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बच्चों पर हमला करने वाले जानवर की अब तक नहीं हो सकी पहचान

Sitapur district administration killing innocent dogs not fox

शिकारी आदमखोर जानवरों का झुण्ड पिछले कई दिनों से लगातार जिला सीतापुर के खैराबाद के 22 गाँव तक अपना खौफ़ फैला चुका है. जिसके बाद जिला प्रशासन लगातार इन जंगली जानवरों की पहचान का प्रयास कर रही है पर अभी तक सफल नहीं हो सकी है. हालाँकि हमले लगातार जारी है.

फिर हुआ हमला:

बीते बुधवार को सीतापुर में जंगली जानवरों के एक झुण्ड ने नौ वर्षीय लड़की पर हमला किया था। निरंतर खतरे ने जिला प्रशासन और पुलिस के दावों में चिंताओं का पर्दाफाश किया है कि स्थिति नियंत्रण में थी।

खैराबाद के बरभारी गांव के निवासी, पल्लवी पर आम बाग में हमला किया गया था। उसके तीन दोस्त उसके साथ थे। यह घटना बुधवार को लगभग शाम 5.30 बजे हुई। लड़की को सीतापुर जिला अस्पताल ले जाया गया जहां उसकी हालत स्थिर है।

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शहर के मजिस्ट्रेट हर्ष देव पांडे ने कहा कि लड़की ने उन्हें बताया कि चार क्रूर जानवरों ने उसे गर्दन से पकड़ा। उसकी रोना सुनकर कुछ ग्रामीणों ने गॉंव के कुत्तों के साथ उन जानवरों को खादेडा लेकिन वो इतना तेज़ थे कि घने खेतों की तरफ तेजी से भाग कर गायब हो गए. पल्लवी को सिर, गर्दन और कंधों पर गहरी चोट आई है।

प्रशासन लगा रहा कुत्तों की रट:

अधिकारी ने लगातार इन आदमखोर जानवरों को कुत्ते बता रहे हैं. उन्होंने रट लगा रखी हैं कि अटैक करने वाले कुत्ते ही हैं कोई जानवर नहीं.

इसके बाद प्रदीप पात्रा बताते हैं कि जब मैं वापस गांव से लखनऊ की तरफ लौट रहा था तो मुझे एक कुत्ते जैसी लोमड़ी दिखी जिसका मैंने पीछा किया. लगभग 1 किलोमीटर तक मैंने उसका पीछा किया. रास्ता उबड़-खाबड़ था और वह लोमड़ी तेजी से घने खेतों की तरफ अंदर की ओर चली गई. जैसा कि कुत्ते अमूमन नहीं करते हैं.

कुत्ते हमेशा आबादी के क्षेत्र की तरफ दौड़ते हैं लेकिन जंगली जानवर हमेशा खेतों की तरफ भागता है वह आबादी की तरफ नहीं भागता.

वह देखने में एक लोमड़ी की तरह लगता है. उसकी पूँछ झबरीली होती है और दांत नुकीले होते हैं, मुंह पतला होता है. वह अपने शिकार को सूंघते हुए उस पर अटैक करते हैं भोंकते नहीं है, जबकि कुत्ता गुर्राता और भोंकता है.

शिकार करने से पहले इन सब चीजों से साफ मालूम पड़ता है कि हमला करने वाले कोई कुत्ते नहीं बल्कि जंगली जानवर है या फिर जंगली लोमड़ी है.

स्थानीय कुत्तों को पहनाये जाएँ रेडियम पट्टे:

विशेषज्ञों की माने तो उनका कहना है कि प्रशासन को एक मुहीम चलानी चाहिए जिसमें वो स्थानीय कुत्तों को पकड़ कर जो आदमखोर प्रवत्ति के नहीं हैं उनके गले में रेडियम का पट्टा या कोई नार्मल बैंड बांध दे, जिससे ये मालूम पद सके कि ये कुत्ते आदमखोर जानवर नहीं है.

लेकिन प्रशासन ने अभी तक इन्ते छोटे काम के लिए कोई भी टीम गठित नहीं की है. कुछ गाँव के लोगों में जागरूकता के चलते उन्होंने अपने गाँव के कुत्तों के गले में रेडियम का पट्टा या कुछ भी बांध दिया है ताकि जंगली जानवरों और देसी कुत्तों में पह्चाहं आसान हो सके.

दो दिन पहले 2 सडक के कुत्तों को बताया गया आदमखोर शिकारी जानवर:

प्रशासन ने अभी 2 दिन पहले गाँव के कुछ ग्रामीणों द्वारा मारे गए सडक के कुत्तों को आदमखोर बता डाला. कहा कि इनके जबड़े की बनावट आम कुत्तों के जबड़े की बनावट से एकदम अलग है.

दरअसल मामला ये था कि उन जंगली जानवरों ने एक बच्ची पर शाम में अचानक हमला किया जिसके बाद ग्रामीणों ने उन जानवरों को दौड़ाया साथ में स्थानीय कुत्तों ने भी उनका पीछा किया लेकिन रात के अँधेरे में खेत में ग्रामीणों को जो दिखा उसे मौत के घाट उतार डाला.

फिलहाल सच्चाई तब सामने आएगी जब इन कुत्तों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्रशासन सामने लायेगा की ये सड़क वाले कुत्ते है या आदमखोर हो चुके शिकारी जानवर.

पशु अधिकार कार्यकर्ता ने उठाये सवाल:

उत्तर प्रदेश में आदमखोर जानवर के खतरे के चलते एक पशु अधिकार कार्यकर्ता ने सुझाव दिया है कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कुत्तों का कोई “अवैध विनाश” नहीं है क्योंकि इससे स्थिति खराब हो जाएगी और इससे अधिक संघर्ष होगा।

उत्तर प्रदेश पशु जन्म नियंत्रण निगरानी समिति के सदस्य गौरी मौलेखी ने राज्य के मुख्य सचिव को सुनिश्चित करने के लिए एक पत्र भेजा है कि स्थानीय प्रशासन सक्रिय रूप से लोगों को सरकार द्वारा उठाए जा रहे वैज्ञानिक और कानूनी कदमों के बारे में सूचित करेगा और उन्हें अपने हाथों में कानून लेने से हतोत्साहित करें।

आदमखोर जानवरों ने सीतापुर में दहशत पैदा की है और नवंबर से अब तक 13 बच्चों के आसपास मौत हो गई है।

मौलेखी ने सड़क के कुत्तों से निपटने के लिए जो कदम प्रशासन और नगर पालिका उठा रही है तो उसकी प्रतिक्रियाओं के लिए उन्होंने स्थानीय नगरपालिका निकाय को दोषी ठहराया और कहा कि अगर ऐसे ही इन सड़क के कुत्तों को प्रशासन मारता और इन्हें पेंड से लटका के या ज़मीन में गाड़ता रहा तो ये एक वीभत्स स्थिति पैदा कर देगा, जिसकी वजह से प्लेग जैसी गंभीर बीमारी पूरे इलाके में  फैल सकती है।

उन्होंने सुझाव दिया कि जिला प्रशासन या नगर पालिका द्वारा कुत्तों के अवैध विनाश के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। उनके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने आबादी प्रबंधन और रेबीज उन्मूलन के लिए पशु जन्म नियंत्रण कुत्ते नियम, 2001 के कार्यान्वयन का आदेश दिया था। उन्होंने कहा कि नियम स्थानीय अधिकारियों की सरकारों के दायित्वों को भी कैप्चरिंग, नसबंदी, टीकाकरण और उनकी आबादी को नियंत्रित करने के लिए कुत्तों के रिहाई के संबंध में निर्धारित करते हैं।

मौलेखी ने दावा किया कि सीतापुर में कानून का पूर्ण उल्लंघन और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की पूरी उपेक्षा में सीतापुर में गाँव के मासूम कुत्तों का का व्यापक संहार चल रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस प्रकार की हिंसा पूरी तरह से प्रतिकूल है और इससे कम नहीं होगा बल्कि मनुष्य पशु संघर्ष में काफी वृद्धि होगी।

विपक्षियों ने लगाये सरकार पर आरोप:

विपक्षी दलों ने गंभीर मामले को अनदेखा करने का आरोप लगाकर योगी आदित्यनाथ सरकार की निंदा की है। कांग्रेस प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा कि आदमखोर जानवर के हमलों में बच्चों की मौत की घटनाएं निश्चित रूप से राज्य सरकार पर सवाल उठाती हैं, जो खतरे को नियंत्रित करने में नाकाम रही है।

जानवरों के हमले के कारण बच्चों की मौत पर उग्र खैराबाद के स्थानीय निवासी राष्ट्रीय राजमार्ग 24 को विरोध के निशान के रूप में अवरुद्ध करने की योजना बना रहे डाले। जिसके बाद उनपर प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज भी हुआ.

हम उनके दर्द, पीड़ा और दुःख को समझ सकते हैं। ऐसी घटनाओं के बावजूद, राज्य सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है उन जानवरों से निपटने के लिए.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह साजन ने सरकार में एक झटका लगाते हुए कहा कि निर्दोष बच्चों की हत्या करने वाले आदमखोर जानवरों की तुलना में राज्य सरकार के लिए इससे अधिक शर्मनाक और क्या हो सकता है। उन्होंने कहा कि यूपी में मामलों की स्थिति बहुत खराब है और ऐसा लगता है कि एक जंगल राज है।

मुख्यमंत्री ने किया था सीतापुर का दौरा:

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने शुक्रवार को सीतापुर जिले का दौरा किया और उन बच्चों के परिवार के सदस्यों से मुलाकात जिनके बच्चों पर आदमखोर जानवर ने हमला कर उन्हें मार दिया था या घायल कर डाला था.

मुख्यमंत्री  नें दो घायल बच्चों को देखने के लिए जिला अस्पताल का दौरा भी किया था और उन जानवरों को पकड़ने के लिए एक अभियान शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया था.

उन्होंने प्रत्येक परिवार को 2 लाख रुपये का मुआवजे घोषित करने की घोषणा की थी जिसने अपने  बच्चे को खो दिया था और हर घायल बच्चे को 25,000 रुपये की आर्थिक सहायता भी की थी.

कुत्तों को मारने वाले प्रशासन से हाई कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट :  

सीतापुर में ऐसे हमलों की बार-बार होने वाली घटनाओं की संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से जंगली जानवर के खतरे को रोकने के लिए उठाए गए कदमों का स्पष्टीकरण मांगा है।

हालांकि, यह महसूस किया गया था कि ये समस्या सीतापुर तक सीमित नहीं हो सकती है  इससे दूसरे इलाके और राज्य भी जूझ सकते हैं.

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और अब्दुल मोइन समेत पीठ ने एक स्थानीय वकील द्वारा स्थानांतरित PIL पर आदेश पारित किया और सुनवाई की अगली तारीख के रूप में 4 जुलाई को तय करने से पहले राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट देने के लिए एक महीने का समय दिया.

अकेले स्कूल जाने से डरते हैं बच्चे:

हमलों ने इस तरह के डर को जन्म दिया है कि स्कूल की उपस्थिति खराब हो गई है.  पुलिस गश्त चलाती है और पुरुष अपने बगीचे या खेत में लाठी डंडे और कुल्हाड़ी जैसे हथियार लेकर काम करते हैं।

सीतापुर के स्कूलों के जिला निरीक्षक, देवकी सिंह ने कहा कि खैराबाद के स्कूलों ने 1 मई से उपस्थिति में बड़ी गिरावट देखी है। अधिकारी ने कहा कि माता-पिता को निर्देश जारी किए गए थे कि स्कूल छोड़ने के लिए वयस्कों को अपने बच्चों के साथ जाना चाहिए।

अभी भी ड्रोन से रखी जा रही है निगरानी:

जिला मजिस्ट्रेट ने कहा कि जंगली जानवरों के खतरे के तहत क्षेत्र भी ड्रोन कैमरा निगरानी में हैं.  डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) बरेली की टीमों ने हाल के दिनों में जिले से पग मार्क, काटने के निशान और पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट जैसे नमूने एकत्र किए हैं।

IVRI के निदेशक आरके सिंह ने कहा कि ये जानवर या कुत्तेजो भी हैं आस-पास के इलाकों में बूचड़खानों से निकला हुआ वेस्ट मांस खाया करते थे, लेकिन अब उन्हें नियमित आहार नहीं मिल रहा था और वे क्रूर हो गए थे।

राज्य सरकार पिछले कई महीनों में अवैध रूप से चल रहे बूचडखानों को बंद कर रही है। तकरीबन 25 बूचडखाने बंद कर दिए गए हैं जिनकी वजह से वजह रोज़ मांस खाने वाले जानवर अब भूख लगने पर मासूम बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं.

 

पशु चिकित्सक अनूप गौतम ने कहा कि जब भोजन की कमी होती है तो ये जो भी है, कुत्ते या जंगली जानवर, ये अधिक हिंसक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जो घातक प्रजाति के कुत्तों को पालते हैं, शायद उन्होंने भी अपने कुत्तों को मुक्त कर दिया होगा।

IVRI टीम की अध्यक्षता करने वाले दिनेश चंद्र चौबे ने कहा कि नाराज ग्रामीणों द्वारा मारे गए कुत्तों से एकत्रित नमूनों पर हैदराबाद में विस्तृत परीक्षण किए जाएंगे।

अधिकारियों ने बताया कि 1 मई को खैराबाद इलाके के गांवों में जंगली जानवरों द्वारा तीन बच्चों की मौत हो गई थी, जिसके बाद जिला प्रशासन ने मथुरा से एक टीम को जानवरों को पकड़ने के लिए बुलाया था।

जिला प्रशासन का बेबुनियाद बयान:

पिछले दो हफ्तों में बार-बार जानवरों के हमलों की विस्तृत जांच के बाद, सीतापुर प्रशासन ने दावा किया कि लगभग 50 जंगली कुत्ते थे जो बच्चों पर हमला कर रहे थे। अधिकारियों ने आगे कहा कि यह देखा गया था कि जंगली कुत्ते आमतौर पर खैराबाद में बीसीएम अस्पताल के पास ‘मेला मैदान’ में इकट्ठे होते थे और फिर वहां से शिकार करते थे।

सीतापुर डीएम शीतल वर्मा ने कहा कि वन अधिकारियों, जिला प्रशासन और पुलिस की टीमों ने नवंबर 2017 में शुरू हुए हमलों का विस्तृत अध्ययन किया था।

डीएम वर्मा ने कहा कि हमने उचित रणनीति तैयार करने के लिए समय निकाला क्योंकि शुरुआत में न तो पुलिस और न ही प्रशासन को नवंबर और जनवरी में होने वाली मौतों के बारे में सूचित किया गया था।

हमने कुत्ते के पकड़ने वालों में भाग लिया है और कई कुत्तों को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं जैसा कि हम कर सकते हैं। हमारे पशु जन्म नियंत्रण केंद्र भी परिचालित हो गए हैं और कुत्तों को खोजने के लिए अधिक पुलिस और वन टीम जिले में तैनात की गई हैं.

झुंड में भेड़िये करते हैं शिकार:

दुधवा के संस्थापक निदेशक डॉ. राम लखन सिंह बताया कि भेड़िये झुंड में सामूहिक रूप से शिकार करते हैं। उन्होंने बताया कि सीतापुर में हो रही घटनाओं में हमला करने वाले अपराधी प्रवृत्ति के जंगली कुत्ते या भेड़िये ही हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसी प्रवृत्ति भेड़ियों की होती है। यह बहुत ही नियम के पक्के होते हैं और अपनी टीम बनाकर वारदात को अंजाम देते हैं। भेड़िए बच्चों की गर्दन पर ही वार करते हैं। यह वयस्कों से डरते रहते हैं।

अगर भेड़िया कहीं जा रहा है तो वह सीधे चलता जाएगा। अपनी गर्दन नीचे झुका लेगा। भड़िये नजरे झुका के चलता है किसी की तरफ देखता नहीं है।

उसकी एक आदत यह भी होती है कि वह निरंतर चलता ही रहता है कभी रुकता नहीं घटना को अंजाम देने के दौरान कई टीम के सदस्यों के साथ अंजाम देता है। इसके गैंग में शामिल सदस्य एक दूसरे को शिकार आगे बढ़ाते रहते हैं।

भेड़िया पहले शिकार नहीं खाता, सबसे पहले वह मादा को खिलाता है और बच्चों को खिलाता है इसके बाद स्वयं भी खाता है। डॉक्टर ने बताया कि भेड़िये नदियों के किनारे या जंगलों में जमीन में खोह बनाकर रहते हैं। उन्होंने कई ऐसे तथ्य बताये जिन्हें आपने कभी नहीं सुना होगा।

प्रशासन कुत्ता कहता रहा मगर निकला भेड़िया जैसी नस्ल का जानवर:

सीतापुर में हो रहे बच्चों पर हमलों के पीछे का एक चौंकाने वाला सच सामने निकल कर आया है। जिसमें बच्चों पर हमला करने वाले कुत्ते नहीं बल्कि भेड़िया की तरह दिखने वाले कोई जानवर है।

इनका जबड़ा कुत्तों के जबड़ों से अलग दिख रहा था और इनकी बनावट भी आम कुत्तों से बिलकुल अलग थी। उनकी पूँछ झबरीली और नुकीले नाखून ये साबित करते हैं कि ये दिखने में तो कुत्ते जैसे हैं मगर हैं नहीं।

uttarpradesh.org ने जब सीतापुर में जाके उन गॉंव वालों से बात की थी तो ये साफ़ निकल कर आया था की ये कुत्ते नहीं बल्कि कोई और जानवर हैं जो मासूमो को अपना शिकार बना रहे हैं।

बली का बकरा बने स्थानीय कुत्ते:

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ग्रामीणों ने सड़क पर घूमने वाले स्थानीय कुत्तों पर युद्ध घोषित कर दिया था। बच्चों पर हमला करने वाले जानवर की बजाए पिछले कुछ दिनों में गांवों को “कुत्ते मुक्त” बनाने के लिए व्यापक रूप से एक झगड़ा है।

लाठी से बंदूक तक लेकर लोग अब इन स्थानीय बेगुनाह कुत्तों के शिकार में निकल चके थे। ग्रामीणों द्वारा उनके बच्चों की मौत का बदला लेने के लिए सबकुछ इस्तेमाल किया जा रहा है।

इस जिले में लगभग 20 किमी की एरिया के भीतर 12 गांवों में 13 बच्चों की हत्याओं के जवाब में गाँव वाले और प्रशासन बेगुनाह कुत्तों को अपनी गोली का निशाना बना रहे थे लेकिन किसी ने भी उन जंगली आदमखोर जानवर को नहीं देखा था जो बच्चों पर बर्बता से हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार रहे थे।

 

उप-मंडल मजिस्ट्रेट शशांक त्रिपाठी ने हमसे बताया, “हम आश्वस्त हैं कि हत्याएं कुत्ते के हमलों की वजह से हुई है गांववासियों ने हमलों की गवाही दी है।”

दूसरी तरफ ग्रामीण गुस्से में हैं उनका कहना है कि कुछ हत्याएं हुई हैं, लेकिन प्रशासन ने उन्हें किसी भी तरह से समर्थन नहीं दिया है। हालांकि, यह बयान ग्रामीणों द्वारा पूरी तरह से विरोधाभास है।

मारे गए कुत्तों का नहीं हो रहा पोस्टमार्टम:

एक तरफ जहां आदमखोर कुत्ते मासूमों की जान के दुश्मन बने हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ MRSP  नामक एक संस्था कुत्तों के मारे जाने के खिलाफ हैं. इस संस्था के पदाधिकारियों कई दिनों से खैराबाद इलाके में दौरा कर रहे हैं.

साथ ही बेगुनाह कुत्तों की मौत को लेकर भी सवाल उठाए. साथ ही संस्था के पदाधिकारियों ने SO को शिकायती पत्र देकर कुत्तों को मारने वालों पर एक केस दर्ज करने के लिए तहरीर भी दी है.

 

संस्था के संयोजक प्रदीप कुमार पात्रा व कोषाध्यक्ष सभा खान ने डीएफओ और एडीएम से मिलकर कुत्तों की मौत को लेकर सवाल उठाए. संस्था का कहना है कि तमाम कुत्तों को मार डाला गया है लेकिन उनका पोस्टमार्टम नहीं कराया गया. तर्क दिया कि अगर कुत्तों का पोस्टमार्टम कराया गया होता तो यह पता चल जाता कि वह कुत्ते मारे गए हैं.

उन्होंने इंसान का मांस खाया है या नहीं. लेकिन प्रशासनिक अमला कह रहा है कि हम कुत्तों का पोस्टमार्टम करवा रहे हैं.

प्रदीप पात्रा का बयान:

MRSP सेवा समिति के अवैतनिक पशु कल्याण अधिकारी प्रदीप पात्रा AWBI की तरफ से कल सीतापुर गए थे. उनके साथ MRSP  की कोषाध्यक्ष सबा खान भी सीतापुर गई थी. वह सीतापुर में हो रहे बेगुनाह कुत्तों की मौत की पड़ताल में लगे थे.

उनका कहना है कि जिन लोगों ने स्थानीय कुत्तों को मारा है, जाने अनजाने में ही सही उनके खिलाफ FIR लिखवाना जरूरी है और हम FIR लिखवाने ही आए हैं. FIR हम अज्ञात लोगों के खिलाफ लिखवायेंगे. इसलिए सबसे पहले वह DM के पास अपनी FIR लिखवाने के लिए पहुंचे.

पात्रा का कहना है कि चाहे वह कोई भी हो, आम आदमी हो, पुलिस वाला हो या वन विभाग का आदमी हो, इसलिए उच्च अधिकारियों से मिलना जरूरी है ताकि उनके खिलाफ FIR लिखवाई जा सके.

उनके मुताबिक DM अभी अवकाश पर है. उनकी जगह पर सीडीओ उनका काम देख रहे हैं, जो भी शाम को 5:00 बजे मिल पाए. इस संवेदनशील मामले पर उन्होंने कहा कि अभी हमें सुझाव दें कि इन्हें कैसे रोका जाए, कैसे उन्हें पकड़ा जाए, FIR तो बाद में भी लिख जाएगी.

उसके बाद भी उनकी कई मुद्दों पर उनसे बहस भी हुई. उसके बाद हम डीएफओ से मिलने की कोशिश करते रहे लेकिन डीएफओ का नंबर नोट रिचेबल बताता रहा. प्रशासन को यह बताया गया कि एक मृत लोमड़ी जो कि एक गांव में पेड़ पर लटकी हुई है, पर अभी तक प्रशासन की नजर नहीं पड़ी है.

यह लोमड़ी पिछले 2 मई से 15 मई तक उस पेड़ पर लटकी हुई थी. उसका पोस्टमार्टम होना चाहिए था,लेकिन उसका अभी तक पोस्टमार्टम नहीं हुआ है.

कुत्तों को पेंड से लटकाया गया:

स्थानीय व्हाट्सएप ग्रुप्स पर गांवों में हो रहे मासूम कुत्तों की भयानक हत्याओं की तस्वीरें प्रमाण पत्र के तौर पर मौजूद हैं। कहीं कुत्तों को पीट पीट कर लटका दिया गया तो कहीं पीटने के बाद उन्हें गोली मार दी गई। फिर उसके बाद उसपे पैर रख कर या पास में खड़े होकर एक ग्रुप फोटो भी खिंचवाई गई।

वे सामान्य कुत्तों की तरह नहीं हैं:

गॉंव के कई लोगों ने कहा कि हमला करने वाले  जानवर आकार में बहुत बड़े थे और लाल रंग के थे, सामान्य कुत्तों की तरह बिलकुल नहीं थे. साथ ही एक चौंकाने वाली बात एक बुजुर्ग आदमी ने कही कि जो हमलावर कुत्ते हैं, उनके जगह जगह पर बाल कम है और उनके दाढ़ी पर बाल भी हैं, पूँछ पर भी बड़े बड़े बाल थे।

उन्होंने कहा वे भेड़िये की तरह दिखते हैं और झुण्ड में घूमते हैं लेकिन वो ये भी मानते हैं कि ग्रामीणों और प्रशासन द्वारा मारे गए कुत्ते इन बच्चों की हत्या में बिलकुल नहीं शामिल थे, उन्हें बेवजह मारा गया।

स्कूल जाने से डर रहे हैं बच्चे:

आदमखोर जानवर के हमलों का डर इस तरह पूरे खैराबाद सीतापुर में फैला है कि बच्चे पिछले एक डेढ़ हफ्ते से स्कूल नहीं जा रहे हैं और कभी भी बड़े लोग उन्हें अकेला नहीं छोड़ रहे हैं।

एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उर्मिला देवी कहती हैं कि यहां तक ​​कि जब बच्चे अपने आप को राहत दिलाने के लिए खेतों में जाते हैं, तब भी बाकि बड़े लोग अपने साथ बंदूकें और डंडा लेकर जाते हैं ताकि जब वो जानवर हमला करे तो उन्हें वहीं मारा जा सके। 

19 मई से होंगे स्कूलों में अवकाश:

सीतापुर एसपी कुलकर्णी ने बताया कि हमने 22 अतिसंवेदनशील क्षेत्रों, 10 संवेदनशील जोनों और 13 अन्य जोनों की पहचान की है, जहां इन जानवरों के हमलों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। साथ ही यूपी 100 वाहनों को ज़ोन में तैनात किया जाएगा।

हत्यारे कुत्तों का डर अब तक नहीं छोड़ा गया है क्योंकि लोग बेहद सतर्क हैं और सभी सावधानी बरत रहे हैं। बच्चे ज्यादातर स्कूलों में जाने से डर रहे हैं, जिन्होंने फिर से मंगलवार को कम उपस्थिति की सूचना दी।

स्कूलों के जिला निरीक्षक देवकी सिंह ने कहा कि कुछ एनजीओ परामर्श ग्रामीणों में अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रशासन में शामिल हो गए हैं। हम 19 मई से ग्रीष्मकालीन अवकाश करेंगे।

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