हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा बड़ा ही उत्तम दिन माना जाता है। इस व्रत को करने से सभी मनोकामना पूरी होती है। इसे कोजागरी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए धन प्राप्ति के लिए यह तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है। शरद पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है, इसी तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और सोलह कलाओं से युक्त होता है। इस दिन चन्द्रमा से अमृत की वर्षा होती है जो धन, प्रेम और सेहत तीनों देती है। प्रेम और कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था। इस दिन विशेष प्रयोग करके बेहतरीन सेहत, अपार प्रेम और खूब सारा धन पाया जा सकता है।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]रास पूर्णिमा को रात में चन्द्रमा की किरणों से टपकता है अमृत[/penci_blockquote]
पुराणों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत टपकता है। ऐसा कहा जाता है कि पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इस रात्रि को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा या आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। इस रात्रि को खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखकर खाने की भी मान्यता है। यह शुभ मुहूर्त रात 8:50 बजे से शुरु होकर दूसरे दिन की रात 12:00 बजे तक रहेगा।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]शरद पूर्णिमा व्रत कथा[/penci_blockquote]
पौराणिक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया। बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तब से ये दिन एक उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]उल्लू पर सवार होकर आती हैं मां लक्ष्मी[/penci_blockquote]
ज्योतिषियों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर धरती पर आती हैं। वह देखती हैं कौन सा भक्त उनकी भक्ति में लीन है। शरद पूर्णिमा तिथि को जो भक्त रात में जागकर मां लक्ष्मी की भव्य उपासना करता है उसपर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती हैं। बताया जाता है कि इस दिन सच्चे मन और श्रृद्धा से मां लक्ष्मी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. जिनकी कुंडली में धन का कोई योग ही ना हो, इस दिन की पूजा से प्रसन्न मां लक्ष्मी उन्हें भी धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं. इस दिन धन पाने के लिए कैसे करें मां लक्ष्मी की उपासना
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]माताएं अपने बच्चों के रखती हैं व्रत,संतान की आयु होती है लंबी[/penci_blockquote]
2018 में शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को है और यह 23 अक्टूबर रात से ही शुरू हो जाएगी। इस दिन उजले चावल की खीर बनाकर आसमान के नीचे कुछ घंटे तक रखने और रात 12 बजे के बाद खाने की परंपरा है। इस बार शरद पूर्णिमा के लिए पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 23 अक्टूबर को रात 10:38 पर होगी। दूसरी तरफ पूर्णिमा तिथि 24 अक्टूबर रात 10:14 बजे समाप्त हो रही है। शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व माना गया है। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से सभी मनोरथ पूर्ण होते है और व्यक्ति के सभी दुख दूर होते हैं। क्योंकि इसे कौमुदी व्रत भी कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो विवाहित स्त्रियां व्रत रखती है उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। जो माताएं अपने बच्चों के लिए व्रत रखती है तो उनके संतान की आयु लंबी होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह करनी चाहिए इष्ट देव की पूजा[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””][/penci_blockquote]इस दिन इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है। इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए। मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है। दरअसल पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां लक्ष्मी का जन्म इसी दिन हुआ था। साथ ही भगवान कृष्ण ने गोपियों संग वृंदावन के निधिवन में इसी दिन रास रचाया था। इसे कोजागर पूर्णिमा, रास पूर्णिमा, कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं इस दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत भर जाता है और ये किरणें हमारे लिए बहुत लाभदायक होती हैं।
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