कश्मीर जो भारत का अभिन्न अंग है इसके बावजूद पाकिस्तान उसे हथियाने के लिए कई तरह के जुगत लगा चुका है। कई तरह से हथियाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे पाकिस्तान को हर बार मुॅह की खानी पड़ती है। वहीं कश्मीर के अलगाववादी नेता हमेशा से कश्मीर को भारत से अलग-थलग कराना चाहते हैं क्योंकि वह खाते तो हिंदुस्तान का है लेकिन गाते पाकिस्तान का हैं।

भारत सरकार इन नेताओं के सुरक्षा के नाम पर देश की जनता का करोड़ों रुपया पानी की तरह खर्च करती है। ऐसे नेताओं पर क्या भारत को उनकी सुरक्षा में खर्च करना चाहिए या फिर उन पैसों को वीर सपूतों के परिवारों को मिलना चाहिए जो देश के लिए अपनी शहादत देने से भी नहीं कतराते हैं। जनपद गाजीपुर के 1965 के जंग में शहीद हुए परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद के पौत्र जमील अहमद का कहना है कि जो खर्च इन अलगाववादी नेताओं पर होता है उसकी जरूरत तो उन शहीद परिवारों को है जिनका बेटा, जिनका पति देश की सेवा में हंसते-हंसते अपनी जान निछावर कर देता है। आज भी कई ऐसे शहीद परिवार हैं जिनको पैरों में पहनने के लिए चप्पल तक नहीं है। ऐसे शहीद परिवार को आज के नेता उनके आसपास भी फटकना नहीं चाहते हैं। उन्हें डर सताता रहता है कि कहीं शहीद परिवार उनसे कुछ मांग ना ले। नेता लोग भी किसी शहीद के परिवार को तभी तक पूछते है जब तक कि जवान के शहादत की खबर सुर्खियों में रहती है।

वहीं माछिल सेक्टर में शहीद हुए कासिमाबाद के नसीरुद्दीन पुर गांव के रहने वाले शहीद शशांक सिंह के भाई कहना है कि ये अलगाववादी नेता भले ही हिंदुस्तान में पैदा हुए है, हिन्दुस्ताान की ही खाते है लेकिन आज भी वह पाकिस्तानी है इनके जैसे गद्दारों के उपर पैसा खर्च करना व्यर्थ है। हमारे वीर सैनिक देश के नेताओं की रक्षा करते हैं वही देश के नेता हमारे वीर सैनिकों को अपने लाभ के लिए, अपनी राजनीति चमकाने के लिए गाली तक देते हैं।

उरी सेक्टर में शहीद हरेंद्र यादव के भाई का कहना है कि सरकार इन अलगाववादियों पर चाहे जितना भी खर्च कर ले यह हमेशा देशद्रोही नारा ही लगाएंगे। यह हमारे देश के लिए खतरा है ऐसे में इन लोगों पर खर्च करने के बजाय हमारे वीर सपूतों और शहीद परिवारों पर करना चाहिए ताकि उनका हौसला बुलंद हो और उनके हौसले से प्रभावित होकर अन्य नौजवान भी देश की सेवा के लिए आगे आएं।

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