प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने प्रासपा के 6 लाल बहादुर शास्त्री मार्ग स्थित कैम्प कार्यालय में अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के दर पर बुलंद दरवाजे पर उनके 807 वें उर्स के मौके पर देश व प्रदेश की खुशहाली व तरक्की के लिए अपने प्रतिनिधि को चादर लेकर रवाना किया। इस मौके पर पार्टी के तमाम नेता और कर्मचारी वहां उपस्थित थे। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 807 वें सालाना उर्स के मौके पर बुधवार को चादर पेश की गई। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने चादर पेश कर गरीब नवाज को पीएम की ओर से खिराज ए अकीदत पेश किया। बाद में नकवी ने प्रधानमंत्री का जायरीन के नाम संदेश पढ़ कर सुनाया।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]उर्स में इस बार नहीं आएंगे पाकिस्तानी जायरीन[/penci_blockquote]
अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के दर पर लाखों की संख्या में लोग हर साल पहुँचते हैं। गाजेबाजे और सूफियाना कलामों के बीच झंडे को दरगाह लाया जाता है और तोप के 25 गोले दाग कर कर सलामी दी जाती है। उर्स की विधिवत शुरूआत रजब का चांद दिखाई देने पर 7 मार्च से हो गई है। इस बार उर्स में पाकिस्तानी जायरीन नहीं आएंगे। दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव के कारण पाक जायरीनों का जत्था उर्स में शामिल होने नहीं आ रहा है। जिला प्रशासन ने इसकी पुष्टि की है। दरगाह परिसर जायरीन से खचाखच भरा हुआ था। लंगर खाना व महफिल खाना की छतों के साथ ही आसपास के हुजरों की छतों पर जायरीन नजर आ रहे थे।
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]आज से खुल गया जन्नती दरवाजा[/penci_blockquote]
इससे पहले राजस्थान पुलिस के बैंडवादक भर दो झोली मेरी या मोहम्मद….समेत विभिन्न सूफियाना कलामों की स्वर लहरियां बिखेरी। परंपरा के मुताबिक इस्लामी कैलेंडर के जमादिउस्सानी महीने की 25 तारीख को अस्र की नमाज के बाद दरगाह गेस्ट हाउस से शान-औ-शौकत के साथ जुलूस की शुरूआत हुई। सैयद मारूफ अहमद चिश्ती की सदारत और फखरुद्दीन गौरी की अगुवाई में निकले जुलूस में भीलवाड़ा के गौरी परिवार के सदस्य झंडा लिए हुए थे। जुलूस लंगर खाना गली, दरगाह बाजार होते हुए जुलूस रोशनी के वक्त से पूर्व बुलंद दरवाजा पहुंचा। इस दौरान जुलूस की शुरुआत के साथ ही बड़े पीर साहब की पहाड़ी से तोप के गोले दागे जा रहे थे।
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