लेकिन अधिकतर मामलों में दावे खोखले ही निकले।